किसी अजूबे से कम नहीं हैं रामायण के पात्र

विश्वामित्र जी ने कहा, हे राम! अब तुम आश्रम के अंदर जाकर अहिल्या का उद्धार करो। विश्वामित्र जी की बात सुनकर वे दोनों भाई आश्रम के भीतर प्रविष्ट हुए। वहां तपस्या में निरत अहिल्या कहीं दिखाई नहीं दे रही थी, केवल उसका तेज संपूर्ण वातावरण में व्याप्त हो रहा था…

-गतांक से आगे…

नाम

अहल्या शब्द दो भागों में विभाजित किया जा सकता है : अ (एक निषेधवाचक उपसर्ग) और हल्या, जिसका संस्कृत अर्थ हल, हल जोतने अथवा विरूपता से संबंधित है। रामायण के उत्तर कांड में ब्रह्मा द्वारा इसका अर्थ बिना किसी असुंदरता के बताया गया है, जहां ब्रह्मा इंद्र को यह बता रहे हैं कि किस प्रकार सृष्टि की सुंदरतम रचनाओं से तत्त्व लेकर उन्होंने अहल्या के अंगों में उनका समावेश करके अहल्या की रचना की। ज्ञानमंडल, वाराणसी प्रकाशित आधुनिक कोश इसी अर्थ को लेकर लिखता है : अहल्या- हल का अर्थ है कुरूप, अतः कुरूपता न होने के कारण ब्रह्मा ने इन्हें अहल्या नाम दिया। चूंकि, कतिपय संस्कृत शब्दकोश अहल्या का अर्थ ऐसी भूमि जिसे जोता न गया हो, लिखते हैं, बाद के लेखक इसे पुरुष समागम से जोड़कर देखते हुए, अहल्या को कुमारी अथवा अक्षता के रूप में निरूपित करते हैं। यह उस परंपरा के अनुकूल पड़ता है जिसमें यह माना गया है कि अहल्या एकानेक प्रकार से इंद्र की लिप्सा से मुक्त और उनकी पहुंच से बाहर रही। हालांकि, रवींद्रनाथ टैगोर अहल्या का अभिधात्मक अर्थ ‘जिसे जोता न जा सके’ मानते हुए उसे प्रस्तरवत् निरूपित करते हैं जिसे राम के चरणस्पर्श ने ऊर्वर बना दिया। दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर भारती झावेरी भील जनजाति की मौखिक परंपरा में मौजूद रामायण के अनुसार रवींद्रनाथ के मत का समर्थन करती हैं और इसका अर्थ ‘जिसे जोता न गया हो ऐसी जमीन’ के रूप में बताती हैं।

अहिल्या की कथा

राम और लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ मिथिलापुरी के वन-उपवन आदि देखने के लिए निकले तो उन्होंने एक उपवन में एक निर्जन स्थान देखा। राम बोले, भगवन, यह स्थान देखने में तो आश्रम जैसा दिखाई देता है किंतु क्या कारण है कि यहां कोई ऋषि या मुनि दिखाई नहीं देते? विश्वामित्र जी ने बताया, यह स्थान कभी महर्षि गौतम का आश्रम था। वे अपनी पत्नी के साथ यहां रह कर तपस्या करते थे। एक दिन जब गौतम ऋषि आश्रम के बाहर गए हुए थे तो उनकी अनुपस्थिति में इंद्र ने गौतम ऋषि के वेश में आकर अहिल्या से प्रणय याचना की। यद्यपि अहिल्या ने इंद्र को नहीं पहचाना, ऋषि गौतम को जानकर अहिल्या ने प्रणय हेतु अपनी स्वीकृति दे दी। जब इंद्र अपने लोक लौट रहे थे तभी अपने आश्रम को वापस आते हुए गौतम ऋषि की दृष्टि इंद्र पर पड़ी जो उन्हीं का वेश धारण किए हुए था। वे सब कुछ समझ गए

और उन्होंने इंद्र को शाप दे दिया। इसके बाद उन्होंने अपनी पत्नी

को शाप दिया कि रे दुराचारिणी! तू हजारों वर्षों तक केवल

हवा पीकर कष्ट उठाती हुई यहां राख में पड़ी रहे। जब राम इस वन में प्रवेश करेंगे तभी उनकी

कृपा से तेरा उद्धार होगा। तभी तू अपना पूर्व शरीर धारण करके मेरे पास आ सकेगी। यह कह कर गौतम ऋषि इस आश्रम को छोड़कर हिमालय पर जाकर तपस्या करने लगे।

उद्धार

इसलिए विश्वामित्र जी ने कहा, हे राम! अब तुम आश्रम के अंदर जाकर अहिल्या का उद्धार करो। विश्वामित्र जी की बात सुनकर वे दोनों भाई आश्रम के भीतर प्रविष्ट हुए। वहां तपस्या में निरत अहिल्या कहीं दिखाई नहीं दे रही थी, केवल उसका तेज संपूर्ण वातावरण में व्याप्त हो रहा था। जब अहिल्या की दृष्टि राम पर पड़ी तो उनके पवित्र दर्शन पाकर एक बार फिर सुंदर नारी के रूप में दिखाई देने लगी। नारी रूप में अहिल्या को सम्मुख पाकर राम और लक्ष्मण ने श्रद्धापूर्वक उनके चरण स्पर्श किए। उससे उचित आदर-सत्कार ग्रहण कर वे मुनिराज के साथ पुनः मिथिला पुरी को लौट आए। इस तरह हम रामायण के पात्रों को विविध प्रतिभाओं से संपन्न देखते हैं। उनकी आध्यात्मिक शक्तियां भी आम लोगों को आश्चर्यचकित करती हैं। राम की सेना के योद्धा हों या रावण की सेना से जुड़े योद्धा, सभी एक से बढ़कर एक शक्तियों से संपन्न हैं। यह भी एक तथ्य है कि इन शक्तियों की प्राप्ति के लिए उन्होंने कड़ी से कड़ी तपस्या की। तभी वे इस योग्य बन पाए। कुछ योद्धा शक्ति पर अभिमान करते हैं, जबकि कुछ को यह छू भी नहीं पाता है।

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