किसी अजूबे से कम नहीं हैं रामायण के पात्र

अंगद रामायण का एक पात्र, पंचकन्या में से एक तारा तथा किष्किंधा के राजा बाली का पुत्र और सुग्रीव का भतीजा था। वह रावण की लंका को ध्वस्त करने वाली राम सेना का एक प्रमुख योद्धा था। उसका बल देखकर लोग हैरान हो जाते थे…

जब हम आध्यात्मिक आश्चर्यों की बात करते हैं तो हमारे सामने कई पौराणिक पात्रों की चारित्रिक विशेषताएं उभर कर सामने आने लगती हैं। ऐसे ही पौराणिक पात्र रामायण में भी दृष्टिगोचर होते हैं। आध्यात्मिक आश्चर्यों की इस शृंखला में हम अब अगली किस्तों में रामायण के पात्रों की चर्चा करेंगे।

अंगद

अंगद रामायण का एक पात्र, पंचकन्या में से एक तारा तथा किष्किंधा के राजा बाली का पुत्र और सुग्रीव का भतीजा, रावण की लंका को ध्वस्त करने वाली राम सेना का एक प्रमुख योद्धा था। बाली की मृत्यु के उपरांत सुग्रीव किष्किंधा का राजा और अंगद युवराज बना। तारा तथा अंगद अपने दूत-कर्म के कारण बहुत प्रसिद्ध हुए। राम ने उसे रावण के पास दूत बनाकर भेजा था। वहां की राजसभा का कोई भी योद्धा उनका पैर तक नहीं डिगा सका। अंगद संबंधी प्राचीन आख्यानों में केवल वाल्मीकि रामायण ही प्रमाण है। यद्यपि वाल्मीकि के अंगद में हनुमान के समान बल, साहस, बुद्धि और विवेक है। परंतु उनमें हनुमान जैसी हृदय की सरलता और पवित्रता नहीं है। सीता शोध में विफल होने पर जब वानर प्राण दंड की संभावना से भयभीत होकर विद्रोह करने पर तत्पर दिखाई पड़ते हैं तब अंगद भी विचलित हो जाते हैं। यदि वे अंततोगत्वा कर्त्तव्य पथ पर दृढ़ रहते हैं तो इसका कारण हनुमान के विरोध की आशंका ही है।

अहिरावण

कृत्तिवास रामायण में अहिरावण विश्रवा ऋषि के पुत्र और रावण के भाई थे। वो राक्षस थे और गुप्त रूप से राम और उनके भाई लक्ष्मण को नरक-लोक में ले गए और वहां पर अपनी आराध्य महामाया के लिए दोनों भाइयों की बलि देने को तैयार हो गए। लेकिन हनुमान ने अहिरावण और उनकी सेना को मारकर इनकी रक्षा की।

अहिल्या

अहल्या अथवा अहिल्या हिंदू मिथकों में वर्णित एक स्त्री पात्र हैं, जो गौतम ऋषि की पत्नी थीं। ब्राह्मणों और पुराणों में इनकी कथा छिटपुट रूप से कई जगह प्राप्त होती है और रामायण और बाद की रामकथाओं में विस्तार से इनकी कथा वर्णित है। ब्रह्मा द्वारा रचित विश्व की सुंदरतम स्त्रियों में से एक अहल्या की कथा मुख्य रूप से इंद्र द्वारा इनके शीलहरण और इसके परिणामस्वरूप महर्षि गौतम द्वारा दिए गए शाप का भाजन बनना तथा राम के चरणस्पर्श से शापमुक्ति के रूप में है। हिंदू परंपरा में इन्हें सृष्टि की पवित्रतम पांच कन्याओं, पंचकन्याओं में से एक गिना जाता है और इन्हें प्रातः स्मरणीय माना जाता है। मान्यता अनुसार प्रातःकाल इन पंचकन्याओं का नाम स्मरण सभी पापों का विनाश करता है।

नाम

अहल्या शब्द दो भागों में विभाजित किया जा सकता है : अ (एक निषेधवाचक उपसर्ग) और हल्या, जिसका संस्कृत अर्थ हल, हल जोतने अथवा विरूपता से संबंधित है। रामायण के उत्तर कांड में ब्रह्मा द्वारा इसका अर्थ बिना किसी असुंदरता के बताया गया है, जहां ब्रह्मा इंद्र को यह बता रहे हैं कि किस प्रकार सृष्टि की सुंदरतम रचनाओं से तत्त्व लेकर उन्होंने अहल्या के अंगों में उनका समावेश करके अहल्या की रचना की। ज्ञानमंडल, वाराणसी प्रकाशित आधुनिक कोश इसी अर्थ को लेकर लिखता है ः अहल्या- हल का अर्थ है कुरूप, अतः कुरूपता न होने के कारण ब्रह्मा ने इन्हें अहल्या नाम दिया। चूंकि, कतिपय संस्कृत शब्दकोश अहल्या का अर्थ ऐसी भूमि जिसे जोता न गया हो, लिखते हैं, बाद के लेखक इसे पुरुष समागम से जोड़कर देखते हुए, अहल्या को कुमारी अथवा अक्षता के रूप में निरूपित करते हैं। यह उस परंपरा के अनुकूल पड़ता है जिसमें यह माना गया है कि अहल्या एकानेक प्रकार से इंद्र की लिप्सा से मुक्त और उनकी पहुंच से बाहर रही। हालांकि, रवींद्रनाथ टैगोर अहल्या का अभिधात्मक अर्थ ‘जिसे जोता न जा सके’ मानते हुए उसे प्रस्तरवत् निरूपित करते हैं जिसे राम के चरणस्पर्श ने ऊर्वर बना दिया। दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर भारती झावेरी भील जनजाति की मौखिक परंपरा में मौजूद रामायण के अनुसार रवींद्रनाथ के मत का समर्थन करती हैं और इसका अर्थ ‘जिसे जोता न गया हो ऐसी जमीन’ के रूप में बताती हैं।

-क्रमशः

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