जलते जंगल, सोती सरकार

सुरेश कुमार, योल

सुबह के अखबार जंगलों में आग की दुर्घटनाओं से अटे पड़े रहते हैं। सब जान जाते हैं, पर सरकार के ऊपर असर नहीं होता। मुट्ठी भर वन कर्मी भला कैसे ये सब संभालेंगे। केंद्र ने 64 प्रतिशत हिमाचली क्षेत्र वनों के अधीन किया और आग ऐसा तांडव मचा रही है कि न जमीन ही रही और न जंगल। पिछली सरकार ने कुछ नहीं किया तो यह सरकार भी ऐसे ही अपना टाइम निकाल कर चली जाएगी। वन कर्मियों को बूंदकें थमाने के बारे में भी सुना और अब यह सुन रहे हैं कि वन कर्मी जंगलों की आग को झाडि़यों से बुझा रहे हैं। न आग बुझाने के उपकरण हैं और न ही दूसरे बंदोबस्त। ऐसे वन कैसे बचेंगे। आग न हो तो वन माफिया वनों को नहीं छोड़ता और वन माफिया न हो तो गर्मियों में आग से जंगल स्वाह हो जाते हैं। हिमाचल की 64 प्रतिशत जमीन जंगलों के हवाले है, यानी 64 प्रतिशत जमीन जलने का परमिट केंद्र ने दे दिया है। हर साल गर्मियों में करोड़ों की वन संपदा राख हो जाती है और हर साल बरसात में हिमाचल को करोड़ों का नुकसान हो जाता है। केंद्र से आपदा का जायजा लेने आने वाली टीम ही अपने ऊपर करोड़ों खर्च कर देती है, पर हिमाचल को मिलता कुछ भी नहीं। सिर्फ राजनीति के रंग में रंगा हिमाचल सब कुछ गंवाता जा रहा है। न जंगल बच रहे हैं, न जमीन, न पानी बच रहा है, न ही बिजली। हमें ऐसे ही हिमाचल में जीना है, जो लोकसभा की चारों सीटें तो सत्तापक्ष की झोली में डाल दे, पर हिमाचल की झोली फिर खाली की खाली।

अपना सही जीवनसंगी चुनिए| केवल भारत मैट्रिमोनी पर-  निःशुल्क  रजिस्ट्रेशन!