परमात्मा को जानना सबसे बड़ा सुख

चंबा —निरंकारी मंडल भवन मुगला में आयोजित साप्ताहिक सत्संग में रविवार को निरंकारी महात्मा जियालाल ने श्रद्धालुओं को प्रवचन देकर भक्ति विभोर किया। महात्मा ने प्रवचनों की अमृतवर्षा करते हुए कहा कि न केवल परमात्मा को जानना बल्कि परमात्मा की मानना भी जरूरी है। परमात्मा की मानने में तभी आनंद है जब हम परमात्मा को जान लेते हैं। इसीलिए कहा गया है कि पहले जानो फिर मानो। महात्मा ने कहा कि परमात्मा कण-कण में व्याप्त है। इसका बोध पूर्ण गुरु द्वारा ही संभव है। मगर परमात्मा के बोध का सही आनंद तभी आता है जब हम सदगुरु के बताए रास्ते पर चल पाएं। उन्होंने कहा कि सद्गुरु का यहीं संदेश है कि गृहस्थ जीवन में रह कर ही इनसानियत की सेवा करें। दूसरों के दुख बांटे वहीं दूसरों की खुशी में भी सहभागी बने। ईश्वर को वह लोग प्रिय हैं जो इंसानियत से प्यार करते हैं। परोपकारी जीवन जीते हैं और जहां भी मौके मिले दूसरों के हमदर्द बनने के प्रयास में रहते हैं। महात्मा ने कहा कि परमात्मा को बोध करके हम ब्रह्मज्ञानी तो कहलाते हैं मगर वास्तविक निरंकारी हम तभी कहलाते हैं जब सद्गुरु के उपदेशों का अनुसरण करते हैं।

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