बीबीएन की झुग्गियों में सिसकती मजबूरी

 बीबीएन —मजदूर दिवस यानी मेहनतकश मजदूरों का दिन, लेकिन इस दिवस के मायने, शायद उन मजदूरों के लिए कुछ भी नहीं, जिनके नाम पर इसे दुनिया भर में मनाया जा रहा है। ऐसा ही हाल प्रदेश के सबसे बड़े औद्योगिक क्षेत्र बीबीएन (बद्दी-बरोटीवाला-नालागढ़) के हजारों उद्योगों में कार्यरत मजदूरों का है। ये लोग जानते है कि पहली मई का दिन उनके लिए समर्पित है, लेकिन उनके सामने परिवार के लिए दो जून की रोटी जुटाना इस दिन को मनाने से ज्यादा जरूरी है। आंकड़ांे पर गौर फरमाएं तो बीबीएन के करीब अढ़ाई हजार उद्योगांे में ही दो लाख से ज्यादा मजदूर प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष तौर पर कार्यरत हैं। इनमें से कितनों को रिहायश, पहचान पत्र, न्यूनतम वेतन, ईएसआई व पीएफ की सुविधा मिलती है, यह किसी से छिपा नहीं हैं। यही नहीं, महिला मजदूरोंं तक को नाममात्र उद्योग ही मुलभूत सुविधाएं मुहैया करवा रहे हैं। बीबीएन में आलम यह है कि गिनती के बड़े उद्योगों को छोड़ किसी ने मजदूरों की रिहायश का इंतजाम नहीं किया है। ऐसे में न्यूनतम मजूदरी पर गुजर-बसर करने वाला यह तबका झुग्गी-झोपडि़यों में रहने को विवश हैं। हालात यह हैं कि आवासीय सुविधा के अभाव में उन्हें एक कमरे में 10-10 की तादाद में रहना पड़ रहा है। बीबीएन में 10 हजार से ज्यादा झुग्गियां स्थापित हैं। प्रवासी मजदूरों की दिक्कतोंं को समझते हुए बीबीएन प्राधिकरण ले लो कॉस्ट हाउसिंग स्कीम शुरू की है, लेकिन इसको लेकर भी निजी भूमि मालिक उत्साह नहीं दिखा रहे है। प्राधिकरण अपने स्तर पर सस्ते आवास बनाकर मुहैया करवाने की योजना पर काम कर रहा है, लेकिन यह योजना भी फाइलों में ही धूल फांक रही है। उधर, मजदूर नेताओं का कहना है कि ईएसआई के तहत पंजीकृत दुर्घटनाग्रस्त हुए मजदूरों या उनके आश्रितों को देर-सवेर कुछ न कुछ मुआवजा तो मिल ही जाता है, लेकिन जिन मजदूरों का उद्यमी या फिर लेबर ठेकेदार पंजीकरण नहीं करवाते, उनकी हालत बेहद दयनीय है क्योंकि उन्हें दुर्घटना की स्थिति में मुआवजा भी नहीं मिल पाता। बद्दी के पास ईंट भट्ठे पर कार्यरत रवि व सागरिया का कहना है कि मजदूर दिवस पर बड़ी-बड़ी रैलियां निकलती हैं। उनमें नेताओं को सुनकर ऐसा लगता है कि मजदूरों कोई समस्या बचेगी ही नहीं, लेकिन आज तक कुछ नहीं हुआ।

आवास का इंतजाम होना चाहिए

इंटक के प्रदेश अध्यक्ष हरदीप बावा का कहना है कि बीबीएन में आवासीय सुविधा की कमी मजदूरों के लिए परेशानी का सबब बन चुकी है। सरकार को चाहिए कि वह उद्योगपतियों पर उन्हें सुविधा मुहैया करवाने के लिए दबाव बनाए। उन्होंने न्यूनतम वेतन बढ़ाने की भी मांग की है ।

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