बृजराज मंदिर

हिमाचल प्रदेश का नूरपुर नगर ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। यहां स्थित प्रमुख किला समुद्रतल से 2125 फुट की ऊंचाई पर बना हुआ है। बृजराज मंदिर भी इसी विशालकाय किले के भीतर स्थित है। यही नहीं, यह मंदिर किसी मंदिरनुमा स्थल जैसा नहीं बल्कि राजाओं के ‘दरबार- ए खास’ स्थान पर बना हुआ है। मंदिर की भित्तिकाओं पर विभिन्न कृष्ण लीलाओं का चित्रण किया गया है। ये मनमोहक कला चित्र समय के थपेड़ों से धुंधले पड़ चुके हैं, परंतु कांगड़ा कलम के चित्रकारों की कला को आज भी चार चांद लगाते हैं। देश-विदेश से आए श्रद्धालू एवं पर्यटक कृष्ण लीलाओं को इन अद्भुत चित्रों में ढूंढते नहीं थकते। इस मंदिर की विशेषता यह है कि बृजराज कृष्ण और उनकी अनन्य भक्त मीरा की नृत्य करती मूर्ति निचले कक्ष में स्थापित न करके ऊपर दरबार- ए खास में सुशोभित हो रही है। इन्हें शीशों द्वारा प्रतिबिंबित कर श्रद्धालू नीचे से भी दर्शन कर सकते हैं। ऊपरी मंजिल को पौडि़यों के दरवाजे से प्रवेश है। भीतर जाने पर तत्कालीन राजाओं के रहन- सहन, उनके शौक और ईश्वर प्रेम की प्रवृत्तियों को देखने का अवसर मिलता है। बृजराज कृष्ण श्याम आभा में तो भक्त मीरा पीले रंग की अष्टधातु से निर्मित मूर्तियां मानों साक्षात रूप में विराजमान हों। श्रद्धालू तो उनके समक्ष खड़े मंत्रमुग्ध ही रह जाते हैं। बृजराज मंदिर के इतिहास से भी कुछ रहस्यमयी बातें जुड़ी हुई हैं। किंवदंती अनुसार सन् 1619 से 1623 ई.के दौरान नूरपुर रियासत के राजा जगत सिंह अपने राजपुरोहित के साथ चित्तौड़गढ़ के राजाधिराज के आमंत्रण पर वहां गए। वहां के राजा ने इन दोनों को ठहरने के लिए जो कमरा दिया, उसके साथ ही एक मंदिर था।

आधी रात के समय मंदिर में घुंघरुओं की आवाज सुनाई दी। राजा ने कमरा खोल कर देखा तो वह अचंभित रह गया। बंद मंदिर में कोई औरत भजन गाती और नृत्य करती दिखाई दी। राजा ने अपने पुरोहित को इस बारे में सूचना दी। राज पुरोहित ने राजा को सलाह दी कि जब यहां से प्रस्थान करें, तो मेजबान राजा से उपहार स्वरूप इन प्रतिमाओं को मांग लेना। चित्तौड़गढ़ के महाराज ने सम्मानपूर्वक वे मूर्तियां तथा एक मौलसरी का पेड़ उपहार स्वरूप भेंट किया। नूरपुर लौट कर राजा जगत सिंह ने इन मूर्तियों को वर्तमान बृजराज मंदिर में स्थापित किया और ठीक द्वार के सामने मौलसरी पेड़ की स्थापना की। काले रंग के संगमरमर की कृष्ण की भव्य मूर्ति राजस्थानी कला की जीती जागती मिसाल है। कृष्ण भगवान के सामने अष्टधातु की पीले रंग में नृत्य करती मीरा की अनूठी मूर्ति देखते ही बनती है। मंदिर के ठीक सामने मौलसरी का विशालकाय पेड़ तत्कालीन समय के साक्षी रूप में खड़ा है।

– नंद किशोर परिमल, देहरा

अपने सपनों के जीवनसंगी को ढूँढिये भारत  मैट्रिमोनी पर – निःशुल्क  रजिस्ट्रेशन!