भगवान शिव की उपासना का फल

भद्रायु ने अपने पिता के शत्रुओं पर आक्रमण कर उन्हें मार भगाया और राज्य को अपने अधीन कर अपने पिता को बंदी गृह से मुक्त किया। इसका यश चारों ओर फैल गया। भद्रायु ने वर्षों तक सुखपूर्वक राज्य किया…

-गतांक से आगे…

मृत्युंजय मंत्र की महिमा

दशार्ण देश (वर्तमान में मध्य प्रदेश) के राजा बज्रबाहु की सुमिति नाम की पटरानी थी। एक बार जब वो गर्भवती थी तो उसे उसी के महल की दासी ने जहर दे दिया। भगवत कृपा से उसका गर्भस्थ भ्रूण विनष्ट तो नहीं हो पाया, किंतु वह व्रण युक्त हो गया। फलतः जिस बालक का जन्म हुआ, उसका शरीर भी व्रण से मरा हुआ था। दोनों मां-बच्चे का जिस्म घावों से भर गया।

राजा ने अनेक उपचार किए, किंतु कुछ भी लाभ नहीं हुआ। सुमिति से द्वेष रखने वाली अपनी अन्य पटरानियों की सलाह से राजा ब्रजबाहु ने उसे उसके बच्चे के साथ एक बियाबान जंगल में छुड़वा दिया। वहां वह छोटी सी कुटिया बनाकर रहने लगी। किंतु उसके घावों का वहां भी अंत नहीं हुआ।

घावों की पीड़ा से पीडि़त उसका जिस्म कमजोर पड़ने लगा। शरीर में मूर्छा आने लगी। उसके पुत्र को तो काल ने पहले ही कवलित कर लिया। जब उसकी चेतना लौटी तो दुखी हो उसने भगवान शिव से अपने घावों को दूर करने के लिए प्रार्थना की।

हे प्रभो, आप सर्वव्यापक हैं, सर्वशक्तिमान हैं, दीनबंधु दुखहारी मैं आपकी शरण में हूं। अब मुझे एकमात्र आपका ही आसरा है। उसकी इस करुणामय कातर वाणी से दयामय आशुतोष का आसन हिल उठा। शिवयोगी प्रकट हुए और उन्होंने सुमिति को मृत्युंजय मंत्र का जाप करने की सलाह दी तथा अभिमंत्रित भस्म को उसके तथा उसके बच्चे के शरीर से लगा दिया। भस्म के स्पर्श मात्र से ही उसकी सारी व्यथा दूर हो गई और मृत बालक पुनः जीवित हो उठा। शिवयोगी ने बालक का नाम भद्रायु रखा। सुमिति और भद्रायु दोनों मृत्युंजय जाप का जप करने लगे।

उधर राजा ब्रजबाहु को अपनी निर्दोष पत्नी तथा पुत्र को कष्ट देने का दंड भी भुगतना पड़ा। उसके राज्य को उसके शत्रुओं ने तहस-नहस कर दिया। राजा को बंदी गृह में डाल दिया गया। एक दिन भद्रायु के मंत्र से प्रसन्न हो शिवयोगी पुनः प्रकट हुए।

उन्होंने उसे एक खड़ग और एक शंख दिया तथा बारह हजार हाथियों का बल देकर वे अंतर्ध्यान हो गए। भद्रायु ने अपने पिता के शत्रुओं पर आक्रमण कर उन्हें मार भगाया और राज्य को अपने अधीन कर अपने पिता को बंदी गृह से मुक्त किया। इसका यश चारों ओर फैल गया। भद्रायु ने शिव पूजा करते हुए वर्षों तक सुखपूर्वक राज्य किया और अंत में शिवसामुन्य को प्राप्त हुआ। यह मृत्युंजय मंत्र के जप का लोकोत्तर महात्मय है। ज्योतिषी आज भी इस मंत्र की महिमा के बारे में कहते और लिखते हैं कि यदि 125000 बार महामृत्युंजय का जाप किया जाए तो अरिष्ट ग्रह का निवारण, आयुष्य वर्धनार्थ, अपघात या बच्चों को अल्प मृत्यु से बचाया भी गया है।

यदि किसी बच्चे की आयु बहुत कम हो और जो बच्चे 10-15 दिन में मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं, उनको प्रसव से पहले या प्रसव के तुरंत बाद महामृत्युंजय के जाप से बचाया जा सकता है। सनातन धर्म में विश्वास रखने वाले लोगों के बीच यह मंत्र काफी प्रचलित है जिसके जाप के महत्त्व को लोग बखूबी जानते हैं।

-क्रमशः

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