कैंसर व हार्ट अटैक जैसी बीमारी को दूर करने के लिए सर्वप्रथम लघुरुद्र या नाम-चमक रुद्राभिषेक करके अक्षीभ्यां जल द्वारा शिव निर्मालय से रोगी को मार्जन करें। उसका कुछ जल रोगी को पिलाएं। इससे कैंसर आदि रोग भगवान की कृपा से दूर हो जाते हैं तथा औषधि सेवन सफल होता है। यदि व्यक्ति मृत्यु के निकट हो और उसे बचाना अभीष्ट हो तो तत्काल सिद्धि हेतु महामृत्युंजय जप के 108 जप करें। मृत्तिक के शिवलिंग पर अभिषेक करके प्रत्येक मंत्र के पश्चात श्वेत द्वर्वा, काला तिल व शहद मिलाकर चढ़ाएं, बाद में अनुष्ठान करें…
-गतांक से आगे…
इस महामृत्युंजय जप के अनेक तरह के अनुष्ठान और प्रयोग प्रचलित हैं, उनमें से एक छोटा, सरल प्रयोग निम्न है, जिसे कोई भी व्यक्ति सरलता से कर, देख सकता है।
अथ ध्यानं
ओउम हस्ताभ्यां कलशद्वयामृतरसै राप्लावयंत शिरो।
द्वाभ्यां तौ दधतं मृगाक्षवलये द्वाभ्यां वहंत परम।।
अंकन्य स्तक द्वयामृतघटं कैलाश सकांतं शिवे।
स्वैच्छाम्भोजगतं नवेन्दुमुकुटाभांतात्रिनेत्रं भजे।।
मृत्युंजय महादेव त्राहिमां शरणागतम।
जन्म मृत्युजरारोगैः पीडि़तं कर्मबंधनैः।।
अथ बृह-मंत्र की पांच माला जप।
ओउम हों ओउम जूं सः भूर्भव स्वः त्रयम्वकं।।
जप विधि : संकल्प, गायत्री मंत्र की एक माला, महामृत्युंजय की पांच माला, लघुरुद्र या अनुष्ठान के अंत में पुनः गायत्री की एक माला। विशेष : यदि व्यक्ति मृत्यु के निकट हो और उसे बचाना अभीष्ट हो तो तत्काल सिद्धि हेतु महामृत्युंजय जप के 108 जप करें। मृत्तिक के शिवलिंग पर अभिषेक करके प्रत्येक मंत्र के पश्चात श्वेत द्वर्वा, काला तिल व शहद मिलाकर चढ़ाएं, बाद में अनुष्ठान प्रारंभ करें।
वर्षा न होने पर
चातुर्माष में वर्षा न हो, तब महादेव पर सहस्र (1111) घट से रुद्राभिषेक करके उसमें यजुवेदोक्त निम्न मंत्र का प्रति अध्याय पर संपुट दिया जाए, उससे वर्षा होती है :
ओउम अपां गंभन्सीद मा त्वा सूर्याअपि ताप्सी माअग्नि वैश्वानरः।
अच्छिन्नपत्राः प्रजा अनुवीक्षस्वानु त्वा दिव्या वृष्टिः सचनाम।।
इसके बाद इंद्रे 3 हि, वरुणे 3 हि, वापी कूप तडाग सरितादि परिपूरम-यह तीन बार बोला जाए। यदि उक्त मंत्रों का अलग से नाभि तक जल में खड़े रहकर ब्राह्मणों द्वारा जप भी करवाया जाए तो वर्षा होती है।
कैंसर व हृदय रोग से मुक्ति के लिए
कैंसर व हार्ट अटैक जैसी बीमारी को दूर करने के लिए सर्वप्रथम लघुरुद्र या नाम-चमक रुद्राभिषेक करके अक्षीभ्यां जल द्वारा शिव निर्मालय से रोगी को मार्जन करें। उसका कुछ जल रोगी को पिलाएं। इससे कैंसर आदि रोग भगवान की कृपा से दूर हो जाते हैं तथा औषधि सेवन सफल होता है।
विनियोग : अक्षीभ्यामिति षण्णां विवृहा ऋषिः अनुष्टुप, छंदः यक्ष्महा देवता आपोतिहष्ठेति तिसृणां सिंधुद्वीप ऋषिः गायत्री छंदः आपो देवताः सर्व रोग शांतयर्थ अभिषेवेकोदकेन अस्य अमुक (नाम) रोगिणोपरि मार्जने विनियोगः।