मुक्तिनाथ धाम

हिंदू और बौद्ध दोनों की आस्था है

आज से करीब दो अरब वर्ष पूर्व पृथ्वी पर सृष्टि की शुरुआत हुई थी। विश्व बह्मांड में सभ्यता की शुरुआत जंबूद्वीप के आर्यावर्त से हुई थी। पृथ्वी सात द्वीपों में विभाजित थी। उसमें सर्व प्रथम मानव सभ्यता का विकास सरीसृप युग के बाद जंबूद्वीप में हुआ। उस जंबूद्वीप में चार क्षेत्र, चार धाम, सप्तपुरी आदि का वर्णन मिलता है। उस क्षेत्र में प्रमुख मुक्ति क्षेत्र हिमवत खंड हिमालय नेपाल में पड़ता है। नेपाल के पूर्व दिशा में वराह क्षेत्र नेपाल से बहने वाली गंडकी नारायणी और गंगा के संगम में हरिहर क्षेत्र और विश्व प्रसिद्ध कुरुक्षेत्र भारत में पड़ता है। शांडिल्य ऋषि द्वारा संरक्षित गंडकी नदियों में प्रमुख काली गंडकी में अवस्थित शालिग्राम पर्वत और दामोदर कुंड के बीच भाग में त्रिदेवों में एक ब्रह्मा ने मुक्तिक्षेत्र में यज्ञ किया था। उस यज्ञ के प्रभाव से अग्नि ज्वाला रूप में रुद्र भगवान शिव और शीतल जल के रूप में भगवान नारायण विष्णु उत्पन्न हुए थे। इसी से सर्व पाप विनाशिनी मुक्तिक्षेत्र का प्रादुर्भाव हुआ था और उस में सती वृंदा के श्राप से शिला रूप होने का जो श्राप भगवान विष्णु को मिला था, उस श्राप से मुक्ति के लिए शालिग्राम शिला के रूप में उत्पन्न हुए थे। इसलिए इस क्षेत्र का नाम मुक्तिक्षेत्र पड़ा। भगवान मुक्तिनाथ एवं मुक्तिक्षेत्र की महत्ता पूजा-अर्चना वैदिक काल एवं पौराणिक काल से अनवरत चली आ रही है। उपनिषद एवं ब्रह्मसूत्र तथा स्कंद, वाराह, पद्म, ब्रह्मांड सहित सभी पुराणों में मुक्तिक्षेत्र व शालिग्राम का विस्तार से वर्णन मिलता है। श्री भगवान मुक्तिनाथ नारायण का स्वरूप, आदि शालिग्राम स्वरूप जो सती वृंदा के श्राप के कारण भगवान विष्णु ने गंडकी नदी में शिला रूप धारण करके मोक्ष प्राप्त किया था। अन्य शालिग्राम भगवान नारायण की आज्ञा स्वरूप विश्वकर्मा ने बज्रकीट के रूप धारण करके सहस्र वर्षों तक विभिन्न रूपों एवं शालिग्राम शिला निर्माण करके शालिग्राम पर्वत प्रकट किए। ऐतिहासिक काल में आदि शालिग्राम गर्भगृह में स्थापित करके बाहर भगवान नारायण की मूर्ति मुक्तिनाथ नारायण तथा बुद्ध भगवान लोकेश्वर जैसी भी लगती है। इसलिए यह हिंदू और बौद्ध धर्म को मानने वालों के बीच आस्था और धार्मिक सहिष्णुता का केंद्र बना हुआ है। विभिन्न पुराणों में वर्णित कथानुसार भगवान श्री बद्रीनाथ और मुक्तिनाथ के बीच में अनन्य संबंध है क्योंकि भगवान बद्रीनाथ के गर्भगृह में शालिग्राम भगवान की पूजा होती है। इसी तरह भगवान जगन्नाथ का भी दारु विग्रह है और उनके गर्भगृह में भी शालिग्राम भगवान की पूजा होती है। मुक्तिनाथ धाम के दामोदर कुंड जलधारा और गंडकी नदी के संगम को काकवेणी कहते हैं। इस जगह पर तर्पण करने से 21 पीढि़यों का उद्धार हो जाता है। रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि का आश्रम भी गंडकी नदी के किनारे स्थित था। यहीं पर देवी सीता ने लव-कुश को जन्म दिया था। आज से 300 साल पहले अयोध्या में जन्मे अद्भुत बालक स्वामी नारायण ने भी काकवेणी के मध्य एक शिला पर कठोर तप करके सिद्धि प्राप्त की थी।

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