यह संघर्ष विराम बेमानी!

बेशक गोलीबारी सीमापार से हो, पाकिस्तान मोर्टार के गोले दागता रहे और प्रतिक्रिया में बीएसएफ  के जवान पाक रेंजर्स को ढेर करें और उनकी चौकियां तबाह कर दें। दोनों ही स्थितियों में संघर्ष विराम बेमानी साबित होता है। जब रमजान के पाक महीने के दौरान संघर्ष विराम को तोड़ा जाए और आतंकी भी हमले करने की कोशिश करें और सुरक्षा बल भी बाल-बाल बचें, तो रमजान के दौरान संघर्ष विराम का फैसला हास्यास्पद और सवालिया लगता है। आखिर किस फीडबैक पर केंद्र सरकार ने रमजान के दौरान एकतरफा संघर्ष विराम का ऐलान किया? प्रधानमंत्री मोदी न तो प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का स्थान ले सकते हैं और न ही कश्मीर में पीडीपी भाजपा की स्वाभाविक सहयोगी बन सकती है। पीडीपी ने अपने जनाधार को संबोधित करना था, उसका वह मकसद कमोबेश पूरा हुआ। संघर्ष विराम न तो वाजपेयी सरकार के दौरान सार्थक साबित हुआ था और न ही मोदी सरकार में हो रहा है। तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी की उम्मीद थी कि सीमापार और कश्मीर में शांति स्थापित होगी। नियंत्रण रेखा और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर घुसपैठ रुकेगी, लेकिन हुआ इसके उलट ही। 2000-01 के संघर्ष विराम के दौरान 197 जवान ‘शहीद’ हुए और 391 नागरिक मारे गए। संघर्ष विराम का सम्मान किया जाता, तो 712 आतंकी हमले क्यों होते? इस बार के संघर्ष विराम में तो पाकिस्तान ने आपसी मानवीय रिश्तों की तमाम लक्ष्मण-रेखाएं ही पार कर दीं। कश्मीर के अखनूर में पाकिस्तान की ‘ना’ पाक गोलीबारी ने मात्र 8 महीने की बच्ची की जिंदगी ही छीन ली। इससे कायराना हरकत और क्या हो सकती है! जम्मू के आरएस पुरा में बीएसएफ  का जवान ‘शहीद’ हो गया। आधा दर्जन नागरिक भी मारे गए। पाकिस्तान रेंजर्स के हमले का जब मुंहतोड़ जवाब बीएसएफ  के जवानों ने दिया था, तो पाकिस्तान ने रहम की गुहार की थी, लेकिन एक रात बाद ही सीमापार से मोर्टार के जो गोले दागे गए, अंधेरे में भी गोलीबारी जारी रही, सोमवार की रात करीब 9 बजे पाकिस्तान ने फिर फायरिंग शुरू कर दी, निशाने पर रिहायशी इलाके थे, लोगों को पलायन करना पड़ रहा है, करीब 150 स्कूल बंद करने पड़े हैं, तो इसके मायने साफ हैं कि पाकिस्तान के लिए संघर्ष विराम बेमानी है। ऐसे हमलों और जानलेवा हिंसा पर मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ‘शाब्दिक आंसू’ बहाने में सबसे आगे हैं। आखिर रमजान में संघर्ष विराम का हासिल क्या रहा? सवाल है कि जब आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, तो रमजान की आड़ में संघर्ष विराम का ऐलान क्यों किया गया? कश्मीर के संदर्भ में देश यह सवाल जरूर पूछेगा। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में जम्मू-कश्मीर का दौरा किया। जोजिला सुरंग का शिलान्यास और पनबिजली परियोजना का उद्घाटन किया और गुमराह नौजवानों को मुख्यधारा में लौटने की अपील की। कश्मीर में कौन सुनता है प्रधानमंत्री का आह्वान! क्या भटके हुए युवा अपने कश्मीर की कीमत आंकते रहे हैं या बंदूक, जेहाद ही उनकी आखिरी अभिव्यक्ति बनकर रह गए हैं? ऐसे माहौल में सेना की कथित नई रणनीति कुछ चौंकाती है। जम्मू-कश्मीर में इस साल 70 से ज्यादा आतंकियों को ढेर करने वाली सेना और सुरक्षा बल अब आतंकियों को मारने के बजाय जिंदा पकड़ने की बात कह रहे हैं। यह उनकी रणनीति में बदलाव है। लिहाजा ‘उन्हें जिंदा पकड़ो’ नारा दिया गया है। मकसद यह बताया जा रहा है कि आतंकियों के लिए जमीन पर काम करने वाले नेटवर्क को ध्वस्त करना है। इसी नेटवर्क की युवाओं को कट्टर बनाकर जेहाद में धकेलने में अहम भूमिका है। रणनीति के तहत बताया जा रहा है कि आतंकियों को जिंदा पकड़ कर उनकी शिकायतों को समझने की कोशिश की जाएगी। खुफिया लीड मिली है कि आतंकी बन चुके कई नौजवान अब लौटना चाहते हैं। कुछ अभिभावकों ने भी सेना के अधिकारियों से संपर्क किया है। अब वे ही परिजन आतंकियों को आत्मसमर्पण के लिए तैयार करेंगे। बहरहाल यह रणनीति कामयाब रहे, हमारी शुभकामनाएं हैं, लेकिन आतंकवाद इतना सीधा मामला नहीं है। हम अभी तक पत्थरबाजों को नियंत्रित नहीं कर पाए हैं, उन्हें मनाकर स्कूल-कालेज नहीं भेज पाए हैं, रोजगार तो अभी दूर की कौड़ी है। क्या आत्मसमर्पण करने वाले आतंकियों के लिए सरकार ने कोई योजना तैयार की है? इस मुद्दे पर हमारी निगाह रहेगी, लेकिन मोदी सरकार को तुरंत प्रभाव से संघर्ष विराम समाप्त कर देना चाहिए। इससे मुस्लिम भी नाराज नहीं होंगे।

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