विकास खातों का विद्रोह

हिमाचली सत्ता किसी कांग्रेसी विधायक के सुझाव-आक्रोश पर पर्दा डाल सकती है, लेकिन जिस अंदाज और तर्क के आधार पर सरकाघाट के विधायक इंद्र सिंह ठाकुर जाहू में हवाई अड्डे की मांग उठा रहे हैं, उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। इंद्र सिंह ठाकुर द्वारा उठाए गए मुद्दे के कई आयाम हो सकते हैं, लेकिन संभावनाओं का अक्स अगर किसी तरह के क्षेत्रवाद में फंसे, तो अपने घर का घी भी पिघल जाएगा। यही मंडी में प्रस्तावित एयरपोर्ट का नक्शा बता रहा है कि किस तरह जाहू की संभावना को छूने तक की कोशिश नहीं हो रही है। विडंबना यह है कि एक ही जिला के भीतर अगर सरकाघाट अछूत हो रहा है, तो विकास की समग्रता में राजनीति न जाने कब तक अपने-अपने चूजों को ही पुरस्कृत करती रहेगी। हिमाचली विकास को हम केवल एक एयरपोर्ट से न तो हासिल कर सकते हैं और न ही मुकम्मल, फिर भी औचित्य को तराशे बिना अगर सत्ता हमेशा अपने दायरे बड़े करती रहेगी, तो हमारे वजूद में हमेशा सियासी खरोंचें दिखाई देंगी। ऐसी बहुत सी परियोजनाएं हैं, जो आपसी खींचतान में उजड़ गईं या औचित्य हार गईं। कमोबेश हर सत्ता ने व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षा के कारण अतार्किक फैसले लिए हैं और जिनका खामियाजा जनता को उठाना पड़ रहा है। हवाई अड्डे का निर्माण किसी सियासी बिंदु के बजाय भौगोलिक व आर्थिक क्षमता का निरूपण होना चाहिए, इसलिए सर्वेक्षण की परिपाटी का विस्तार जाहू समेत पूरे हिमाचल के परिदृश्य में करना होगा। अगर भाजपा अपनी सरकार को अगले दस साल तक चलाने का ख्वाब देख रही है, तो फैसलों और पद्धति की ईमानदारी में अपने एक विधायक के तर्क सुने। हमारा यह भी मानना है कि जिस तरह प्रशासनिक फेरबदल अपरिहार्य बन रहा है, उसी तरह मंत्रियों के विभागों में फेरबदल होना चाहिए। सरकार के संतुलन में राज्य का प्रदर्शन केवल नौकरशाही या कार्यसंस्कृति नहीं, बल्कि मंत्रियों की काबिलीयत व इच्छाशक्ति से भी जुड़ता है। मात्र कह देने से न तो अस्पतालों की स्थिति में बदलाव और न ही शिक्षा में गुणात्मक सुधार आएगा। कांगड़ा के दो मंत्रियों के युद्ध क्षेत्र में धर्मशाला न तो स्मार्ट सिटी का एक भी कदम उठा पाएगा और न ही नगर निगम अपना अधिकार क्षेत्र स्थापित कर पाएगा। ऐसे में कितने नगर आयुक्त बदलेंगे। अगर जयराम सरकार को अगले दस साल का खाका बनाना है, तो हर विभाग के अधिकारियों से पूरे प्रदेश की संभावनाओं का ईमानदारी से आकलन कराएं। प्रदेश के भौगोलिक संतुलन पर राजनीति का वर्तमान ढर्रा अमान्य है। इसे हम चिकित्सा के वर्तमान ढांचे में देख सकते हैं। जिस तरह मेडिकल कालेजों को सियासी धुरी में सजाया गया, उसे हम नागरिक जरूरतों के मुआयने से अलग ही देखेंगे। शिमला के आईजीएमसी का विस्तार अगर नहीं हो पा रहा है, तो भविष्य की रूपरेखा है क्या। टांडा मेडिकल कालेज अगर तड़प रहा है तो स्वास्थ्य सेवाओं का औचित्य बिलासपुर में एम्स के किस धरातल पर खड़ा होगा। नेरचौक मेडिकल कालेज से एम्स की दूरी अगर चिकित्सकीय सेवाओं में गुणवत्ता लाने का एकमात्र समाधान है, तो फिर यह राजनीतिक शक्तियों का पैमाना ही माना जाएगा। यही शक्तियां कभी धूमल सरकार के दौरान भी सामने आईं और तब केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए धर्मशाला को अयोग्य ठहरा दिया गया था। राष्ट्रीय होटल प्रबंधन संस्थान की स्थापना के लिए पालमपुर-मनाली अयोग्य हो गए। कला, भाषा एवं संस्कृति विभाग की क्षेत्रीय खिड़की हमीरपुर में खुलती है, तो कृषि विश्वविद्यालय का अनुसंधान पालमपुर में होता है। हम कब तक एक-दूसरे को परास्त करते रहेंगे। हवाई अड्डे की स्थापना जैसे विषयों पर मांग आधारित सर्वेक्षण क्यों नहीं होता। मेडिकल कालेज या एम्स जैसे संस्थानों की स्थापना किसी सर्वेक्षण के आधार पर क्यों नहीं होती। बिना औचित्य कालेजों-स्कूलों का खुलना अगर एक सियासी रिवायत है, तो वर्तमान सरकार अगले दस सालों का नजरिया तो स्पष्ट करे। अगर एक साल में कांगड़ा हवाई अड्डे पर डेढ़ लाख यात्री उतर कर इसे देश के अग्रणी एयरपोर्ट्स क्लब में शामिल कर चुके हैं, तो इसके विस्तार की फाइल पिछले दस सालों से क्यों लटकी है। जाहू में भूमि, संभावना, भौगोलिक परिस्थिति और क्षेत्रीय संतुलन अगर हवाई अड्डे की बाट जोह रहे हैं, तो सर्वेक्षण यहां भी तो होना ही चाहिए। भाजपा विधायक इंद्र सिंह ठाकुर मात्र एक परियोजना का समर्थन नहीं कर रहे, बल्कि व्हिसल ब्लोअर की तरह सरकार की शैली को अलर्ट कर रहे हैं।

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