विष्णु पुराण

ये त्वनेकवसुप्राजदेवा ज्योति पुरोगमाः।

वसवोऽष्टौ समाख्यातास्तेषां वक्ष्यामि विस्तरम।

आपो धु्रवश्च सोमश्च धर्मश्चैवानिलोऽनलः।

प्रत्यषश्च प्रभासश्च वसवो नामिभः स्मृताः।

आपस्या पुत्रो वैंतण्उः श्रमः ध्वनिस्तथा।

धु्रवस्य पुत्रो भगवान्कालौ लोकप्रकालनः।

सोमस्य नगवान्वर्चा वर्चस्वी येन जायते।

धर्म य पुत्रौ द्रविणो हुतपव्यवहस्तथा।

मनोहरायां शिशिरः प्राणोऽथ वुरणस्तथा।

अनिलस्य शिवा भार्या तस्याः पुत्री मनोजवः।

अविशातगतिश्चैंव पुत्रावनिलस्य तु।

अग्निपुत्रः कुमारस्तु शरस्तम्बे व्यजायत।

तस्य शाखो विशाखश्च नैंगमेंयश्च पुष्ठजाः।

अत्यं कृत्तिकानां तु कार्तिकेय इति स्मृतः।

प्रत्यूषव्य विदुः पुत्रै मुषि नाम्नाथ देयलम्।

दौ पुत्रो हेवलस्यापि क्षमावंतौ मनीषिणौ।

विभिन्न प्रकार का वसु ही जिनका जीवन है। ऐसे वसु प्रसिद्ध है, अब मैं उनकी वंशावलि कहता हूं। वे आप, धु्रव, सोम, धर्म, अनिल, अनल प्रत्यूष और प्रभास नाम से विख्यात हैं। आपके चार पुत्र जिनके नाम वैतंड, श्रम, शांत और ध्वति थे। धु्रवका का पुत्र लोकों का संहार करने वाला काल हुआ। सोम के पुत्र बची हुए, जिनसे वर्चस्व की प्राप्ति होती है। धर्म ने अपनी पत्नी मनोहरा में द्रविण, हुत, ह्वयह, शिखर प्राण और वरुणा नामक पुत्र उत्पन्न किए। अनिल की पत्नी शिव के मनोजव और अविज्ञामगति नाम दो पुत्र हुए। अग्नि का कुमार नामक पुत्र सरकंडे से उत्पन्न हुआ। शाखा, बिशाख और नैगमेय उससे छोटे भ्राता हुए। कृत्तिकाओं का पुत्र कार्तिक हुआ। प्रत्यूषा के पुत्र देवल नामक ऋषि हुए, जिनके क्षमाशील एवं विद्वान पुत्र उत्पन्न हुए थे।

बृहरूवतेस्तु भगिनी वरस्त्री ब्रह्मचारिणी।

योगसिद्धा जगत्कुत्स्नमसक्ता विचरत्युत।।

प्रभासस्य ते स भार्या वसूनामष्टमस्य तु।

विश्वकर्मा महाभागस्तस्या जज्ञे प्रजापतिः।।

कर्ता शिल्पसहस्राणां त्रिदशानां च बर्द्ध की।

भूषणानां च सर्वेषां कर्ता शिल्पवतां वरा।।

यः सर्वेषां विमानानि देवतानां चकार ह।

मनुष्याश्चोपजीवंति यस्य शिल्पं महात्मनः।।

तस्य पुत्रास्तु चत्वांरस्तेषा नामानि शृणु।

अजैकपादहिबुध्यस्त्बष्टा रुद्रश्च वीर्यवान।।

त्वाष्टुश्चाप्यात्मजाः पुत्रो विश्वरूपी महातपाः।

हरश्च बहुतपश्च त्र्यम्बकश्चापराजितः।।

बृषाकपिश्च शम्भुश्च कपर्दी रैवत स्मृतः।

मृगाव्याधाश्च सर्वश्व कपाली च महामुने।।

एकादशैते कथितः रुद्रास्त्रिभुवश्नेवराः।

शत त्वेक समाख्यात रुद्राणाममितौजमाम्।।

अष्टमी वसु प्रभास का विवाह बृहस्पतिजी को ब्रह्मचारिणी और सिद्ध योगिनी बहिन वरस्त्री से हुआ। वह अनासक्त भाव से पृथ्वी पर भ्रमण करती फिरती थी। उसके द्वारा प्रभाव वसुने प्रजापति विश्वकर्मा को उत्पन्न किया जो सहस्रों शिल्पों के निर्माता, शिल्पियों में श्रेष्ठ देवशिल्पी हुए। उन्होंने देवताओं के सब विमानों की रचना की, इनकी शिल्प विद्या के आश्रम से अनेक मनुष्य अपने जीवन का निर्वाह करते हैं। विश्वकर्मा के अर्जकपाद, आहिर्बुध्न्य त्वष्टा और रुद्र नाम के चार पुत्र हुए। उसमें से त्वष्टा के पुत्र का नाम विश्वरूप हुआ। हे महामुने! हर बहुरूप त्र्यंबक, अपरजित, बृषाकामि शंभू, कापर्दी, रैवत, मृगव्याध, शर्व और कपाली कामक यह 11 रुद्र तीनों लोकों के अधीश्वर हुए। ऐसे सैकड़ों ही अत्यंत तेजस्वी एकादश रुद्र विख्यात हैं।

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