समस्याओं से निपटने के लिए पझौता किसान सभा का गठन

लोगों ने वहां पहली बैठक की और स्थिति से निपटने के लिए ‘पझौता किसान सभा’ का गठन किया। इस बैठक में  आंदोलन के लिए सभी जाति, वर्ग एवं धर्मों के लोगों को संगठित करने पर बल दिया गया। इसके प्रधान लक्ष्मी सिंह, गांव कोटला तथा सचिव वैद्य सूरत सिंह कटोगड़ा चुने गए..

पझौता किसान आंदोलन

घराट, रीत विवाह आदि अनुचित कर लगाए गए। कर्मचारी लोगों से अधिक बेगार लेने लगे और कई बार वे उनसे घी, अन्न आदि भी लेते थे। तरह-तरह के इन अनुचित आदेशों से हुई परेशानियों से छुटकारा पाने के उद्देश्य से लोग बड़ी आशाओं और उत्सुकताओं को लेकर पझौता के ‘गांव टपरौली’ में अक्तूबर, 1942 को एकत्रित हुए। उन्होंने वहां पहली बैठक की और स्थिति से निपटने के लिए ‘पझौता किसान सभा’ का गठन किया। इस बैठक मंे आंदोलन के लिए सभी जाति, वर्ग एवं धर्मों के लोगों को संगठित करने पर बल दिया गया। इसके प्रधान लक्ष्मी सिंह, गांव कोटला तथा सचिव वैद्य सूरत सिंह कटोगड़ा चुने गए। इसके अतिरिक्त टपरोली गांव के मियां गुलाब सिंह और अतर सिंह, जदोल के चूं चंू मियां, पेणकुफर के मेहर सिंह, धामला के मदन सिंह बघोह के जालम सिंह, नेरी के कलीराम शांवगी आदि-आदि। कुछ समय के पश्चात लक्ष्मी सिंह प्रधान को इस संगठन से निकाल कर उनके स्थान पर धामला गांव के मदन सिंह को प्रधान बना दिया गया।इस आंदोलन का समूचा नियंत्रण व संचालन वैद्य सूरत सिंह के अधीन था। उसने राजा राजेंद्र प्रकाश से पत्र द्वारा अनुरोध किया कि वह स्वयं लोगों की स्थिति जानने के लिए इलाके का दौरा करें तथा नौकरशाही द्वारा लोगों से दुर्व्यवहार, रिश्वतखोरी व झूठे मुकदमे बनाकर परेशान करने तथा बेगार बंद करने आदि अनेक मांगों पर ध्यान दें। लोग चाहते थे कि राजा अपनी आंखों से प्रजा के दुख-दर्द सुनने व देखने के लिए स्वयं आएं।  तत्कालीन सिरमौर नरेश राजेंद्र प्रकाश प्रभावी कर्मचारियों की चापलूसी पर आश्रित था और उन्होंने राजा को अपने लोगों से मिलने नहीं दिया और उसे विश्वास दिलाया कि लोग राजा का अपमान करना चाहते हैं, जो सत्य नहीं था। अतः मांगों पर विचार करने के बदले आंदोलन को दबाने तथा उसके मुख्य संचालकों को पकड़ने के लिए रामस्वरूप पुलिस अधिकारी के संचालन में पुलिस गांव धामला, हाब्बन भेजी गई। वह आंदोलन को दबा न सका। इसके पश्चात समूचा पझौता क्षेत्र सैनिक शासन के अधीन कर दिया गया। दो मास तक लोग बराबर ‘मार्शल लॉ’ के अधीन भी आंदोलन करते रहे। आंदोलनकारी कलीराम का मकान जला दिया गया और वैद्य सूरत सिंह के मकान को डाइनामाइट से उड़ा दिया गया। कमना नाम के एक व्यक्ति की गोली लगने से मृत्यु हो गई। दो मास के पश्चात सैनिक शासन और गोलीकांड के बाद सेना और पुलिस ने आंदोलनकारियों में मुख्य व्यक्तियों को गिरफ्तार कर लिया, जिनकी संख्या 69 थी। कुछ लोगों ने भाग कर रियासत जुब्बल में शरण ली। जुब्बल के राजा भक्त चंद ने उन्हें बड़ा सम्मान दिया। नाहन में एक ट्रिब्यूनल बैठाकर आंदोलनकारियों पर मुकदमे चलाए गए। इनमें से 14 को बरी कर दिया गया, तीन को दो-दो वर्ष का और 52 को आजन्म कारावास का दंड सुनाया गया।

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