बीरबल शर्मा
लेखक, मंडी से हैं
दरअसल प्रदेश में अवैध निर्माण, अवैध कब्जे, सरकार और जनता-यह सब एक ऐसा हमाम हो गया है, जिसमें सब नंगे हैं। सब ने मिल कर एक ऐसी व्यवस्था तैयार कर दी है, जिसकी परिणति शैल बाला शर्मा की शहादत है। गोलियों से छलनी करके मार देने की यह व्यवस्था हम सब ने मिल कर बनाई है। इस मामले में प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व वरिष्ठ नेता शांता कुमार की भी तीखी टिप्पणी सामने आई है। जरूरी रहेगा कि प्रदेश के वरिष्ठ बुद्धिजीवी भी इसे लेकर अमन की बात को बेबाकी से प्रकट करें, ताकि देर आए दुरुस्त आए ही सही, मगर कोई तो विकल्प व हल सामने आ सके। साफ लगता है कि यह कत्ल शैल बाला शर्मा का नहीं व्यवस्था का हुआ है। सिस्टम की हत्या हुई है, जो हमने मिल कर बनाया है। वोट की राजनीति ने यह व्यवस्था पैदा की है और वोट की राजनीति के पनपने व राजनीति को जनसेवा के बजाय कमाई का धंधा बनाने में हम सब लोग सांझा जिम्मेदार हैं। अपने को जनसेवक का नाम देने वाले अधिकांश राजनीतिज्ञों का दिल भी जानता है कि वोट की खातिर उन्होंने लोगों को तुष्टिकरण की चाल में फांस कर कितना गुमराह किया है। यदि राजनीतिज्ञ और प्रशासक सच को सच कहने की हिम्मत रखते, प्रशासक यदि राजनीतिज्ञों की इस वोट की खातिर तुष्टिकरण की हां में हां न मिलाने की हिम्मत रखते, तो आज यह स्थिति नहीं आती।
प्रदेश उच्च न्यायालय बार-बार बागीचों के नाम पर सरकारी जमीन पर कब्जों को हटाने के लिए आदेश दे रहा है, मगर मौके पर कितना असर हो रहा है, यह सब जानते हैं। अब सारा दोष सरकारी मशीनरी या अधिकारियों के मत्थे मढ़ देने से ही कुछ नहीं होगा। इस स्थिति की पराकाष्ठा पहली मई के दिन कसौली के मांडोधार में हुई है। कोर्ट के आदेशों से मंडी शहर में भी कुछ साल पहले पांच दर्जन के लगभग निर्माणों पर बुलडोजर चला था, बवाल तब भी मचा था। बिलासपुर, सुंदरनगर, पधर, चैलचौक, धर्मशाला समेत कई शहर-कस्बों में प्रशासन का पीला पंजा चला है। रोहड़ू क्षेत्र में सेब के हरे-भरे फलदार पेड़ों पर भी कुल्हाड़ी चली है। हाथापाई, धक्का-मुक्की और विरोध सब जगह हुआ है। मगर मांडोधार (कसौली) गोलीकांड ने जैसे तहलका ही मचा दिया है, जिसकी गूंज देश की सर्वोच्च अदालत तक जा पहुंची है। इस घटना से सबक लेना चाहिए कि राजनीतिज्ञ वोट की राजनीति को कुछ देर किनारे रख दें, आम आदमी सरकारी जमीन पर गड़ाई बेइमान नजर के चश्मे को उतार दे। नौकरशाह गलत को गलत ठहराने की हिम्मत जुटाएं, सरकारी अमला सही-गलत का ईमानदारी से आकलन करके कार्रवाई करे, तभी आने वाले दिनों में ऐसी किसी पुनरावृत्ति से बचा जा सकता है। अन्यथा इस समय जो पूरा हिमाचल अवैध निर्माण, अवैध कब्जों व बहुत कुछ और भी अवैध कहे जाने वाले विस्फोट के ढेर पर खड़ा है, इसका विस्फोट बहुत भयानक हो सकता है। कहीं नदी-नालों से 25 मीटर की दूरी है, तो कहीं प्राचीन मंदिरों से 90 मीटर के दायरे में आने वाले निर्माण हैं, तो कहीं सरकारी जमीन पर निर्माण और कब्जों की बात है, तो कहीं बिना नक्शा पास किए आशियाने तैयार करने की बात है। साडा जैसी सरकारी एजेंसी भी शहर से बाहर मुख्य मार्गों के साथ बसे गांवों के लोगों को भूत की तरह डराती है। सही मायने में हालात खतरनाक हैं। यह समय राजनीति करने का नहीं है। एक-दूसरे को कोसने का यह वक्त नहीं है। इसके लिए कोई सर्वमान्य हल तलाशना होगा। प्रदेश हित में विपक्ष को भी इसके साथ आना चाहिए, क्योंकि यह किसी एक दल या सरकार का मसला न होकर प्रदेश की 70 लाख जनता से जुड़ा मसला है। तभी हम इस समस्या का स्थायी हल निकाल पाएंगे।
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