सेवाओं तक मिले सुविधा

पारुल गुप्ता, रादौर, हरियाणा

आश्चर्य की बात है कि संविधान के नाम पर अपने पद और गोपनीयता की शपथ उठाने वाले राजनीतिज्ञ संविधान को ही अपने हाथ का खिलौना बना लेने की चेष्टा करते हैं और पांच वर्ष के लिए चुने जाने वाले राजनीतिज्ञ संवैधानिक प्रावधानों और छूटों को इस तरह तोड़ते-मरोड़ते हैं कि उनकी पांच वर्ष की राजनीतिक धाक ताउम्र बरकरार रहे और जनता उन्हें उसी स्वरूप में सलाम ठोकती रहे। अन्यथा कोई कारण नहीं है कि पूर्व मुख्यमंत्रियों को आजीवन सरकारी बंगला और उससे जुड़ी अन्य सुविधाएं इस्तेमाल करने दी जाएं। मगर यूपी में ऐसा ही हुआ और माननीय सर्वोच्च न्यायालय को एक बार फिर संविधान रक्षक के रूप में यूपी के दूषित कानून को रद्द करना पड़ा है। सर्वोच्च न्यायालय का तर्क न्यायोचित है कि पद से हटने के उपरांत एक राजनीतिज्ञ और आम आदमी में कोई अंतर नहीं रह जाता है। लोकतंत्र की रक्षा के लिए यह जरूरी भी है।

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