उचित है सीधी भर्ती?

राजेश कुमार चौहान

सबसे पहले तो यह कहना उचित होगा कि जब से देश आजाद हुआ है, तब से हर पार्टी की सरकार कुछ ऐसे फैसले लेती आई है जो बेरोजगार युवाओं के साथ बेइनसाफी वाले हैं। जो लोग पहले ही कहीं नौकरी कर रहे हैं, उन्हें और नौकरी का मौका देना कहां तक उचित है? देश में सरकारी नौकरी से रिटायर हुए अधिकारियों को दोबारा सरकारी विभागों में नौकरी करने के लिए आरक्षण भी दिया जाता है। ऐसे में दूसरे बेरोजगार युवाओं को रोजगार मिलने के चांस कम हो जाते हैं। मोदी सरकार जब से सत्ता में आई है, तब से यह अजीबो-गरीब फैसले लेकर सबको हैरान कर रही है। अब मोदी सरकार ने न जाने किस मंशा से सिविल सेवा में सीधी भर्ती का फैसला लिया है। यहां सवाल खड़े होते हैं कि क्या नौकरशाही में सरकार का हस्तक्षेप जरूरी है? सरकार को यूपीएससी द्वारा भर्ती हुए अधिकारियो पर कोई शंका है? जो युवा अपनी प्राथमिक पढ़ाई से लेकर उच्च शिक्षा तक कड़ी मेहनत करके सिविल सेवा में अफसर बनने का सपना संजोए बैठे हैं, क्या यह उनके साथ बेइनसाफी वाला फैसला नहीं है? क्या मोदी सरकार ने यूपीएससी की परीक्षा को पास करना खाला जी का बाड़ा समझा है? जिस देश में भ्रष्टाचार की जड़ें गहरी हो चुकी हों, उस देश में सिविल सेवा में सीधा भर्ती में भी क्या गड़बड़ होने के चांस नहीं होंगे? सीधी भर्ती प्रधानमंत्री मोदी खुद तो करेंगे नहीं, इस भर्ती की प्रक्रिया को भी तो कर्मचारी ही पूरा करवाएंगे। हम उस देश के नागरिक हैं, जहां भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है। ऐसे में क्या सीधी भर्ती प्रक्रिया में सत्ताधारियों, राजनेताओं या फिर अफसरों के चहेतों की भर्तियां ही नहीं होंगी? अंत में यह भी कहना उचित होगा कि कौन कहता है कि प्राइवेट सेक्टर में भ्रष्टाचार नहीं होता?

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