केजरीवाल के लिए चुनौती

राजेश कुमार चौहान

कुछ दिन पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपनी ही सरकार की डोर-टू-डोर राशन योजना को मंज़ूरी देने और सरकार के कामकाज का बहिष्कार करने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग के लिए एक बार फिर से नए मुद्दे पर धरने पर थे। एक अच्छा नेतृत्व वह होता है, जो अपनी सूझबूझ से हर चक्रव्यूह से खुद एवं अपनी सेना को बाहर निकालने में और अपने विरोधियों की चुनौतियों का हल निकालने में कामयाब हो। आप पार्टी को अगर एक सुलझा-समझदार और राजनीति का तजुर्बेकार नेतृत्व मिला होता, तो आज ‘आप’ देश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी होती। केजरीवाल ने जब भ्रष्टाचार के मुद्दे को ध्यान में रखते हुए, ‘आप’ का निर्माण किया था, तब आमजन को आशा थी कि यह नई राजनीतिक पार्टी देश की राजनीति में एक नया बदलाव लाएगी, लेकिन अब केजरीवाल की बौखलाहट, घबराहट और नासमझी के कारण आमजन की आशाओं पर पानी फिरता नजर आ रहा है। केजरीवाल छोटी-छोटी बात पर घबराकर प्रधानमंत्री मोदी या उनके मंत्रियों पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने में अपना समय तो बर्बाद करते ही हैं, साथ ही अपनी पार्टी के लोगों को भी नहीं संभाल पाते। केजरीवाल को पहले दिल्ली की तरफ ध्यान देना चाहिए। दिल्ली का विकास इनके लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है, क्योंकि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की महत्त्वपूर्ण शक्तियां तो केजरीवाल के सबसे बड़े विरोधी मोदी सरकार के पास हैं।