गुलदाउदी के लिए समूचा हिमाचल उपयुक्त

सीता राम धीमान

गुलदाउदी एक महत्त्वपूर्ण पुष्पीय फसल है तथा इसके पुष्पों को विभिन्न प्रकार से कटे फूल के रूप में, गमलों व स्थल सौंदर्य तथा मालाएं इत्यादि अलंकार बनाने के लिए  इस्तेमाल किया जाता है। संसार भर के कटे फूल के रूप में प्रयुक्त होने वाले पुष्पों में इसका गुलाब के बाद प्रमुख स्थान है। गमलों में उगाए जाने वाले सजावटी पौधें में भी गुलदाउदी का विशेष स्थान है। हमारे देश के लगभग हर राज्य में गुलदाउदी की खेती खुले वातावरण और हरितगृह, दोनों में की जा सकती है।

बाजार में इसके फूलों की मांग को लगातार बढ़ता देखकर इसकी खेती की तरफ किसानों का रुझान लगातार बढ़ रहा है। हिमाचल प्रदेश में जहां तक गुलदाउदी की खेती की बात है, तो इसे सारे प्रदेश में आसानी से उगाया जा सकता है।

प्रमुख किस्में

गुलदाउदी, जिसे अलग-अलग वानस्पतिक नामों जैसे ‘क्राईसैंथिमम मोरीफोलियम’ या ‘डैंड्रेंथिमा ग्रैंडीफ्लोरा’, से जाना जाता है। यह फसल एस्ट्रेसी कुल से संबंध रखती है। संसार भर में गुलदाउदी की हजारों किस्में विकसित हो चुकी हैं जिनका वर्गीकरण विभिन्न देशों में उनकी राष्ट्रीय गुलदाउदी सोसायटियों ने इनके फूलों के आकार तथा बनावट आदि के आधार पर किया है। हमारे देश में अधिकतर सफेद, पीली, लाल, नारंगी, गुलाबी, बैंगनी तथा इन रंगों के बीच के हल्के तथा गहरे रंगों की किस्में उगाई जाती हैं। हमारे देश में दो प्रकार की गुलदाउदी, ‘स्टैंडर्ड’ तथा ‘स्प्रे’, की खेती की जाती है जिनकी किस्मों की लोकप्रियता समय-समय पर बदलती रहती है। आजकल व्यावसायिक स्तर पर उगाई जाने वाली इसकी प्रमुख स्टैंडर्ड व स्प्रे किस्में इस प्रकार से हैंः

 स्टैंडर्ड किस्मेंः पूर्णिमा, व्हाइट स्टार (सफेद) ,यलो स्टार, फिजी यलो (पीला), थाइचिंग क्वीन (हल्का संतरी) टाटा सेंचुरी, फिजी (गुलाबी)।

स्प्रे किस्मेंः बीरबल साहनी, सर्फ बागी, व्हाइट बुके (सफेद), अजय, कुंदन, ननाको (पीला), फ्रलर्ट, रवि किरण (लाल), डिस्कवरी (हल्का हरा)।

प्राकृतिक मौसम में गुलदाउदी की खेती

जलवायुः गुलदाउदी के पौधे को आमतौर पर शुष्क वातावरण की जरूरत होती है। इसी कारण भारत के मैदानी क्षेत्रों में सर्वोत्तम पुष्प नवंबर के उपरांत ही प्राप्त होते हैं। पहाड़ी क्षेत्र जैसे हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड तथा जम्मू-कश्मीर, जहां वर्षा अपेक्षाकृत कम होती है और मौसम ठंडा रहता है, गुलदाउदी नवंबर से पहले फूल लेने के लक्ष्य से उगाई जाती है। साधारणतया छोटे दिन रखने वाली शरद ऋतु ही इसके प्रदर्शनीय पुष्प पैदा करने में सक्षम होती है। बहुत गर्म दिनों में पौधे को दोपहर की कड़ी धूप से छाया करके बचाना पड़ता है। आमतौर पर यह देखा गया है कि इसकी बढ़ोतरी तथा फूल उत्पादन 15.60 सेल्सियस  तापक्रम पर अधिकतम होते हैं। ध्यान रखें कि पौधे गमलों में हो या क्यारियों में, उनकी जड़ों में वर्षा का पानी नहीं रुकना चाहिए।

मृदाः गुलदाउदी को काली, स्लेटी तथा लौह युक्त मिट्टी में उगाया जा सकता है। इसके पौधे चूना पसंद करते हैं। चूना क्षारीय होने के कारण अम्ल को संतुलित रखता है। इसके अच्छी गुणवत्ता वाले फूल पैदा करने के लिए मिट्टी का पीएच मान  6.2 से 6.5 तक होना चाहिए। सफल पुष्प उत्पादन के लिए मिट्टी की तैयारी इस प्रकार से की जानी चाहिए, जिसमें जड़ों का जाल सुगमता से स्थापित होकर पौधे को बलिष्ठ बना सके। उसमें आवश्यकतानुसार पानी भी रुक सके और नमी तथा खाद पदार्थों को रोके रखने की क्षमता भी हो। दोमट मिट्टी में यह सब गुण पाए जाते हैं। -क्रमशः