डिजिटल की अटलता में

विराम

इन दिनों सहजता और सजगता को स्थायी रूप से विदा कर दिया गया है। अब साधारण और सहज होना व्यक्ति का पिछड़ापन घोषित हो चुका है। सजगता की बात हो सकती है, लेकिन तभी तक जब आप उनकी वैचारिक प्रतिबद्धता की हां में हां मिला रहे हैं। जैसे ही आपने मन से खुले और दिमाग से क्रियाशील होने पर जोर दिया तो आप को बीते वक्त का प्राणी बता दिया जाएगा। अब राजनीति, मंचों की बजाय, तर्कों की बजाय, उफनते विचारों पर सवार है। आपकी सुनने से पहले ही वे अपनी न केवल सुना देंगे, बल्कि आपको परोक्ष धमकी भी मिल जाएगी। हमें और हमें सुनो। वही सच है। इसके अलावा कुछ न तथ्य है और न सच है। सुनने और सुनाने को महज नारे हैं और मजा यह है कि हम इन्हें लोरियां मान नींद में गाफिल हैं। माइथोलॉजी से प्रेरित हमारा समाज अब सोशल मीडिया की थियोलॉजी के कब्जे में आ चुका है। इतिहास को समझने की उत्सुकता हम में पहले से ही नहीं थी, अब इसे ज्यामितीय आकारों में गढ़कर परोसने को आजादी बताया जाने लगा है। मानो देश अब राजनेताओं की शक्ल और अक्ल के शिकंजे में है। गहन ज्ञान और सहज अध्यात्म उन युवकों के लिए मखौल हो चुका है, जो इन राजनीतिक दलों के सोशल दल-दल में अपनी ऊर्जा गंवा रहे हैं। उन्हें नहीं मालूम कि जिन्हें वे अपना आका माने बैठे हैं, वे उन्हें जरूरत पड़ने पर रद्दी कागज की तरह फेंक देंगे। मंत्र की हर मर्यादा को पुरोहितवाद के फेरों में उलझा दिया गया है। मानो यही धर्म है और यही कर्म की परिभाषा। जिस भारतीय चिंतन को महानतम बताया जाता है, उसी की छिछालेदारी करने पर आमादा हैं। जिस सांस्कृतिक वाङ्गमय में संशय को ज्ञान की प्रथम आवश्यकता बताया गया, उसे अब आस्था से धकेल देने की हर कोशिश जारी है, ताकि नवीन ज्ञान के सभी रास्ते बंद कर दिए जाएं। विज्ञान को नमन करने का औचित्य तभी तक है, जब तक वह आपके राजनीतिक लक्ष्यों में एक हथियार के रूप में उपयोग आता रहे। अहम ब्रह्मस्मि की विराट महत्ता मानो राजनेताओं की मन की एकांगी बात के आगे खिसिया रही है। साधनों की हेराफेरी में साध्य को डकैत बनाकर हम सब चोर हो जाने को उतावले हो रहे हैं। देश को डिजिटल और शहरों को स्मार्ट करने की अवधारणा में माइथोलॉजी का खुला तड़का इस काल की परम विशेषता बनकर उभरा है, मानो हम गंगा को मोबाइल पर साफ कर देंगे और इसकी डिटेल भगवान शंकर को व्हाट्सएप कर देंगे। आइए, थोड़ा गहरे उतरें, इन नेताओं की गर्वित गरिमा से निजात पाएं। डिजिटल की इस अटलता में सब कुछ लटक जाएगा। जो अटल होना चाहिए, वह सब बह जाएगा। कुछ अपने दम पर करने का भी कोई कदम उठाएं। अपने आप को भी आजमाने का पराक्रम करते हुए इस संसार से विदा पाएं।

-भारत भूषण ‘शून्य’