परंपरागत एकाग्रता-मेडिटेशन अनुपयोगी

गुरुओं, अवतारों, पैगंबरों, ऐतिहासिक पात्रों तथा कांगड़ा ब्राइड जैसे कलात्मक चित्रों के रचयिता सोभा सिंह पर लेखक डॉ. कुलवंत सिंह खोखर द्वारा लिखी किताब ‘सोल एंड प्रिंसिपल्स’ कई सामाजिक पहलुओं को उद्घाटित करती है। अंग्रेजी में लिखी इस किताब के अनुवाद क्रम में आज पेश हैं ‘आध्यात्मिकता’ पर उनके विचार :

-गतांक से आगे…

इस स्थिति में आप ज्यादा जागरूक नहीं होते हैं कि यह समाधि है अथवा नहीं। समाधि मेडिटेशन से ऊपर की स्थिति होती है। यह पूर्ण विलय है जिसमें शारीरिक चेतना पूरी तरह घट जाती है तथा उस वस्तु से एक हो जाना है जिस पर वह मेडिटेशन कर रहा होता है। सिख गुरुओं के अनुसार समाधि क्या थी? इस प्रश्न का जवाब देना बहुत कठिन है। केवल वे ही इसके बारे में जानते रहे होंगे। यह संभव है कि वे अपनी समाधि में अपनी गहराई अर्थात सर्वोच्च आत्मा से निर्देश लेने के लिए अपने साथ एक हुए हों। भगवान के संबंध में आपको देखना है कि आप उसको अर्थात भगवान को अपने दिमाग में विषयपरक ढंग से रखें, सभी मांगों से मुक्त होते हुए रखें। स्वतंत्र रहें तथा आप उसके बारे में भीख मांगने के उद्देश्य से नहीं सोचते हैं। जब आप इच्छाओं, चाहतों व जरूरतों का अनावश्यक लक्ष्य छोड़ते हुए अपने आप में स्वतंत्रता व आनंद लाते हैं तो सर्वोच्च आत्मा आपमें स्वयं ही स्थापित हो जाएगी। आप अपने घर में कुछ चीज तभी ला सकते हैं अगर उसके लिए कोई कमरा हो। आप बड़ी आसीस तभी पा सकेंगे जब आपका दिमाग सभी प्रकार के बंधनों से मुक्त होगा। बिना किसी इच्छा के एकदम खाली रहो। जब आप खाली होंगे, तो कोई विचार नहीं होगा। विचार तभी आते हैं, जब कोई जरूरतें होती हैं। जब कोई भी जरूरत नहीं होगी, तो दिमाग मेडिटेशन अर्थात गहन सोच में व्यवस्थित होने को प्रवृत्त होगा। व्यावहारिक खालीपन यह है कि दिमाग के पांच मोडिफिकेशन (वासना, लालच, मोह, क्रोध व अहम) तथा पांच ज्ञानेंद्रियां (देखना, सुनना, सूंघना, छूना तथा स्वाद) आपके नियंत्रण में आ जाएं तथा आप इनके अधीन नहीं होने चाहिए। इसका मतलब यह है कि आपने इनसे मुक्ति पा ली है। ये आपके दिमाग को बिलकुल भी सुधारते नहीं हैं। आप चिंतामुक्त हैं। आपने तुलना को खत्म कर दिया है। परंपरागत एकाग्रता व मेडिटेशन केवल आपके प्रयास हैं तथा अनुपयोगी हैं। लेकिन उस स्थिति में जबकि यह जैसा है, उस स्थिति में हो अर्थात सहज हो। जब आप गाड़ी चलाते हैं तो आप स्टीयरिंग अथवा गेयर के बारे में नहीं सोचते तथा मूवमेंट काफी समन्वित, सहज, बिना प्रयास व लगातार होती है। लगातार अस्वीकार करने से बाकी क्या बचेगा? सभी सकारात्मक, नकारात्मक हटा दिए गए हैं। अस्वीकार दिमाग के अनचाहे सुधार के लिए होना चाहिए तथा यह एक आदमी की आधारभूत प्रवृत्ति होती है। इसको छोड़कर जाप अथवा सिमरन के लिए अन्य कोई फार्मूला या मंत्र नहीं है। सार निष्क्रिय है अर्थात बिना प्रयास वाली जागरूकता। यदि ये सब आपको इस स्थिति (सहज-शांति) में लाते हैं तो वे अच्छे व अद्भुत हैं। सिख गुरुओं का सिमरन क्या था? उन्होंने अपने भीतर इच्छारहित एक शून्यता पैदा की तथा इसी से उन्होंने समय की समस्याओं के उत्तर जाने। उन्होंने अपने दिमाग से सब कुछ हटा दिया तथा वहां केवल समस्या को रखा। उस पर एकाग्र होते हुए उन्होंने इस पर चिंतन किया तथा इसका समाधान निकाला। शून्यता से स्वयं ही समाधान बाहर निकल आया, यह समस्या पर उनके मेडिटेशन के जरिए हुआ। उनकी अपनी कोई समस्या नहीं थी।

वे मानवता के उत्थान के लिए काम कर रहे थे। गुरु गोबिंद सिंह का जन्म उनके पिता गुरु तेग बहादुर की मेडिटेशन का उत्तर था। यह उस समय के आततायी शासन से लड़ना था तथा लोगों की अंतरात्मा को अंतिम प्रोत्साहन देना था। इससे पिछले गुरुओं ने जो चेतना जगाई थी, उसके बल पर जनता यह करने के लिए तैयार खड़ी थी। गुरु गोबिंद सिंह ने स्वयं भी 40 दिनों तक चिंतन किया था। इसी का परिणाम था कि पंज प्यारे जैसे संस्थान की स्थापना हुई। यही पंज प्यारे सामूहिक रूप से फैसले लेते थे तथा नेतृत्व करते थे। इसी के साथ खालसा का जन्म हुआ जो कि पूर्णतः शुद्ध व अमृतधारी था। अर्थात बपतिस्मा किया हुआ सिख समूह जो कि मानवता की सेवा के लिए काम करने के प्रति कटिबद्ध थे।

-क्रमशः