पहाड़ के खिलाफ विकास

स्वास्तिक ठाकुर, पांगी, चंबा

किन्नौर में शोरंग विद्युत परियोजना में दरके पहाड़ से जो जख्म मिले हैं, उससे समझा जा सकता है कि पहाड़ों के सीने में खंजर घोंपकर इनसान खुद भी चैन से नहीं जी सकता। हालांकि इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही माना जाएगा कि पहाड़ों में हो रहे अवैज्ञानिक व गैर जिम्मेदाराना कार्यों का विरोध करना भी अब खुद को विकास विरोधी साबित करने सरीखा सबब बन चुका है। अतीत और वर्तमान के अप्रिय अनुभवों पर गौर करें, तो अब समय आ गया है कि पर्वत पर विकास के सुरक्षित एवं प्रकृति अनुकूल पैमाने चिन्हित किए जाएं। कुदरत के मिजाज को नजरअंदाज करके विकास की ओर बढ़ाया हर कदम विनाश की ओर ही ले जाएगा। इसका यह भी अर्थ नहीं है कि हम विकास के विचार का ही त्याग कर दें। ढूंढने निकलें, तो पहाड़ों पर सुरक्षित और प्रकृति अनुकूल विकास के कई निशान मिल जाएंगे। यदि प्रदेश सरकार समग्र एवं सुरक्षित विकास हेतु पर्यटन के साथ जोड़कर स्थानीय खूबियों से संपन्न लघु एवं कुटीर उद्योगों के विकास की दिशा में काम करे, तो विकास एवं खुशहाली के एक साथ कई रास्ते निकल आएंगे। जैविक कृषि एवं बागबानी को अगर हम अपनी क्षमता बना पाएं, तो यह व्यवहार प्रकृति के साथ न्याय सरीखा होगा। अतः हिमाचल में अब विकास का हर कदम पहाड़ के स्वभाव और जरूरतों को मद्देनजर रखते हुए उठाया जाना चाहिए, वरना विकास के तमाम ऊंचे शिखरों को मिट्टी में मिलने के लिए एक ही आंधी काफी होगी।