महज एक दिन काफी नहीं

कर्म सिंह ठाकुर

लेखक, मंडी से हैं

मनुष्य तथा पर्यावरण दोनों परस्पर एक-दूसरे के इतने संबंधित हैं कि उन्हें अलग करना कठिन है। जिस दिन पर्यावरण का अस्तित्व मिट गया, उस दिन मानव जाति का अस्तित्व ही मिट जाएगा। पर्यावरण को बचाने के लिए जागरूकता, सजगता तथा अपने दायित्वों का पूर्ण ईमानदारी से प्रत्येक इनसान को निर्वाहन करना होगा। पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनीतिक, सामाजिक जागृति लाने के लिए 1972 में संयुक्त राष्ट्र ने 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाने की घोषणा की थी, तब से लेकर विश्व पर्यावरण दिवस पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण के लिए  संपूर्ण विश्व में बनाया जाता है। इस दिन पर्यावरण के प्रति लोगों को ज्यादा से ज्यादा जागरूक करके ज्वलंत मुद्दों पर विचार विमर्श किया जाता है। आज पर्यावरण पूरे विश्व में एक गंभीर मुद्दा बन गया है।

प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग से युक्त वातावरण में सकारात्मक बदलाव लाने की आवश्यकता है। आज वायु प्रदूषण, जल व मिट्टी प्रदूषण, औद्योगिक प्रदूषण, तापीय, रेडियोधर्मी, नगरीय प्रदूषण, नदियों व नालों में प्रदूषण की मात्रा का बढ़ना और जलवायु पर ग्लोबल वार्मिंग जैसे खतरे लगातार दस्तक दे रहे हैं। सुनामी चक्रवात बाढ़, सुखा, भूकंप आगजनी से अकाल मृत्यु की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। इसका प्रमुख कारण पर्यावरण को क्षति पहुंचाना है। इन्हीं खतरों से अवगत करवाने के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा विश्व पर्यावरण दिवस 2018 के लिए ‘प्लास्टिक प्रदूषण को पराजित करो’ शीर्षक निर्धारित किया गया है। प्लास्टिक से ही पर्यावरण को सबसे ज्यादा क्षति पहुंचती है। मानव तो प्लास्टिक का उपयोग एक बार करता है और उसके बाद जैसे ही यह प्लास्टिक पर्यावरण में जाता है, तो वह बहुत लंबे समय तक बना रहता है। प्लास्टिक के दुष्प्रभाव का एहसास हिमाचल जैसे छोटे पहाड़ी प्रदेश को काफी पहले ही हो चुका था। 1 जनवरी 1999 को हिमाचल प्रदेश में रंगीन पालिथीन बैग के उपयोग पर रोक लगाई गई। इसके बाद वर्ष 2003 में हिमाचल प्रदेश प्लास्टिक को बैन करने वाला भारत का पहला राज्य बना। वर्ष 2004 में 70 माइक्रोन से कम मोटाई के प्लास्टिक बैगों के उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया। सरकार ने जुलाई 2013 से राज्य में पालीथिन में बंद खाद्य पदार्थों और अन्य सामान की बिक्री पर भी प्रतिबंध लगाया है। उपरोक्त अभियानों के अतिरिक्त भी प्रदेश सरकार ने संतुलित आर्थिक एवं पर्यावरण संरक्षण को सुनिश्चित बनाने के लिए कई प्रभावी कदम उठाए हैं। प्रदेश सरकार द्वारा पर्यावरण संरक्षण को लेकर लोगों को पुरस्कृत करने की योजना भी बनाई गई है। प्रदेश में जलवायु परिवर्तन अनुकूलन कार्यक्रम के अंतर्गत ज्यादा से ज्यादा भूमि वन लगाने के लिए सरकार द्वारा व्यास नदी बेसिन में स्थित 1200 पंचायतों के करीब 7000 गांवों में जलवायु परिवर्तन की संवेदनशीलता का आकलन किया है।

हिमाचल भले ही भारत के मानचित्र पर एक छोटा सा राज्य है, परंतु यह पहाड़ी राज्य देश के पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी संतुलन को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहा है। प्रदेश में 1986 से ही हरे पेड़ों के कटान पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था, जिसके परिणाम इंडिया स्टेट ऑफ फारेस्ट रिपोर्ट के अनुसार हिमाचल प्रदेश में 13 वर्ग किलोमीटर की वन क्षेत्र वृद्धि दर्ज की गई है। हिमाचल को प्रकृति ने अपार प्राकृतिक उपहार भेंट किए हैं, जनमानस को भी इसके सरंक्षण के लिए उत्सुकता दिखानी होगी। पर्यावरण के क्षेत्र में प्रदेश सरकार बेहतरीन कार्य कर रही है, लेकिन अभी  बहुत कुछ किया जाना शेष है। हाल ही में शिमला जल संकट ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हाहाकार मचाया था। इसके साथ-साथ प्रदेश के अन्य भागों में भी पानी की कमी देखने को मिली। इस वर्ष हिमाचल के जंगल बहुत बुरी तरह से जले। हिमाचल प्रदेश जो प्लास्टिक संरक्षण में अच्छा कार्य कर रहा है, यदि वनों को इसी तरह से जलाता रहा, तो क्या हम वास्तव में पर्यावरण को बचा पाएंगे? इस तरह की समस्याओं से बचने के लिए पर्यावरण का संरक्षण बहुत जरूरी है। इन परिस्थितियों से निपटने के लिए आज हम सबको पेड़-पौधों को नुकसान न पहुंचाने की अपनी जिम्मेदारी भी सुनिश्चित करनी होगी। हमारे देश और प्रदेश की सबसे बड़ी समस्या यह है कि हम जब भी किसी विशेष दिन को सेलिब्रेट करते हैं तो उसकी महक दो चार दिनों में ही फीकी पड़ जाती है, चाहे नशा निवारण दिवस, पर्यावरण दिवस या जनसंख्या दिवस हो। हम उस दिन रैलियां निकालते हैं, जोर-जोर से नारे लगाते हैं, बड़े-बड़े बैनर पोस्टों से लोगों को संदेश देते हैं, लेकिन अगले दो-चार दिनों में सब कुछ पुनः शून्य हो जाता है।

हिमाचल प्रदेश सरकार ने राज्य में वन महोत्सव के दौरान 15 लाख पौधे लगाने का लक्ष्य निर्धारित किया है तथा ‘वन समृद्धि जन समृद्धि’ व सामुदायिक वन संवर्द्धन योजना आरंभ की है। आइए इन योजनाओं को सफल बनाने के लिए युवा वर्ग को ज्यादा से ज्यादा जागरूक करें तथा प्रदेश के सभी नागरिकों तक यह संदेश पहुंचाएं कि वृक्षों को लगाने के साथ-साथ उनके रखरखाव का भी ध्यान रखें। प्रदेश सरकार से गुजारिश रहेगी कि वे जंक फूड जैसे कुरकुरे, लेज टॉफियां तथा अन्य खाद्य सामग्री इत्यादि में प्रयोग होने वाले पोलिथीन के इस्तेमाल को भी प्रतिबंधित करें।

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