योग से भारत दूर क्यों ? 

राजेश चौहान

ओशो के अनुसार योग धर्म, आस्था और अंधविश्वास से परे एक सीधा प्रायोगिक विज्ञान है। योग जीवन जीने की कला है। योग एक पूर्ण चिकित्सा पद्धति है। भारत की धर्म, संस्कृति और धरोहर ने विश्व को बहुत कुछ ऐसा दिया है, जो इनसान को एक अच्छे मार्ग की ओर अग्रसर करता है। इन्हीं में से एक है ‘योग’, जिसे अपनाकर इनसान तन और मन से स्वस्थ होता है। योग मात्र शरीर को ही दुरुस्त नहीं करता, बल्कि मानसिक तौर पर स्वस्थ बनाता है, सकारात्मक सोच को बढ़ाता है और यह इनसान का प्रकृति से भी तालमेल बढ़ाता है। आज की भाग-दौड़ और भौतिकतावाद भरी जिंदगी में इनसान इतना व्यस्त हो गया है कि अपने शरीर की ओर ध्यान नहीं देता है और बीमारियों से ग्रस्त हो जाता है। योग के महत्त्व को समझते हुए 11 दिसंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय ‘योग दिवस’ मनाने को हरी झंडी दे दी थी, परंतु एक ओर जहां भारत ने दुनिया को योग की राह पर अग्रसर करके निरोग रहने का मंत्र दिया है, वहीं दूसरी तरफ भारत के अधिकतर लोग योग से किनारा करके, कई जानलेवा बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। अतः देश के हरेक नागरिक को योग से जुड़ना चाहिए।