संघर्ष विराम खत्म करने के बाद…

रमजान का पाक महीना गुजर चुका है, आज सभी ईद की खुशियों में सराबोर हैं और उसके बाद जम्मू-कश्मीर में संघर्ष विराम नहीं रहेगा। सेना और सुरक्षा बल आतंकियों के खिलाफ खुलकर आपरेशन कर सकेंगे। संघर्ष विराम को समाप्त करने का संवेदनशील फैसला भारत सरकार ने बुनियादी तौर पर ले लिया है, लेकिन घोषणा ईद के बाद की जा सकती है। बीते गुरुवार को गृह मंत्रालय की एक उच्चस्तरीय बैठक में भी इसी मुद्दे पर विचार किया गया। बैठक में गृहमंत्री राजनाथ सिंह के अलावा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, आईबी चीफ, रॉ प्रमुख, कश्मीर में केंद्र के वार्ताकार दिनेश्वर शर्मा और सैन्य अफसर भी मौजूद थे। बताया जाता है कि सेना और सुरक्षा बलों के विशेष आग्रह पर संघर्ष विराम के निर्णय को वापस लेने की चर्चा हुई। उससे पहले कैबिनेट की सुरक्षा समिति की भी बैठक हुई थी। संघर्ष विराम समाप्त करने का एक पहलू यह भी हो सकता है, लेकिन दूसरा पहलू भी बेहद अहम और अंतरराष्ट्रीय है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने भारत सरकार को एक रपट भेजी थी। उसका खुलासा था कि भारत कश्मीर में मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र का यह खुलासा एकपक्षीय, पूर्वाग्रही तथा तथ्यहीन है। भारत सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि यह मानवाधिकार परिषद की रपट नहीं है, बल्कि उच्चायुक्त जैद राउत अल हुसैन की रपट है। यह उच्चायुक्त के निजी पूर्वाग्रह पर आधारित रपट है। इसमें संयुक्त राष्ट्र के बुनियादी सिद्धांतों की अनदेखी की गई है। यह रपट भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के भी खिलाफ है। इसमें अपुष्ट तथ्यों और सूचनाओं का संकलन किया गया है, लिहाजा उसे खारिज कर दिया गया है। संयुक्त राष्ट्र को सिर्फ आतंकियों और ‘आजादी गैंग’ के मानवाधिकारों की ही चिंता है। दिलचस्प विरोधाभास है कि लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मुहम्मद, हरकत उल मुजाहिदीन संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित आतंकी संगठन हैं, लेकिन रपट में उन्हें ‘सशस्त्र समूह’ कहा गया है। यूएन के विशेष कार्यालय ने कश्मीर में आतंकवाद के प्रति आंखें मूंद रखी हैं। यूएन को करीब 5 लाख कश्मीरी पंडितों की हत्याओं और बेघर होने की हकीकत नहीं दिखती। यूएन को 1948 में भारत पर पाकिस्तान का जबरन युद्ध भी दिखाई नहीं दिया। पाकिस्तान के सीमापार आतंकवाद के मद्देनजर संयुक्त राष्ट्र के संबद्ध कार्यालय ने उसे ‘आक्रांता’ भी घोषित नहीं किया। क्या यूएन का संबद्ध विभाग भी पाकपरस्त है? इन सवालों पर विमर्श करने के बाद भारत सरकार ने यूएन की रपट खारिज की है, अब जैसे ही संघर्ष विराम पर फैसले का ऐलान किया जाएगा, तो उसकी पृष्ठभूमि में यह रपट भी होगी। गौरतलब यह है कि रमजान के दौरान, संघर्ष विराम के बावजूद 57 आतंकी हमले किए गए। भारत सरकार ने संघर्ष विराम को समाप्त करने के आसार दिखाए और रमजान का पाक महीना भी खत्म हुआ, लेकिन आतंकियों ने श्रीनगर में ही ‘राइजिंग कश्मीर’ अखबार के संपादक शुजात बुखारी पर फायरिंग से हमला कर उनकी हत्या कर दी। उनके दोनों सुरक्षाकर्मी भी मारे गए हैं। रमजान के दौरान ही शोपियां में ईद की छुट्टी पर जा रहे राइफलमैन औरंगजेब को पहले अगवा किया गया और रात होते-होते पुलवामा में उनका शव मिला। यह जवान आतंकी समीर टाइगर के एनकाउंटर वाली टीम में शामिल था। इस तरह आतंकियों ने संघर्ष विराम के बावजूद उससे बदला लिया। कश्मीर के ही बांदीपोरा में आतंकियों ने पुलिस-सीआरपीएफ की साझा पेट्रोलिंग टीम पर हमला किया, जिसमें एक जवान ‘शहीद’ हुआ, लेकिन मुठभेड़ में 2 आतंकी भी ढेर कर दिए गए। ये सभी एक ही दिन की घटनाएं हैं। ऐसे तमाम ब्योरों से एक ही सवाल पैदा होता है कि आखिर कश्मीर में संघर्ष विराम से हासिल क्या हुआ? यदि आम अवाम को राहत देने, अमन-चैन के लिए यह एकतरफा संघर्ष विराम लगाया गया था, तो कश्मीर में राहत, अमन-चैन किसे नसीब हुए? इसी साल के 6 महीनों में पाकिस्तान ने करीब 320 बार गोलीबारी की है। इसी साल अब तक हमारे 24 जवान ‘शहीद’ हो चुके हैं, जिनमें 11 जवान बीएसएफ के ही थे। ये आंकड़े अभी तक सर्वाधिक हैं। इसी दौरान 26 नागरिक भी मारे गए और 37 अन्य घायल हुए हैं। यह दीगर है कि छह माह के दौरान 20 आतंकी भी मारे गए हैं, लेकिन पाकिस्तान शातिर देश है। सरहद पर लड़ाई थमने वाली नहीं है। पाकिस्तान मानने वाला नहीं है। उसे उसी की जुबान और भाषा में जवाब दिया जाना चाहिए। भारत सरकार इस आयाम पर भी विचार करे कि क्या पाकिस्तान की एक और सर्जरी की जानी चाहिए? बहरहाल आज ईद का पाक त्योहार है। हम अपने संस्कार नहीं बदल सकते, लेकिन अब जल्द ही संघर्ष विराम की समाप्ति का ऐलान किया जाए और आतंकियों को ताबड़तोड़ ठोका जाए।