संसदीय प्रणाली ; संसद का अंग होता है राष्ट्रपति

भारतीय राजनीतिक व्यवस्था-संसद का गठन और स्थानप्रातिनिधिक संसदीय लोकतंत्र इसलिए सभी प्रकार का प्रत्यक्ष लोकतंत्र शीघ्र ही संसार भर में समाप्त हो गया, सिवाय स्विट्जरलैंड के कुछ ‘कैंटनों’ के, जहां अब भी विभिन्न मामलों पर लोगों द्वारा प्रत्यक्ष रूप से मतदान के द्वारा फैसले हो सकते हैं। आधुनिक लोकतंत्र के लिए आवश्यक हो गया है कि वह ऐसा प्रातिनिधिक लोकतंत्र हो जहां लोग अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से अपनी प्रभुसत्ता का प्रयोग करें। संसदीय शब्द का अर्थ विशेष रूप से एक प्रकार की लोकतंत्रात्मक राजनीतिक व्यवस्था  है, जहां सर्वोच्च शक्ति लोगों के प्रतिनिधियों के निकाय में निहित होती है, जिसे संसद कहते हैं। संसदीय प्रणली ऐसी प्रणाली है जिसमें राज्य के शासन में संसद का प्रमुख  स्थान है। भारत के संविधान के अधीन विधानमंडल को संसद कहा जाता है। यह  वह धुरी है, जो देश की    राजनीतिक व्यवस्था की नींव है। संसद का गठन भारतीय संसद राष्ट्रपति और दो सदनों- राज्य सभा ( कौंसिल ऑफ स्टेट्स) और लोकसभा ( हाउस ऑफ द पीपुल) से मिलकर बनी है।

राष्ट्रपति: गणराज्य के राष्ट्रपति का निर्वाचन प्रत्यक्ष रूप से ऐसे निर्वाचन मंडल द्वारा किया जाता है जिसमें संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य और राज्यों की विधान सभाओं के  निर्वाचित सदस्य होते हैं। यद्यपि भारत का राष्ट्रपति संसद का अंग होता है, तथापि वह दोनों में से किसी भी सदन में न तो बैठता है न ही उसकी  चर्चाओं में भाग लेता है। संसद से संबंधित कुछ ऐसे सवैधानिक कृत्य हैं, जिनका उसे निर्वहन करना होता है। राष्ट्रपति समय – समय पर संसद के दोनों सदनों को बैठक के लिए आमंत्रित करता है। वह संसद के दोनों सदनों का सत्राासन कर सकता है और लोकसभा को भंग कर सकता है। दोनों सदनों द्वारा पास किया गया कोई विधेयक तभी कानून बना सकता है, जब राष्ट्रपति उस पर अपनी अनुमति प्रदान कर दे। इतना ही नहीं, जब संसद के दोनों सदनों का अधिवेशन न चल रहा हो और राष्ट्रपति का समाधान हो जाए कि ऐसी परिस्थितियां विद्यमान हैं, जिनके  कारण उसके लिए आवश्यक है कि वह तुरंत कार्यवही करे तो वह अध्यादेश प्रख्यापित कर सकता है जिसकी शक्ति एवं प्रभाव  वही होता है, जो  संसद द्वारा पास की गई  विधि का होता है।

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