सूर्यास्त से पहले अनुष्ठान शुरू करें

पूर्व विधि के अनुसार आसन पर स्थित होकर नेत्र और मुख बंद कीजिए। बिना जिह्वा और ओष्ठ हिलाए, मन ही मन इस मंत्र की पुनः-पुनः आवृत्ति करते हुए त्रयंबक से नित्य, प्रतिसायं प्रार्थना कीजिए। अर्थ और आशय को अपनी भावना में धारण करते हुए बार-बार इस मंत्र से प्रार्थना कीजिए…

-गतांक से आगे…

अनुष्ठान की पूर्व-विधि

एक गज लंबा और एक गज चौड़ा, एक सुकोमल (मुलायम) आसन और उसके ऊपर बिछाने के लिए उसके नाम ही एक श्वेत चादर बनाइए। आसन और चादर, दोनों ही हाथ की कती-बुनी खादी के हों तो और भी अच्छा है। प्रत्येक साधक का, चादर सहित, यह आसन उसके अपने स्वयं के उपयोग में ही लाएं तथा उसके अपने उपयोग में भी केवल आध्यात्मिक साधना स्वाध्याय के लिए आए।

महामृत्युंजय : मंत्र का अनुष्ठान अस्त होते हुए सूर्य के अभिमुख असन्स्थ होकर केवल सायंकाल करना चाहिए। सूर्यास्त से एक घंटा पहले शौच व स्नान से निवृत्त होकर स्वच्छ, धुले हुए वस्त्र पहनिए। अनुष्ठान के लिए ऐसा स्वच्छ, सुंदर और एकांत स्थान चुनिए कि जहां अस्त होता हुआ सूर्य आपके सामने मुख-सन्मुख होकर अपनी सुनहरी किरणों से आपके मुख और वक्ष को स्पर्श करे। सूर्यास्त से एक घंटा पहले अपने आसन पर पद्मासन, सिद्धासन, सुखासन अथवा अन्य किसी सुखप्रद आसन में निश्चय होकर स्थिरता के साथ स्थित हो जाइए। आसन में स्थित होकर अपने सिर और धड़ को सीधी सतर्क में रखिए। आसन की स्थिति में आपकी पीठ और आपके सिर का पिछला भाग एक सीध में रहना चाहिए। दोनों हाथों के पंजों को अंगुलियों से गूंथकर अपनी नाभि के नीचे जमा लीजिए। दोनों ओष्ठों को जोड़कर मुख बंद कर लीजिए। पलकों को ढांपकर नेत्र बंद कर लीजिए। सूर्यास्त होने से एक घंटा पहले अनुष्ठान आरंभ कीजिए और केवल 30 मिनट अनुष्ठान कीजिए। अनुष्ठान के लिए आप यह मंत्र और इसका अर्थ निम्न प्रकार याद कर लीजिए ः त्रयंबक यजामहे सुगंधिम पुष्टिवर्धनम उर्वारुकमिव बंधनात मृत्युर्मुक्षीय मामृतात।

अर्थ : हम तुझ (त्रि-अंबकम्) दिव्य, शुद्ध सर्वगत दृष्टि वाले को (यजामहे) संगत करते हैं। तेरी कृपादृष्टि से मैं (सु-गंधिम, पुष्टि वर्धनम उर्वारुकमईव) सुगंधिम, पुष्टिवर्धक उर्वारुक के समान (मृत्योः बंधनात) मृत्यु के बंधन से (मुक्षीय) मुक्त हो जाऊं, (अ-मृतात मा) अमृत से नहीं। जो कुछ मृत्यु है, उस सबसे युक्त रहना, महामृत्युंजय मंत्र का अनुष्ठान कर रहे हों, तब आप प्रातः नित्य गायत्री  मंत्र का अनुष्ठान भी अवश्य करें। महामृत्युंजय मंत्र का अनुष्ठान अनिवार्य नहीं है। सर्वोत्तम  यही है कि दोनों अनुष्ठान सदा साथ-साथ चलते रहें।

अनुष्ठान की विधि : पूर्व विधि के अनुसार आसन पर स्थित होकर नेत्र और मुख बंद कीजिए। बिना जिह्वा और ओष्ठ हिलाए, मन ही मन इस मंत्र की पुनः-पुनः आवृत्ति करते हुए त्रयंबक से नित्य, प्रतिसायं प्रार्थना कीजिए। अर्थ और आशय को अपनी भावना में धारण करते हुए, शांतिपूर्वक, एकाग्र मन से, गहनता और विनयशीलता के साथ बार-बार इस मंत्र से त्रयंबक की सेवा में प्रार्थना कीजिए। प्रार्थना करते हुए यह अनुभव कीजिए कि मंत्र की प्रत्येक आवृत्ति के साथ : 1. आपके जीवन में जो कुछ मृत्युंजय है, वह सब छिन्न-भिन्न होता जा रहा है और जो कुछ अमृतमय है, उस सबसे आपका जीवन युक्त होता जा रहा है।

                                  -क्रमशः