अपने सपनों को दूसरे की आंखों में डालकर हम उनकी जिंदगी रौशन नहीं करते, बल्कि अपनी महत्त्वाकांक्षा को और पानी दे रहे होते हैं। सत्ता के काजल से सत्य को नया आयाम देने के प्रयास निष्फल होने को प्रतिबद्ध हैं। सत्य को कसौटी पर कसने की सभी कोशिशें हमारे निकम्मेपन का प्रमाण हैं। आप सच्चाई के साथ खड़े होने को तब तक असमर्थ हैं, जब तक सत्ता का मोह आपके जी का जंजाल बना हुआ है। यह नहीं हो सकता कि उफनती नदी में छलांग लगाकर आप भीगने से बचने की कोशिश करते फिरें और जल प्रवाह को गाली देने का प्रलाप शुरू कर दें। नींद की इसलिए आलोचना की जाए कि यह हमें फिर ऊर्जावान कर देती है, अपने आप में कुतर्क है। वितंडावाद है। आप देशप्रेम को मानवीय आस्थावाद की तराजू से तोलेंगे तो न कथित आस्था का अर्थ निकलेगा और न देश से प्रेम होने का कोई प्रमाण।
कभी भी बातों के पहाड़ खड़े करने से सच्चाई की गहराई को नापा नहीं जा सका। न ही किसी मन की बात का असर होगा जब तक इसमें साफगोई का आलोक समा नहीं जाता। बहादुरी को किसी वेश की जरूरत नहीं। नारों और जुमलों से इसका कोई संबंध नहीं होता। सदाचार को जीने के लिए हम सदा स्वतंत्र हैं। आडंबरों का ढोल पीटकर इसे जिंदगी का हिस्सा नहीं बनाया जा सकता। आप और आपके हमदम यदि अपने आग्रहों के गृहक्लेश का पिटारा कर बैठे हैं तो आपके सत्यवान होने की बातें अप्रासंगिक हैं, फिजूल हैं। आपके विभेद, विरोधी का कद कम छोटा करते हैं, लेकिन आपके पूर्वाग्रह ही आपके पैरों को काटने की साजिश किया करते हैं। सामर्थ्य और क्षमता तब तक फलहीन होंगे, जब तक आपकी कानों में अपनी महत्ता के ढोल बज रहे हैं।
दुनिया को मूर्ख बनाने की हर कोशिश सफल होती दिखाई देती है, लेकिन यथार्थ में यह मूर्ख बनाने वाले की कब्र खोद रही होती है। वक्त को गिनती सिखाने की सभी कोशिशें व्यर्थ साबित हुई हैं क्योंकि हमारी जिंदगी इस गणित के चंद पन्ने ही हैं जिनका समय की सनातनता में वजूद ढूंढना भी मुश्किल है।
समरसता और सौहार्द के लिए आपका मानवीय होना काफी है। इसको किसी जाति, वर्ग और कथित धर्म में बांधने से हम अपनी नामसझी का सबूत देंगे। कुछ लोगों के सतही विचारों से किसी देश की उन्नति और विकास हमेशा स्वप्न बने रहेंगे। आइए, मानव होने की सच्चाई को जानें। सत्ता के मद में भूले इस आधार को पुनः स्थापित करने की ओर बढ़ें।
-भारत भूषण ‘शून्य’