जहर से निजात दिलाती है माता नागनी

जिला कांगड़ा के नागनी माता मंदिर कंडवाल में उत्तर भारत से श्रद्धालुओं की खूब रौनक उमड़ती है। वैसे तो यहां पर बारह महीने लोगों का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन सावन-भादो के महीने में लगने वाले मेलों में हजारों की संख्या में श्रद्धालु मंदिर में माथा टेकने आते हैं। इस बार यह मेले 21 जुलाई से शुरू हो रहे हैं। इस मंदिर के बारे में कई दंतकथाएं हैं। ऐसा माना जाता है कि यह स्थान छोटी नागनी के नाम से प्रसिद्ध है। यहां पर 1922 ईं में एक गोरखा बाबा आए थे। उस समय यह स्थान घने जंगल से घिरा हुआ था। बाबा ने यहां पहाड़ी पर अपनी कुटिया बना ली और तपस्या करने लगे। इसी दौरान गांववासियों ने देखा कि बाबा के मस्तक पर एक सुनहरी रंग की नागिन बैठी है। जब बाबा गोरखा जी से इस बारे पूछा, तो उन्होंने कहा कि यह स्थान माता नागनी का है, इसलिए वह यहां तप करने आए हैं। ऐसा भी माना जाता है कि तब से यह स्थान माता नागनी के रूप में जाना जाने लगा। उन्होंने बताया कि यहां की मिट्टी से सांप या बिच्छु से काटे व्यक्ति पर जहर का असर धीरे-धीरे कम हो जाता है और व्यक्ति ठीक हो जाता है। मंदिर में ही दूरदराज क्षेत्रों से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए ठहरने और लंगर की व्यवस्था भी की हुई है। इसके साथ ही मंदिर की सीढि़यां चढ़ते ही गतिविधियों पर नजर रखने के लिए सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। हर साल नागनी माता मंदिर में सावन की संक्रांति से शनिवार को लगने वाले मेले शुरू होते हैं और यह दो-अढ़ाई महीने चलते हैं। अंतिम मेले पर मंदिर कमेटी की ओर से भंडारा करवाया जाता है।

  – कपिल मेहरा, जवाली