पानी नहीं, पर बिल तैयार हैं

संजीव कुमार, बाड़ी, देहरा

पानी की समस्या देश में कई राज्यों में देखी गई है। पृथ्वी पर पीने योग्य पानी 2.5 प्रतिशत है। गांव के प्राकृतिक स्रोत सूख जाने के कारण लोगों को ही नहीं, पशुओं को भी पीने का पानी नसीब नहीं हो रहा है। मजबूरी में ग्रामीण लोग करीब दो से तीन किलोमीटर पैदल, ऊंची चढ़ाई चढ़कर पानी के बचे प्राकृतिक स्रोतों से पानी लेकर आते हैं। शहरी क्षेत्र में तो पानी के प्राकृतिक स्रोत बचे ही नहीं हैं। अगर सरकारी और गैर सरकारी नलों की बात करें, तो उनकी स्थिति भी खराब है। पानी सात दिनों में सिर्फ एक बार ही आता है। वह भी निम्न क्षेत्रों में और ऊपरी क्षेत्र के लोग बिना पानी ही रह जाते हैं। हालात कुछ ऐसे हो गए हैं कि लोग पानी की एक-एक बूंद को तरस गए हैं। सरकारी अफसर और नेता सिर्फ आश्वासन देते हैं। अगर सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य विभाग की बात करें, तो यह लोगों के घरों में लगे निजी पानी के नलों में पानी पहुंचे या न पहुंचे, पानी का मोटा बिल भेजकर लोगों के होश उड़ा रहा है। ऊपर से अगर बिल का भुगतान न करें, तो पानी का कनेक्शन काटने को कहते हैं। यह लोकतंत्र भारत देश में सरकारी महकमों की तानाशाही को दर्शाता है। सरकार को चाहिए कि लोगों को रोज पीने का पानी उपलब्ध करवाए, चाहे वे ऊपरी क्षेत्र हों या दूरदराज क्षेत्र हों। पानी के बिल हैं, उनका उचित समाधान करे, ताकि लोगों को इससे कुछ राहत मिल सके।