पीएम मोदी की चुनावी बिसात

मौका था पूर्वांचल एक्सप्रेस वे के शिलान्यास का। देश का सबसे लंबा एक्सप्रेस-वे और करीब 23,000 करोड़ रुपए की लागत…! विकास का एक ठोस प्रतिमान और वह भी उप्र के उस इलाके में, जिसकी छवि अब ‘आतंकगढ़’ की है। आजमगढ़ कभी 1857 की क्रांति और अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’, राहुल सांकृत्यायन सरीखे रचनाकारों की स्थली थी। प्रख्यात शायर कैफी आजमी और उनकी सशक्त अभिनेत्री-बेटी शबाना आजमी का जुड़ाव भी आजमगढ़ से रहा। उप्र के पूर्व मुख्यमंत्री राम नरेश यादव से लेकर मुलायम सिंह यादव तक राजनेताओं का गढ़ भी यह शहर रहा है। मुलायम सिंह का तो यह लोकसभा क्षेत्र है। अंडरवर्ल्ड डॉन अबू सलेम के दौर से जो कालिख पुतनी शुरू हुई और इसे ‘आतंकियों का गढ़’ करार दिया जाने लगा, उसके बावजूद विकास का कोई मील पत्थर यहां स्थापित किया जाए, तो यह देश और जनता के गर्व और गौरव के साथ-साथ हैरानी का भी मुद्दा है। एक्सप्रेस-वे का शिलान्यास पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने कार्यकाल के दौरान किया था या अब देश के प्रधानमंत्री मोदी ने किया है, उससे हमें ज्यादा सरोकार नहीं है। विकास की परियोजना का पूर्णत्व ही सार्वजनिक सरोकार होना चाहिए, क्योंकि पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे भी अंततः जनता के लिए ही है। फासले घटेंगे, दूरियां सिमटेंगी, सार्वजनिक परिवहन सुलभ होंगे और यात्राएं सुखद होंगी, दरअसल फोकस इन्हीं बिंदुओं पर होना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी ने शिलान्यास के बाद जनसभा को संबोधित करते हुए अपनी सरकार की विकास-यात्रा की कहानी फिर सुनाई, लेकिन कांग्रेस के साथ-साथ सपा-बसपा सरीखी पारिवारिक पार्टियों को भी निशाने पर रखा। नतीजतन विश्लेषणों का आधार यही बना। चुनावी और राजनीतिक खबर इसी में थी। मुस्लिम बुद्धिजीवियों से मुलाकात और विमर्श के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ‘कांग्रेस को मुसलमानों की पार्टी’ कहा था या नहीं, लेकिन उर्दू के अखबार ‘इनक्लाब’ में छपी खबर को प्रधानमंत्री मोदी ने भी लपक लिया और जनसभा के सामने पक्ष रखा-‘नामदार (राहुल गांधी) ने कहा है कि कांग्रेस मुस्लिमों की पार्टी है। इससे मैं हैरान नहीं हूं, क्योंकि मनमोहन सिंह ऐसे प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है। मैं यह पूछना चाहता हूं कि क्या कांग्रेस सिर्फ मुस्लिम पुरुषों की पार्टी है? क्या मुस्लिम महिलाओं के सम्मान और अधिकार के लिए कोई स्थान नहीं है?’ यह सवाल प्रधानमंत्री ने ‘तीन तलाक’ और ‘निकाह-हलाला’ सरीखी मुस्लिम कुरीतियों से जोड़ दिया। विकास की जनसभा राजनीतिक हो गई। बुधवार 18 जुलाई से संसद का मानसून सत्र शुरू हो रहा है। ‘तीन तलाक’ का बिल राज्यसभा में लटका है। कांग्रेस समेत विपक्ष के ज्यादातर दलों की मांग है कि बिल को प्रवर समिति को भेज दिया जाए। भाजपा-एनडीए सरकार इस बिल को पारित करा कानून बनाने की पक्षधर है, ताकि इसके इर्द-गिर्द मुस्लिम औरतों को लामबंद किया जा सके, लेकिन उच्च सदन में सरकार का बहुमत नहीं है। दरअसल कांग्रेस को ‘मुस्लिम पार्टी’ करार देकर प्रधानमंत्री मोदी ने ‘हिंदू-मुसलमान’ ध्रुवीकरण की आधारशिला रखी है। अब 2019 के चुनाव तक की राजनीति ‘हिंदू-मुसलमान’ के मुद्दों के इर्द-गिर्द ही केंद्रित रहेगी, लिहाजा आजमगढ़, वाराणसी, मिर्जापुर आदि शहरों में प्रधानमंत्री मोदी के संबोधनों को ‘चुनावी बिसात’ ही कहा जा सकता है। प्रधानमंत्री ने कांग्रेस के अलावा सपा-बसपा पर भी हमले किए हैं कि ये पार्टियां आज ‘मोदी, मोदी…’ रट पर एक साथ आ रही हैं, जो कभी एक-दूसरे को फूटी आंख नहीं देख सकती थीं। यह कहना भी प्रधानमंत्री की राजनीतिक मजबूरी है, क्योंकि उप्र भाजपा की ‘प्रथम चिंता’ है। 2014 में भाजपा-एनडीए के जो 73 सांसद चुने गए थे, फिलहाल उसकी पुनरावृत्ति के 2019 में आसार नहीं हैं। उस पर सपा-बसपा का गठबंधन प्रधानमंत्री मोदी को भी डराता है, लिहाजा उन्होंने दो दिन उप्र में खर्च किए। शिलान्यास और लोकार्पण किए। भाजपा को सत्ता तक पहुंचाने वाली भीड़ के सामने एक-एक कर मोदी सरकार के काम गिनाए गए। अभी तो काडर स्तर के कार्यकर्ता भी घर-घर जाएंगे और लोगों को बताएंगे कि मोदी सरकार ने उनके लिए क्या-कुछ किया है। रणनीति बूथ स्तर तक की है। लिहाजा कोई भी विकास, राजनीति के बिना नहीं हो सकता। मकसद वही रहता है, क्योंकि नेताओं और दलों को अंततः चुनाव जीतना होता है।