बेकसूर लोगों को सजा क्यों ?

सौरभ धीमान

नालागढ़, सोलन से हैं

नालागढ़ में 1990 में मेहता परिवार ने रोपड़ रोड पर एक कालोनी की मंजूरी ली, जिसमें कुछ व्यावसायिक और शेष रिहायशी प्लाट थे। ग्रीनलैंड, अस्पताल, स्कूल और अन्य सुविधाओं के लिए कौन सी भूमि छोड़ी गई, किसी को पता नहीं। सभी प्लाट बिक गए, सभी की बाकायदा रजिस्ट्रियां हुई हैं। नगर एवं ग्राम योजना विभाग से नक्शे पास हुए। अब हिमाचल प्रदेश के माननीय उच्च न्यायालय का निर्णय आया है कि इस कालोनी में नियमों का उल्लंघन करके निर्माण हुआ है, इसको गिराया जाना चाहिए, लेकिन यहां प्रश्न पैदा होता है कि जब यहां बने सभी भवनों की जमीन की विधिवत रूप से राजस्व विभाग से रजिस्ट्री हुई है, भवनों के नक्शे नगर एवं ग्राम योजना विभाग व बीबीएनडीए से स्वीकृत हैं तथा नगर परिषद से भी पास हुए हैं, तो यह निर्माण अवैध कैसे हो गया? भूमि मालिक और अधिकारियों की बेईमानी की सजा उन बेकसूर लोगों को तो नहीं दी जा सकती, जिन्होंने राजस्व विभाग के रिकार्ड और नगर एवं ग्राम योजना विभाग पर विश्वास करके प्लाट खरीदे। माननीय उच्च न्यायालय को इस निर्माण को तोड़ने की बजाय, उन अधिकारियों की पहचान करनी चाहिए, जिन्होंने मिलीभगत करके गलत तरीके से अपनी जेब भरने का काम किया है।