भ्रष्टाचार मुक्ति की शुरुआत

डा. विनोद गुलियानी, बैजनाथ

विचारक एवं लेखक पीके खुराना द्वारा अपनी लेखनी द्वारा सरकार की भ्रष्टाचार मुक्ति हेतु समय-समय पर आवाज बुलंद करना एक साहसिक व सराहनीय कदम है। एक ओर मात्र एक वोट से जीतने वाला सभी शक्तियों का स्वामी बन जाता है और दूसरी ओर हारने वाले का अप्रासंगिक हो जाना वास्तव में हितचिंतकों को झकझोरने वाला प्रश्न है। इसका एकमात्र हल है कि ‘आनुपातिक प्रतिनिधित्व’ सिस्टम अर्थात दलों के वोट प्रतिशत के हिसाब से सीटें देने के लिए संविधान में संशोधन करना है। इतना ही नहीं, इस सोच को आगे बढ़ाते हुए वोट प्रतिशतता के अनुपात में जनप्रतिनिधि का सेवा काल तय होना, सही मायनों में जनता की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व होगा। उदाहरण के रूप में 60, 30, 20 व 10 प्रतिशत वोट लेने वाले को क्रमशः तीन वर्ष, डेढ़ वर्ष, एक वर्ष व आधा वर्ष का जनप्रतिनिधित्व मान्य हो। इसी कड़ी में लेखक द्वारा सुझाए जनसेवा विधेयक, जनमत विधेयक, जनाधिकार विधेयक, जनप्रिय विधेयक लाने के सुझाव निस्संदेह प्रशंसनीय हैं, जिन्हें लाने से सरकार द्वारा भ्रष्टाचार मुक्ति की शुरुआत हो सकती है। इससे असमंजस की स्थिति में रह रहे देश के 80 प्रतिशत लोग, दस प्रतिशत बेईमानों के कृत्यों को नकारते हुए, शेष दस प्रतिशत ईमानदारों के प्रति आकर्षित होकर, भारत मां का गौरव निश्चय ही बढ़ाएंगे। संविधान में इसके लिए संशोधन करना वास्तव में देश सेवा होगी।