यहां हर कोई खली

क्या वाकई हिमाचल को किसी ब्रांड की जरूरत है या यह पड़ताल जरूरी है कि इसके अपने ब्रांड हैं क्या। कांगे्रस सरकार के पर्यटन में अपना सियासी करियर खोजते विजय सिंह मनकोटिया के कार्यकाल में कंगना रणौत को ब्रांड एंबेसेडर बनाने की परिक्रमा हुई, तो वर्तमान सरकार के दौर में अपने दिलीप राणा उर्फ खली के कद में एक ब्रांड देखा गया। हमने तब भी ऐसी किसी अवधारणा को उचित नहीं ठहराया था और अब भी यही कहेंगे कि ऐसी सुर्खियों के बजाय तमाम प्रतिष्ठित हिमाचलियों के प्रदेश के प्रति योगदान को आमंत्रित किया जाए। हिमाचल किसे याद नहीं आता और इसकी वजह मातृभूमि का कर्ज उतारना चाहती है, लेकिन सियासी प्राथमिकता या पसंद के कारण ऐसी परंपरा ही नहीं बनी। वाइब्रेंट गुजरात की तर्ज पर हिमाचलवंशियों का वार्षिक सम्मेलन कराया जाए, तो प्रदेश में नए निवेश के कई सेतु स्थापित होंगे। हिमाचल के बाहर निकल कर जो सफल हुए, उनके प्रति प्रदेश का आदर किसी लक्ष्य और अभिलाषा से नहीं जुड़ेगा, तो खली को भी अपने रिंग पर आकर अफसोस होगा। खली को बतौर कोच हिमाचल में अकादमी खोलने को प्रेरित करें, तो इस कद का फायदा हो सकता है। इसी तरह कंगना अगर हिमाचली प्रतिभाओं के लिए फिल्म एवं टीवी संस्थान या फिल्म सिटी की स्थापना में अहम भूमिका निभाती हैं, तो सरकारी प्रयास अवश्य होने चाहिएं। कितने हिमाचली फिल्म-टीवी, गीत-संगीत, उद्योग, मीडिया, चिकित्सा-शिक्षा, ट्रांसपोर्ट व विविध व्यवसायों के जरिए अपनी उपलब्धियां दर्ज करा रहे हैं, इसका गैर राजनीतिक सर्वेक्षण होना चाहिए। हिमाचल अगर अपने मेडिकल कालेजों को प्रतिष्ठित करना चाहता है, तो देश में चर्चित हिमाचली डाक्टरों को आमंत्रित करना होगा। आश्चर्य तो यह कि एयरपोर्ट अथारिटी ऑफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व ऊना निवासी प्रोफेसर एनके सिंह से किसी सरकार ने आज तक एविएशन पालिसी पर कभी सलाह तक नहीं ली। पूरे विश्व के समक्ष शांति के दूत महामहिम दलाईलामा को दिल्ली के मुख्यमंत्री अपने हैप्पीनेस पाठ्यक्रम की शुरुआत के लिए बुलाते हैं, लेकिन हिमाचल ने कभी युग पुरुष को अपने लिए किसी मंच पर खड़ा नहीं किया। एम्स और पीजीआई के निदेशक पद पर दो हिमाचली सुशोभित हैं, तो ऐसे राष्ट्रीय योगदान को हम अपने कितना करीब पाएंगे और इसी तरह सैन्य सेवाओं के शीर्ष पर विद्यमान हिमाचली गौरव की पताका को कितना ऊंचा कर पाएंगे। मंडी जिला से ताल्लुक रखने वाले खेल प्रशिक्षक भूपिंद्र सिंह के सान्निध्य में देश के खिलाड़ी अगर तैयार हो रहे हैं, तो क्या उन्हें हिमाचल में अकादमी स्थापित करने को हम जमीन उपलब्ध नहीं करा सकते हैं। कई फिल्मी हस्तियां प्रदेश में लौटकर फिल्म सिटी को मूर्त रूप देना चाहती हैं, तो इस योगदान को किसका आशीर्वाद चाहिए। हिमाचल के मतदाताओं ने अब अपने क्षेत्र के लिए सियासी राजदूत चुनने शुरू किए हैं और इस दृष्टि से देखें, तो जोगिंद्रनगर, सुजानपुर व देहरागोपीपुर के तीनों विधायक अपनी उपलब्धियों के नजरिए से विजयी हुए। मुंबई में टैक्सी दौड़ाते वे तमाम वाहन चालक व स्वामी हमारे चरित्र के एंबेसेडर हैं, तो बंगलूर की सूचना क्रांति में शरीक हो रहे युवा भी तो प्रदेश का यह संदेश फैला रहे हैं कि हिमाचली कितना मेहनती समुदाय है। हिमाचल में कार्यरत कर्मचारी व अधिकारी अपने फर्ज की परिपाटी पर राज्य का नाम ऊंचा करते हैं, तो इस योगदान को सियासत से ऊपर रखकर देखना होगा। ऐसे कितने कबायली टै्रकर्स हैं, जो पर्यटक को पर्वतीय अंचल में सुरक्षा की गारंटी देते हैं। फायर कर्मी कमोबेश हर तरह की चुनौती में दीवार बन कर खड़े होते हैं, इसलिए जब नदियां उफान पर होती हैं तो बड़े दिलवाला रस्सी के सहारे किसी न किसी पर्यटक को बचा रहा होता है। हिमाचल के मंदिर-देव स्थलों, परंपराओं और मेलों में इतना दम है कि पूरा पर्यटक सीजन खचाखच भर जाता है। बाबे का रोट, मंडी की दाल कचौड़ी या कुल्लू के सिड्डू हों, हिमाचली व्यंजन राजदूत बनकर प्रदेश की महक बढ़ा रहे हैं। जिस मोमो के दीवाने भारतीय युवा हैं, उसका नामकरण अगर मकलोडगंज में न होता, तो यह दौर जरूर थम गया होता। कहना न होगा कि हिमाचली चरित्र में छिपे दूत को आगे  बढ़ाएंगे, तो प्रदेश का नाम कई महान हस्तियों से जुड़ेगा। नाम कमा रहे हिमाचली ही अगर हमारे ब्रांड एंबेसेडर हैं, तो हमें ग्लैमर से हटकर उस कर्मठता को श्रेय देना होगा, जो अपने संकटों से जूझती हुई देश-प्रदेश के सामने उदाहरण बन गई। क्या प्रदेश सफल हिमाचलियों के विजन को अपने वजूद से जोड़कर आगे बढ़ेगा या यूं ही सियासी पसंद या नापसंद के कारण चेहरे बदलते रहेंगे।