जगन्नाथ रथयात्रा दस दिवसीय महोत्सव होता है। यात्रा की तैयारी अक्षय तृतीया के दिन श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा के रथों के निर्माण के साथ ही शुरू हो जाती है। देश-विदेश से लाखों लोग इस पर्व के साक्षी बनने हर वर्ष यहां आते हैं। भारत के चार पवित्र धामों में से एक पुरी के 800 वर्ष पुराने मुख्य मंदिर में योगेश्वर श्रीकृष्ण जगन्नाथ के रूप में विराजते हैं। साथ ही यहां बलभद्र एवं सुभद्रा भी हैं। वर्तमान रथयात्रा में जगन्नाथ को दशावतारों के रूप में पूजा जाता है, उनमें विष्णु, कृष्ण, वामन और बुद्ध हैं…
माता रोहिणी ने जैसे ही कथा कहना शुरू किया, अचानक श्रीकृष्ण और बलराम महल की ओर आते हुए दिखाई दिए। सुभद्रा ने उन्हें द्वार पर ही रोक लिया, किंतु श्रीकृष्ण और राधा की रासलीला की कथा श्रीकृष्ण और बलराम दोनों को ही सुनाई दी। उसको सुनकर श्रीकृष्ण और बलराम अद्भुत प्रेमरस का अनुभव करने लगे, सुभद्रा भी भावविह्वल हो गई। अचानक नारद के आने से वे पूर्ववत हो गए। नारद ने श्री भगवान से प्रार्थना की कि -‘हे प्रभु, आपके जिस ‘महाभाव’ में लीन मूर्तिस्थ रूप के मैंने दर्शन किए हैं, वह सामान्यजन के हेतु पृथ्वी पर सदैव सुशोभित रहे।’ इस पर प्रभु ने तथास्तु कहा।
बाहुड़ा यात्रा
आषाढ़ शुक्ल दशमी को जगन्नाथ जी की वापसी यात्रा शुरू होती है। इसे बाहुड़ा यात्रा कहते हैं। शाम से पूर्व ही रथ जगन्नाथ मंदिर तक पहुंच जाते हैं जहां एक दिन प्रतिमाएं भक्तों के दर्शन के लिए रथ में ही रखी रहती हैं। अगले दिन प्रतिमाओं को मंत्रोच्चार के साथ मंदिर के गर्भगृह में पुनः स्थापित कर दिया जाता है। मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र एवं सुभद्रा की सौम्य प्रतिमाओं को श्रद्धालु एकदम निकट से देख सकते हैं। जिस वर्ष अधिमास रूप में आषाढ़ माह अतिरिक्त होता है, उस वर्ष भगवान की नई मूर्तियां बनाई जाती हैं। यह अवसर भी उत्सव के रूप में मनाया जाता है। पुरानी मूर्तियों को मंदिर परिसर में ही समाधि दी जाती है। पुरी के जगन्नाथ मंदिर के दस दिवसीय महोत्सव की तैयारी श्रीगणेश अक्षय तृतीया को श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा के रथों के निर्माण से शुरू हो जाती है। कुछ धार्मिक अनुष्ठान भी किए जाते हैं।
गरुड़ध्वज
जगन्नाथ जी का रथ गरुड़ध्वज या कपिलध्वज कहलाता है। 16 पहियों वाला यह रथ 13.5 मीटर ऊंचा होता है जिसमें लाल व पीले रंग के वस्त्र का प्रयोग होता है। विष्णु का वाहक गरुड़ इसकी रक्षा करता है। रथ पर जो ध्वज है, उसे त्रैलोक्यमोहिनी या ‘नंदीघोष’ रथ कहते हैं।
तालध्वज
बलराम का रथ तालध्वज के नाम से पहचाना जाता है। यह रथ 13.2 मीटर ऊंचा 14 पहियों का होता है। यह लाल, हरे रंग के कपड़े व लकड़ी के 763 टुकड़ों से बना होता है। रथ के रक्षक वासुदेव और सारथी मताली होते हैं।
पद्मध्वज या दर्पदलन
सुभद्रा का रथ पद्मध्वज कहलाता है। 12.9 मीटर ऊंचे 12 पहिए के इस रथ में लाल, काले कपड़े के साथ लकड़ी के 593 टुकड़ों का प्रयोग होता है।
श्री जगन्नाथ जी की आरती
परसत चरणारविंद आपदा हरी।
निरखत मुखारविंद आपदा हरी,
कंचन धूप ध्यान ज्योति जगमगी।
अग्नि कुंडल घृत पाव सथरी। आरती..
देवन द्वारे ठाड़े रोहिणी खड़ी,
मारकंडे श्वेत गंगा आन करी।
गरुड़ खम्भ सिंह पौर यात्री जुड़ी,
यात्री की भीड़ बहुत बेंत की छड़ी। आरती ..
धन्य-धन्य सूरश्याम आज की घड़ी। आरती ..
जगन्नाथ अष्टकम
मुदा गोपीनारी वदनकमलास्वादमधुपः
रमाशंभुब्रह्मा मरपतिगणेशार्चितपदो
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ 1 ॥
भुजे सव्ये वेणुं शिरसि शिखिपिंछं कटितटे
दुकूलं नेत्रांते सहचर कटाक्षं विदधते
सदा श्रीमद्बृंदा वनवसतिलीलापरिचयो
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ 2 ॥
महांभोधेस्तीरे कनकरुचिरे नीलशिखरे
वसंप्रासादांत-स्सहजबलभद्रेण बलिना
सुभद्रामध्यस्थ स्सकलसुरसेवावसरदो
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ 3 ॥
कथापारावारा स्सजलजलदश्रेणिरुचिरो
रमावाणीसौम स्सुरदमलपद्मोद्भवमुखैः
सुरेंद्रै राराध्यः श्रुतिगणशिखागीतचरितो
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ 4 ॥
रथारूढो गच्छन्पथि मिलङतभूदेवपटलैः
स्तुतिप्रादुर्भावं प्रतिपद मुपाकर्ण्य सदयः
दयासिंधुर्भानु सकलजगता सिंधुसुतया
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ 5 ॥
परब्रह्मापीडः कुवलयदलोत्फुल्लनयनो
निवासी नीलाद्रौ निहितचरणोनंतशिरसि
रसानंदो राधा सरसवपुरालिंगनसुखो
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ 6 ॥
न वै प्रार्थ्यं राज्यं न च कनकितां भोगविभवं
न याचे2 हं रम्यां निखिलजनकाम्यां वरवधूं
सदा काले काले प्रमथपतिना चीतचरितो
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ 7 ॥
हर त्वं संसारं दु्रततर मसारं सुरपते
हर त्वं पापानां वितति मपरां यादवपते
अहो दीनानाथं निहित मचलं निश्चितपदं
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ 8 ॥
इति जगन्नाथाष्टकम