वित्तीय व नीतिगत उपेक्षा के शिकार पुस्तकालय

रविंद्र सिंह भड़वाल

लेखक, नूरपुर से हैं

हर पुस्तकालय के प्रशासन को गंभीरता से न केवल विचार करना होगा, बल्कि जो सही लगे, उसे व्यवहार में भी लाना होगा…

करियर की मंजिलों तक पहुंचाने से कहीं बढ़कर, पुस्तकालय समाज निर्माण की महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। यही पुस्कालय पाठकों की बौद्धिक भूख को शांत करने का जरिया भी रहे हैं। इस पूरे परिप्रेक्ष्य में पुस्तकालय, खासकर सार्वजनिक पुस्तकालय की प्रासंगिकता को सहज ही समझा जा सकता है। दुखद यह कि पुस्तकालय के इस महत्त्व को समझते हुए भी हमने कभी प्रदेश में जरूरत के मुताबिक पुस्तकालय चलाने की जहमत नहीं उठाई और जिला स्तर पर जो पुस्कालय शुरू किए, वे भी मुकम्मल सुविधाओं से वंचित ही रहे हैं।

प्रदेश के सबसे बड़े जिला कांगड़ा के धर्मशाला स्थित पुस्तकालय की बात करें, तो अब तक संबंधित प्रशासन यहां पाठकों की संख्या के हिसाब से बैठने के बंदोबस्त में ही नाकाम रहा है। अगर पीने के पानी और शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाओं की व्यवस्था करने में भी प्रशासन की नाकामी नजर आए, तो आवश्यक आधुनिक सुविधाओं की उम्मीद करना भी बेमानी होगा। जिन पुस्तकालयों में ये तमाम आवश्यक एवं बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध होती हैं, वहां जिरह नई-नई एवं उपयोगी पाठ्य पुस्तकें मुहैया करवाने की होती हैं। जबकि प्रदेश के प्रमुख जिला पुस्तकालयों के पाठकों की ऊर्जा पीने के पानी और साफ-सफाई के संघर्ष में ही खप जाती है। इन तमाम चुनौतियों से उलझते हुए भी अगर यही पुस्तकालय देश-प्रदेश को हर वर्ष हजारों अधिकारी-कर्मचारी सौंप रहे हैं, तो संबंधित प्रशासन को इनकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। देश के कुछ राज्यों ने अपने यहां प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे युवाओं की सहूलियत में प्रशिक्षण केंद्रों की व्यवस्था खड़ी की है, प्रतियोगिता की इस धारा में प्रदेश के युवाओं को शामिल करने की तैयारी तो हिमाचल सरकार को भी परखनी होगी। हम यह नहीं कहते कि रातोंरात नए कोचिंग संस्थान खड़े हो जाएं या मौजूदा पुस्कालयों का पूरी तरह कायाकल्प हो जाए, लेकिन कहीं से तो शुरुआत होनी ही चाहिए। लिहाजा इन पुस्तकालयों की दशा सुधारने हेतु तुरंत प्रभाव से पर्याप्त वित्तीय सहायता के साथ-साथ सुधार के स्पष्ट निर्देश हर जिला पुस्तकालय के प्रशासन को जारी करने होंगे। इसके अलावा प्रदेश सरकार चाहे, तो प्रदेश की भौगोलिक जरूरतों को समझते हुए तमाम आधुनिक सुविधाओं से लैस व बैठने की पर्याप्त क्षमता वाले तीन-चार आदर्श पुस्कालय खोल सकती है। यहां तमाम बुनियादी सुविधाओं के साथ-साथ वाई-फाई और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए जरूरी पाठ्य पुस्तकों का बंदोबस्त हो जाए, तो इस प्रयास के सदके प्रदेश में अध्ययन की परिपाटी यकीनी तौर पर पुष्ट होगी। दूसरी ओर यदि स्कूली परंपरा में लाइब्रेरी वाला पक्ष जुड़ जाए, तो इससे पाठशालाओं की प्रतिष्ठा में भी इजाफा होगा।

अतः पुस्तकालयों की स्थिति में सुधार के लिए प्रदेश सरकार तथा हर पुस्तकालय के प्रशासन को गंभीरता से न केवल विचार करना होगा, बल्कि जो सही लगे, उसे व्यवहार में भी लाना होगा। विभिन्न पुस्तकालयों में अध्ययन कर कई युवा सम्मानीय पदों तक पहंच चुके हैं। यह वर्ग चाहे तो अपनी कमाई का कुछ हिस्सा अपने पुस्तकालय को अर्पित कर सकते हैं। व्यक्तिगत सुधार के साथ-साथ सामाजिक उन्नति एवं प्रगति की आकांक्षाएं अगर विद्यालयों के बाहर कहीं मौजूद हैं, तो वे पुस्कालयों में ही हैं। अध्ययन यदि साधना है, तो इसे सफल बनाने के लिए पुस्तकालय से बेहतर माहौल शायद ही कहीं मिल सकता है। पुस्तकालयों की मौजूदा हालत में सुधार लाकर प्रदेश सरकार ज्ञानार्जन की इस प्रक्रिया को काफी हद तक सरल एवं प्रभावी बना सकती है। तभी युवाओं का कल्याण सुनिश्चित हो पाएगा।