सच बयां करती मौलाना की हरकत

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं

कुरान शरीफ पढ़ने और समझने का दावा मौलाना का भी था और फराह ने भी कुरान-ए-पाक को समझ लिया होगा, तभी वे उसे उद्धृत कर रही थीं। मौलाना कुछ समय तो तर्क देते रहे, लेकिन जब फराह के तर्कों के सामने उनके तर्क लेटने लगे तो वे खुद खड़े हो गए। एक तो जुबानदराजी और ऊपर से औरत जात! कोई मर्द होता तब भी बात थी। औरत होकर जुबान लड़ाए और वह भी मौलाना से! बहस भी किस विषय पर, कुरान शरीफ की व्याख्या को लेकर! इतने गुनाह फराह फैज के, तो मौलाना चुप कैसे रह सकते थे। वैसे भी उनके तरकश में से तर्कों के तीर अब तक समाप्त हो चुके थे…

मौलाना एजाज अरशाद काजमी ने उच्चतम न्यायालय की वकील फराह फैज को एक चैनल में बहस में हिस्सा लेते हुए पीट दिया। बहस तीन तलाक और हलाला को लेकर हो रही थी। ध्यान रहे उच्चतम न्यायालय ने पिछले दिनों तीन तलाक को गैर कानूनी घोषित कर दिया था। मौलाना एजाज अरशाद काजमी को आम आदमी नहीं जानता, लेकिन भारत के खासकर उत्तर भारत के मुसलमान उनको अच्छी तरह जानते हैं। वे इस जगत में बहुत पहुंचे हुए मौलाना माने जाते हैं। उत्तर भारत में पहुंचे हुए का अर्थ होता है, जिसे कोईर् खास नियामत हासिल हो गई हो। कहा जाता है काजमी को इल्म की खास नियामत मिली हुई है। अल्लाह के फजल से वे कुरान शरीफ की जब व्याख्या करते हैं, तो सुनने वाले उनके मुरीद हो जाते हैं और भाव-विभोर होकर गर्दन हिलाते हैं।

वैसे कुछ लोग ये भी कहते हैं कि मौलाना फारसी और अरबी भाषा के भारी-भरकम अल्फाज का जब इस्तेमाल करते हैं, तो हिंदुस्तान का आम मुसलमान, जो अवधी, ब्रजभाषा और अपनी स्थानीय बोलियों को बोलता-सुनता परवान चढ़ा है, उसको समझ तो नहीं पाता, पर मौलाना की विद्वत्ता से प्रभावित जरूर हो जाता है। कुछ लोगों ने एक एनजीओ भी बना रखी है, मौलाना उस एनजीओ के भी मोहतबरों में शामिल हैं। उस एनजीओ का नाम भी भारी-भरकम रखा गया है-आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड। आम मुसलमान इस नाम से ही गश खा जाता है। बहुत से लोग तो इस बोर्ड को सरकारी महकमा ही समझ बैठते हैं। मौलाना काजमी इस्लाम के बारे में लोगों को जानकारी देता है। कुरान का तो वह आलिम फाजिल है ही,  लेकिन मौलानाओं के दुर्भाग्य से पिछले कुछ अरसे से आम मुसलमानों के बच्चे भी मदरसे छोड़कर उन स्कूलों में तालीम हासिल करने लगे हैं, जहां मुल्क के बाकी बच्चे तालीम हासिल करते हैं। ये बच्चे तालीम हासिल कर हर शोबे में आगे बढ़ रहे हैं। अध्यापक लग रहे हैं, डाक्टर बन रहे हैं, वकील बन रहे हैं, साईंसदान बन रहे हैं। उन लोगों ने खुद ही इस्लाम के ग्रंथों को पढ़ना शुरू कर दिया है। वे खुद ही कुरान शरीफ को पढ़ने लगे हैं। वे खुद ही हदीस को समझने लगे हैं।

जाहिर है जब मुल्क का आम मुसलमान खुद ही कुरान शरीफ पढ़ने लगेगा और दूसरी मजहबी किताबें खुद ही बांचने लगेगा, तो मौलानाओं का धंधा तो चौपट होगा ही। धंधा चौपट होने से गड़बड़ होती है, बेचैनी बढ़ती है, मगज गर्म होता है। पहले-पहले हिंदुस्तान में जो इस्लाम को लेकर आए थे, सबसे सैयद और कुरैशी इस मजहब की व्याख्या करके उन हिंदुस्तानियों को बताते थे, जो उनके मजहब में शामिल हो गए थे। जब उन हिंदुस्तानियों में से कुछ लोग खुद ही कुरान को समझने लगे, तो दलाल स्ट्रीट खतरे में पड़ गई। मजहबी मामलों में भी तलाक और हलाला बहुत अहमियत रखते हैं। आखिर शादी तो सभी की होगी और होती है, लेकिन मुसलमानों के मामले में शादी के बाद तलाक की तलवार सदा लटकती रहती है। इसका कारण है कि मुसलमान को तलाक को लेकर बहुत कुछ करने की जरूरत नहीं है। महज तीन बार तलाक कहना है और किस्सा खत्म। गुस्से में आकर कब तीन बार तलाक मुंह से निकल जाए, संस्कार क्या भरोसा? लेकिन आगे का रास्ता और भी खतरनाक और दोजख का नमूना है। सुबह शौहर का गुस्सा शांत होता है, लेकिन तब तक तीर उसके हाथ से भी निकल गया होता है। अब औरत को हलाला का आग का दरिया पार करना होता है और इसा दरिया के किनारे मुल्ला, मौलवी, मौलाना अपना जाल बिछाए बैठे होते हैं। टीवी चैनल पर कुछ दिन पहले जब फराह फैज की पिटाई का किस्सा हुआ, तो इसी तीन तलाक और हलाला को लेकर बहस चल रही थी। फराह फैज का कहना था कि तीन तलाक और हलाला को इस्लाम मान्यता नहीं देता। हलाला तो वैसे भी अमानवीय है। मौलाना काजमी डटे हुए थे कि तीन तलाक इस्लाम का जरूरी हिस्सा है।

कुरान शरीफ पढ़ने और समझने का दावा मौलाना का भी था और फराह ने भी कुरान-ए-पाक को समझ लिया होगा, तभी वे उसे उद्धृत कर रही थीं। मौलाना कुछ समय तो तर्क देते रहे, लेकिन जब फराह के तर्कों के सामने उनके तर्क लेटने लगे तो वे खुद खड़े हो गए। एक तो जुबानदराजी और ऊपर से औरत जात! कोई मर्द होता तब भी बात थी। औरत होकर जुबान लड़ाए और वह भी मौलाना से! बहस भी किस विषय पर, कुरान शरीफ की व्याख्या को लेकर! इतने गुनाह फराह फैज के, तो मौलाना चुप कैसे रह सकते थे। वैसे भी उनके तरकश में से तर्कों के तीर अब तक समाप्त हो चुके थे। जब तर्क समाप्त हो जाते हैं, तब हारते हुए आदमी को हाथ का ही सहारा होता है। मौलाना ने उसी को इस्तेमाल किया और सभी के सामने फराह फैज की पिटाई कर डाली।

फराह सोच रही होंगी कि मौलवी-मौलानाओं से बहस भी कोर्ट कचहरी की तर्ज पर होती होगी, जिसमें विद्वत्ता व ज्ञान ही अंतिम हथियार होता है। अब जाकर देश को समझ आया कि मौलाना का अंतिम हथियार न कुरान शरीफ है, न तर्क है, न ज्ञान  है, उसका अंतिम हथियार उसका हाथ है, जिसका इस्तेमाल मौलाना काजमी ने एक आम मुसलमान को चुप कराने के लिए बखूबी किया। इसके बाद तीन तलाक व हलाला पर बहस करवाने की जरूरत भी नहीं रही थी। तीन तलाक कैसे होते हैं, उसका पर्दा एक मौलाना ने ही उठा दिया था, जिस मौलाना की धाक आम मुसलमान में फैली हुई है। यह मर्द की ताकत है, जिसे मजहब ने सच्चा, झूठा आश्रय दिया हुआ है।

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