हिमाचल में बढ़ती जा रही झीलों ने डराए वैज्ञानिक

मनाली— सतलुज, ब्यास, रावी और चिनाब नदियों के क्षेत्र में बढ़ रही झीलों की संख्या ने वैज्ञानिकों को अब टेंशन में डाल दिया है। हिमाचल हिमालयज में ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने के कारण बन रही इन छोटी-बड़ी झीलों की संख्या पिछले कुछ सालों में काफी बढ़ गई है। ऐसे में अब इन झीलों पर सेटेलाइट से नजर रखी जा रही है।  एचपी काउंसिल फार साइंस टेक्नोलॉजी एंड एनवायरनमेंट की एक रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है। रिपोर्ट में बताया गया है कि ग्लेशियरों के पिघलने से सतलुज नदी क्षेत्र, जिसमें उसका उद्गम स्थल भी शामिल है। उस क्षेत्र में 642 झीलें देखी गईं हैं, जबकि वर्ष 2013 में इस क्षेत्र में झीलों का आंकड़ा 391 ही था। ऐसे में वैज्ञानिकों का कहना है कि इस क्षेत्र में 2013 से 2017 तक उक्त झीलों में 64 फीसदी बढ़ोतरी हुई है। इन 642 झीलों में से 52 झीलें ऐसे ही जिनका दायरा दस हेक्टयर से ज्यादा है। 2013 में इन दस हेक्टयर से ज्यादा दायरे वाली झीलों का आंकड़ा महज 40 था। इसी तरह चिनाब नदी के क्षेत्र में 220 झीलें देखी गईं हैं, जबकि 2013 में इन की संख्या 116 थी। बात यहां ब्यास नदी क्षेत्र की करें तो इसके क्षेत्र में 101 झीलें बन गई हैं। वर्ष 2013 में इन झीलों की संख्या 67 थी। वैज्ञानिकों का कहना है कि वर्ष 2015 में इस क्षेत्र में झीलें 89 हो गई थी। ब्यास नदी के क्षेत्र में इन झीलों के बढ़ने की रफ्तार करीब पिछले कुछ वर्षाें में 50 फीसदी तक आंकी गई है। ब्यास नदी के क्षेत्र के दायरे में चार झीलें ऐसी हैं, जिनका दायरा दस हेक्टयर से ज्यादा है। बात यहां रावी नदी क्षेत्र की करें तो वर्ष  2013 में यहां 22 झीलें हुआ करती थी, लेकिन अब इनका आंकड़ा 54 पहुंच गया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में जहां पर्यावरण में बदलाव आया है, वहीं उक्त क्षेत्र में छाटी-बड़ी झीलों का आंकड़ा भी एक हजार के पार पहुंच गया है। हालांकि इसमें छोटी झीलों की संख्या काफी ज्यादा है। सतलुज नदी क्षेत्र में 92 फीसदी छोटी झीलों में पिछले कुछ वर्षों में इजाफा हुआ है। इसके अलावा ब्यास में 46 फीसदी, चिनाब में 97 फीसदी, रावी में 163 फीसदी का इजाफा हुआ है। वैज्ञानिकों का कहना है कि हिमाचल हिमालयाज में बड़ी झीलों के बढ़ने की रफ्तार भी 36 फीसदी बढ़ी है। वैज्ञानिकों का कहना  है कि जलवायु परिवर्तन व पर्यावरण में आ रहे बदलाव के कारण  जहां ग्लेशियरों के पिघलने का दौर जारी है, वहीं इनके पिघलने से बढ़ रही झीलों ने वैज्ञानिकों को टेंशन में डाल दिया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इन  झीलों पर अब सेटेलाइट से भी नजर रखी जा रही है और पानी के स्तर को मोनीटर किया जा रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्लेशियर लेक के फटने से काफी  तबाही होती है। ऐसे में वे नहीं चाहते कि हिमाचल को इन झीलों से कोई खतरे का सामना करना पड़े। ऐसे में हिमालय रेंज की हर हलचल पर वैज्ञानिकों अपनी नजर बनाए हुए हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्लेशियर झील के फटने का कारण अभी तक जो समाने आए हैं,उनमें देखा गया है कि भूकंप इसका सबसे बड़ा कारण रहा है। इसके अलावा तेज बारिश भी एक कारण मानी गई है।