…आखिरी गोली और आखिरी सांस तक लड़ेंगे

आज भी गूंजते हैं मेजर सोमनाथ के बोल, जान न्योछावर कर श्रीनगर को बचा गए पहले परमवीर चक्र विजेता

पालमपुर— ‘दुश्मन हमसे पचास गज दूरी पर है। हम एक भी इंच पीछे नहीं हटेंगे। आखिरी गोली और आखिरी सांस तक लड़ेंगे’, यह आखिरी संदेश था उस 24 साल के जांबाज आफिसर का, जिसने भारत मां की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। मेजर सोमनाथ शर्मा का जन्म 31 जनवरी, 1923 को पालमपुर उपमंडल के गांव डाढ में हुआ था। उनके पिता अमर नाथ शर्मा भारतीय सेना में मेजर जनरल थे, जो बाद में भारत की सशस्त्र चिकित्सा सेवा के पहले महानिदेशक बने। नैनीताल में शेरवुड कालेज से स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने देहरादून में वेल्स रॉयल मिलिट्री कालेज के प्रिंस ऑफ  नोएडा में प्रवेश लिया। 22 फरवरी, 1942 को सोमनाथ शर्मा भारतीय सेना में शामिल हुए। सोमनाथ शर्मा चार कुमाऊं रेजिमेंट की डेल्टा कंपनी में एक मेजर के रूप में काम कर रहे थे, जब 22 अक्तूबर, 1947 को पाकिस्तान की ओर से आक्रमण शुरू हुआ। मेजर शर्मा की कंपनी को 31 अक्तूबर, 1947 को श्रीनगर पहुंचाया गया। उस समय मेजर शर्मा के दाहिने हाथ पर प्लास्टर था, क्योंकि उन्हें खेलते समय फे्रक्चर हो गया था। भारी गोलीबारी के बीच मेजर शर्मा ने अपने साथियों को बहादुरी से लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया। यहीं से उन्होंने मुख्यालय को संदेश भेजा और वीरता से लड़ते हुए मातृभूमि के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया। तीन नवंबर, 1947 को मेजर सोमनाथ शर्मा एक मोर्टार शेल विस्फोट में शहीद हो गए, लेकिन उनका बलिदान व्यर्थ नहीं गया और अपने अधिकारी की वीरता और दृढ़ता से प्रेरित होने के बाद सैनिकों ने छह घंटे तक दुश्मन से लड़ना जारी रखा। मेजर सोमनाथ शर्मा के साथ एक जूनियर कमीशन अधिकारी और चार कुमाऊं की डी कंपनी के 20 अन्य सैनिक युद्ध में शहीद हुए थे। मेजर सोमनाथ शर्मा के नेतृत्व में, चौथी कुमाऊं रेजिमेंट ने श्रीनगर को बचा लिया। मेजर सोमनाथ शर्मा को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

50 जांबाज 500 पर भारी

मेजर सोमनाथ शर्मा तीन नवंबर को बडगाम पहुंचे जहां हालात काफी खराब थे दोपहर को दो बजे करीब पांच सौ सैनिकों ने मेजर शर्मा की कंपनी के 50 भारतीय जवानों पर हमला किया। श्रीनगर एयरफील्ड एकमात्र जीवनरेखा थी और दुश्मन ने हवाई क्षेत्र पर कब्जा करने की फिराक में था स्थिति की गंभीरता को महसूस करते हुए मेजर शर्मा ने खुद मोर्चा संभाला। मेजर सोमनाथ शर्मा को पता था कि अगर वे दुश्मनों को नहीं रोक पाए तो पाकिस्तानी सेना सीधे श्रीनगर और हवाई अड्डा पर कब्जा कर लेगी, जहां से पूरे कश्मीर पर काबू पा लेंगे और हवाई अड्डा हाथ से जाने पर भारतीय सेना का कश्मीर में आ पाना मुश्किल था।