आजादी के सही मायनों से दूर

ममता चंदेल बिलासपुर

आजादी के सही मायने आखिर हैं क्या? स्वतंत्रता का अलख जगाने की चाह में स्वतंत्रता के पावन यज्ञ में अपनी जान की पहली आहुति बैरकपुर छावनी में भारतीय सेना के मंगल पांडे ने दी थी। इसी कड़ी से जुड़ते हुए अन्य कई स्वतंत्रता सेनानियों ने इस संग्राम में अपनी जान की कुबार्नी दी, परंतु आज भी आजादी के सही मायने प्रासंगिक प्रतीत नहीं होते हैं। वास्तव में आजादी के 7 दशक बाद भी आजादी केवल आजादी शब्द और आंकड़ों तक ही सीमित रह गई है। क्या आज भी हम गरीबी, बेरोजगारी, सांप्रदायिकता, जातिवाद, धार्मिक कट्टरता जैसी देश को खोखला करने वाली समस्याओं से निजात पा सके हैं? आजादी के सही मायने उस दिन सार्थक होंगे, जिस दिन अमीर-गरीब का फासला खत्म होगा, महिलाओं को सम्मानजनक दृष्टि से देखा जाएगा, बलात्कारियों को अविलंब सूली पर लटकाया जाएगा। जातिवाद भेद का उन्मूलन, भूखी मरती जनता को भरपेट भोजन, व करोड़ों-अरबों का घोटाला कर देश से भागने वाले विजयमाल्या, नीरव मोदी जैसे देश के लुटेरों पर कानून का शिकंजा, अन्नदाता को फसलों का सही मूल्य व आम जनता को त्वरित न्याय मिले। हमें आजादी की नई इबारत लिखनी होगी, ताकि आने वाली नई पीढ़ी हम पर सिर उठाकर गर्व कर सके।