कृषि हेल्पलाइन

सेब के रोग को समझने में न करें गलती

हिमाचल प्रदेश की आर्थिकी में सेब की खेती का महत्त्वपूर्ण योगदान है। सेब की खेती हिमाचल प्रदेश में लगभग एक लाख हेक्टेयर भूमि पर की जाती है, जिससे लगभग सात लाख मीट्रिक टन सेब का उत्पादन होता है। जहां सेब की खेती एक बहुत ही लाभदायक व्यवसाय है, वहीं सेब उत्पादन में बहुत सारी बीमारियां एक चुनौती के रूप में सामने आती हैं। पत्तों व फलों की बीमारियों का प्रबंधन मृदा जनित बीमारियों के अपेक्षाकृत आसान रहता है। कॉलर रॉट, रूट रॉट अथवा क्राउन रॉट

यह बीमारी फाईटोफ्थोरा कैक्टोरम  नामक फफूंद के कारण होती है व इसका संक्रमण कॉलर क्षेत्र यानी मिट्टी के साथ लगते भाग से शुरू होता है। फिर वहां से भूमिगत भागों तथा अतिसंवेदनशील किस्मों में जमीन के ऊपरी हिस्सों में भी फैल जाता है। भूमिगत भागों में जब यह सड़न मुख्य अथवा प्राथमिक जड़ों में फैलती है, तो इसे जड़ सड़न (रूट रॉट) के नाम से भी जाना जाता है, परंतु इस स्थिति में किसान इसे अकसर सफेद जड़ विगलन रोग समझने की गलती कर बैठते है। फाईटोफ्थोरा कैक्टोरम नामक यह फफूंद मुख्यतः कैंबियम पर संक्रमण करती है तथा इसके संक्रमण के लिए घाव आवश्यक होता है। इस रोग से संक्रमित पौधों की मिट्टी से लगती छाल सड़कर गहरे भूरे रंग की व स्पांजी हो जाती है। संक्रमण क्षेत्र में कैंकर जैसे अनियमित रूपरेखा वाले घाव बनते हैं और यह तेजी से विस्तार कर पेड़ के तने को चारों ओर से घेर लेते हैं। इस रोग के कारण संकर्मित पेड़ों में पोषक तत्त्वों को अवशोषित करने की क्षमता कम हो जाती है, जिसकी वजह से संक्रमित पेड़ों को पत्तियों की बैंगनी रंग की नसों, स्पर्स की सामान्य से अधिक संख्या, विरले व छोटे पत्तों, आकार में छोटे फलों, पत्तों का देरी से निकलना इत्यादि लक्षणों द्वारा आसानी से पहचाना जा सकता है। चिकनी मिट्टी, जिसका पीएच मान 5.5 से 6.5 के बीच में हो तथा 60 प्रतिशत से अधिक नमी हो, में यह रोग अधिक पनपता है।

सफेद जड़ विगलन

यह रोग नर्सरी पौधों से लेकर किसी भी अवस्था के पौधों में पाया जाता है। सफेद जड़ विगलन जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, वर्षा  ऋतु में जमीन की सतह पर पोषण ग्रहण करने वाली जड़ों में सफेद रूई के जैसा कवक जाल देखा जा सकता है। सेब का यह रोग डिमैटोफोरा निकाट्रिक्स नामक फफूंद के कारण होता है, जो कि 173 से अधिक पौधों की प्रजातियों को संक्रमित कर सकती है। अनुकूल परिस्थितियों में यह फफूंद बहुत तेजी से फैलती है, जिससे पोषण ग्रहण करने वाली जड़ें सड़ जाती हैं अंततः संक्रमित पेड़ मर जाता है।  यह फफूंद मिट्टी में मृत जड़ों अथवा जीवांशों पर जीवित रह कर धीरे-धीरे साथ लगते अन्य पेड़ों में भी फैल जाती है। यदि इस रोग से प्रभावित पेड़ों को समय पर उपचारित न किया जाए ,तो यह रोग पूरे बागीचे को संक्रमित कर खत्म करने की संभावना रखता है।

सीडलिंग ब्लाइट  बीजू पौध झुलसा

यह बीमारी अधिकतर पौधशालाओं अथवा नए पौधों में देखने को मिलती है। गर्म जगहों जहां मिट्टी का तापमान 30-33वब्ए पीएच 6.0 तथा मिट्टी की नमी 38 प्रतिशत से अधिक हो, यह बीमारी आसानी से पनप सकती है। यह बीमारी सक्लैरोशियम रोल्फसाई नामक फफूंद की वजह से होती है जो कि जड़ों में संक्रमण करती है, जिससे पौधों के पत्ते मुरझाने लगते हैं व लालिमा अथवा भूरे रंग के हो जाते हैं। अंततः इस बीमारी से ग्रसित बीजू पौधों के पत्ते पूर्णतया मुरझा जाते हैं। मृत पौधों के बगल में सरसों के दाने के आकार के स्क्लैरोशिया  नजर आते हैं, जिनकी वजह से यह बीमारी आसानी से पहचानी जा सकती है।

-भूपेश गुप्ता, उषा शर्मा एवं शालिनी वर्मा