खेत में जैसा बीज बोएंगे, वैसा ही फल-फूल, अनाज पैदा होता है। इसी प्रकार अगर हम आकाश, वायु, जल, तेज आदि पंचनमों के क्षेत्र में भगवन नाम के बीज बोएंगे, वैसे ही फल प्राप्त होंगे…
-गतांक से आगे...
इसी दिन से ब्रह्मचर्य सत्यवादन और अप्रतिग्रह का पालन करना चाहिए। ऐसा दृढ़ संकल्प कर लेना चाहिए कि देवता आदि हमारे चारों ओर जल, थल, नभ में उपस्थित हैं और हमारी प्रार्थना सुन रहे हैं, अतः वे हमारी कामनाओं को अवश्य ही पूरा करेंगे। इस पूजा विधि के लिए खुला व एकांत स्थान, नदी का किनारा या जहां मनुष्य की बस्ती न हो, शोरगुल न हो, खुला जंगल, खेत या मंदिर के नजदीक का खुला स्थान चुनना चाहिए, जहां रात्रि के एकांत में कोई आवाज न सुनाई दे।
उत्तर दिशा की तरफ मुंह करके खड़े होकर ऊपर लिखी हुई विधि से संकल्प और ईश्वर का स्मरण करके ऊंची-ऊंची आवाज में ओउम शब्द का लंबा उच्चारण करना चाहिए। ओउम की ध्वनि इस प्रकार आनी चाहिए जैसे घंटे में से धीरे-धीरे ध्वनि उत्पन्न होती है। अगर ऐसा न हो सके तो एक हजार बार ओउम का उच्चारण करना चाहिए। इस प्रकार जितना अधिक संख्या में उच्चारण को बढ़ाया जा सके, उतना ही शुभ होगा। हमें यह समझना चाहिए कि ये संसार बिना तार का एक विशाल स्टेशन है। अरे! यह तो कर्म क्षेत्र है। खेत में जैसा बीज बोएंगे, वैसा ही फल-फूल, अनाज पैदा होता है। इसी प्रकार अगर हम आकाश, वायु, जल, तेज आदि पंचनमों के क्षेत्र में भगवन नाम के बीज बोएंगे, वैसे ही फल प्राप्त होंगे। यदि ओउम शब्द के जरिए हम ईश्वर से कुछ कहते हैं तो प्रतिध्वनि की तरफ उसका उत्तर हमें अवश्य मिल जाएगा। ईश्वर कण-कण में सर्वत्र व्यापक हैं, वे सब कुछ देखते, सुनते व समझते हैं। वे हमारी प्रार्थना को सुने बिना नहीं रह सकते। इसलिए दृढ़ मन चित्त से ओंकार का जाप नियमित रूप से करते रहना चाहिए। थोड़े ही दिनों में ऐसे संयोग उत्तर मिलना शुरू हो जाएंगे। शास्त्रकारों, मुनि-ऋषियों ने शास्त्रों व तंत्र गं्रथों में जो कुछ लिखा है, वह शत-प्रतिशत सही है, लेकिन उसे उच्चारण में लाने व समझने के लिए दृढ़ श्रद्धायुक्त व्यक्तियों की कमी है। थोड़े दिन मनुष्य ऐसा प्रयोग करता है और कुछ मिलने से पहले ही हार जाता है, जिससे वह यह सब असत्य समझकर छोड़ देता है। हमें यह भावार्थ समझना चाहिए कि जिस प्रकार एक बीज को जमीन में बोया जाता है, फिर उसकी सिंचाई की जाती है।
धीरे-धीरे यह पौधा बनने लगता है, कुछ समय बाद इसमें फूल आने लगते हैं और फिर फल की प्राप्ति होती है, उसी प्रकार हर कार्य को सिद्ध करने व उसका फल मिलने में समय अवश्य लगता है। लेकिन दृढ़ संकल्प से की गई मेहनत कभी व्यर्थ नहीं जाती है। इसी प्रकार थोड़े दिन ओंकार का जाप करने से कोई फल प्राप्ति नहीं होती और बीच में ही इस जप को छोड़ देते हैं तो यह सब किया हुआ श्रम और समय व्यर्थ जाएगा और मनोकामना की पूर्ति भी संभव नहीं होगी।
इसलिए यह जरूरी है कि अगर आप ओंकार का जाप शुरू करें तो जब तक आपकी मनोकामना पूरी नहीं होती है, तब तक करते रहना चाहिए। क्योंकि भगवान भी अपने भक्तों की परीक्षा लेते हैं। मीराबाई, प्रह्लाद, ध्रुव, नरसी आदि भक्तों को कसौटी पर खूब कसा गया और उन्हें अनेक कष्टों का सामना करना पड़ा, लेकिन जब उनकी अचल श्रद्धा को देखा तो उनको ईश्वर के दर्शन भी हुए और उनको पूर्ण अनुग्रह भी प्राप्त हुआ।
-क्रमशः