राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की संवाद रचना

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने यूरोपीय लोगों द्वारा की गई इस गलती को सुधारने का प्रयास किया। संघ का मानना है कि हिंदू शब्द भारतीय का समानार्थी तो हो सकता है, क्योंकि भारतीय भी राष्ट्रीयता का बोध करवाता है। जो देश को हिंदुस्तान कहता है, उसके लिए इस देश का निवासी हिंदू है। जो इसे इंडिया कहता है, उसके लिए देश के निवासी का नाम इंडियन है, जो इस देश को भारत कहता है, उसके लिए देश के निवासी का नाम भारतीय है…

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने पिछले दिनों दिल्ली के विज्ञान भवन में तीन दिन की संवाद रचना का कार्यक्रम रखा था। इसमें प्रबुद्ध नागरिकों को निमंत्रित किया गया था, ताकि वे संघ को सही परिप्रेक्ष्य में जान सकें। संघ को लेकर जाने या अनजाने में अनेक भ्रांतियों का निर्माण किया गया है। इसके पीछे कुछ तो राजनीतिक दलों के अपने दलीय स्वार्थ हैं और कुछ अज्ञानता भी है। शायद इसलिए संघ ने यह निर्णय लिया होगा कि  सरसंघचालक संघ में रुचि रखने वाले लोगों से प्रत्यक्ष संवाद रचना की जाए। पहले दो दिन सरसंघचालक मोहन भागवत ने प्रतिभागियों से सीधी संवाद रचना की और तीसरे दिन उनके प्रश्नों के उत्तर दिए। संघ ने इस संवाद रचना कार्यक्रम में सभी राजनीतिक दलों के लोगों को भी आमंत्रित किया था, ताकि आपस में बैठकर राष्ट्रहित के मुद्दों पर सामूहिक चर्चा हो सके, लेकिन दुर्भाग्य से पिछले कुछ दशकों से भारतीय राजनीति में आपसी कटुता इतनी बढ़ गई है कि संवाद रचना तो दूर, संवादहीनता की स्थिति पैदा हो गई है। शायद यही कारण था कि राजनीतिक दलों के लोगों की उपस्थिति नगण्य रही, लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक को एक सांस्कृतिक संगठन के नाते अपने इन प्रयासों को जारी रखना चाहिए, ताकि एक सर्वसमावेशी व्यास आसन की रचना हो सके।

यह प्रसन्नता की बात है कि दिल्ली के प्रबुद्ध जनों ने इस संवाद रचना कार्यक्रम में बहुत बड़ी संख्या में शिरकत की। केवल श्रोता के नाते ही नहीं, बल्कि सक्रिय सहभागी के नाते भी। इससे यह सिद्ध होता है कि देश का आम नागरिक संघ के बारे में जानने के लिए उत्सुक है। इस संवाद रचना से निश्चय ही संघ के बारे में फैली या फैलाई गई भ्रांतियों का निराकरण होगा। मोहन भागवत ने हिंदू की परिभाषा की जो व्याख्या की है, वह समीचीन ही नहीं, बल्कि तर्कसंगत है। हिंदू किसी मजहब, पंथ अथवा संप्रदाय का द्योतक नहीं है।

हिंदू शब्द अपने आप में राष्ट्रीयता का द्योतक है। जिस प्रकार जर्मनी के निवासी स्वयं को जर्मन कहते हैं, पोलैंड के निवासी पोलिश या पोल कहलाते हैं, चीन के निवासी चीनी कहलाते हैं,  उसी प्रकार हिंदुस्तान के निवासी हिंदू कहलाते हैं। इरानी इनको हिंदी कहते हैं। जिस प्रकार इरान के निवासी इरानी, उसी प्रकार हिंद के निवासी हिंदी, लेकिन जब देश का संपर्क इस देश से आया तो उन्हें इस देश को समझने में दिक्कत हुई, क्योंकि उनकी सोच अपने देश के ढांचे और चिंतन के अनुसार ही काम कर सकती थी, तब बात थोड़ी दिक्कत वाली हो गई। जर्मनी का निवासी जर्मन, यहां तक तो ठीक है, जर्मन का मजहब ईसाइयत है, क्रिश्चियन है। इस तर्ज पर हिंदुस्तान का निवासी यदि हिंदू है, तो उसका मजहब क्या है। इंग्लैंड वालों के लिए यह दिक्कत बहुत बड़ी थी, लेकिन इसका हल तो उन्होंने निकाला लेकिन वह उनकी अज्ञानता का ज्यादा प्रतीक, उनकी समझ का कम था। उन्होंने कहा इस देश के लोगों का मजहब हिंदू है। जहां तक देश के नाम का प्रश्न था, वह तो इंडिया भी प्रचलित था और भारत भी।

अब अंग्रेजों के लिए मामला बहुत सीधा-सपाट हो गया। यह देश इंडिया है, इसके लोगों का मजहब हिंदू है। इस प्रक्रिया में हिंदू अपने व्यापक अर्थों से कट कर बहुत ही सीमित अर्थों में मजहब के अर्थ में सिमट गया। अब यदि हिंदू मजहब है, तो इस देश में तो दूसरे मजहबों को मानने वाले लोग भी हैं। इस्लाम मजहब को मानने वाले लोग हैं, ईसाइयत को मानने वाले लोग हैं। इस प्रकार हिंदू मजहब में सिमट गया।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने यूरोपीय लोगों द्वारा की गई इस गलती को सुधारने का प्रयास किया है। संघ का मानना है कि हिंदू शब्द भारतीय का समानार्थी तो हो सकता है, क्योंकि भारतीय भी राष्ट्रीयता का बोध करवाता है। जो देश को हिंदुस्तान कहता है, उसके लिए इस देश का निवासी हिंदू है। जो इसे इंडिया कहता है, उसके लिए देश के निवासी का नाम इंडियन है, जो इस देश को भारत कहता है, उसके लिए देश के निवासी का नाम भारतीय है। मोहन भागवत ने ठीक ही कहा है कि इस देश में रहने वाला मुसलमान भी राष्ट्रीयता के लिहाज से हिंदू ही है।

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