अच्छी आय के लिए करें अखरोट की खेती

भारतवर्ष में उगाए जाने वाले गिरीयुक्त फलों में अखरोट (जुग्लैंस रिजिया) का सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण स्थान है। प्रायः अखरोट का प्रत्येक भाग किसी न किसी रूप में प्रयोग में लाया जाता है। वैज्ञानिक विश्लेषणों के अनुसार अखरोट में ओमेगा-3 व ओमेगा-6 वसा उक्त होने की वजह से बेहतर एंटी ऑक्सीडेंट क्षमता के साथ रक्त में कॉलेस्ट्रोल का स्तर कम करता है। इसके अलावा इसमें लिनोलेनिक, पालमेटिक, स्टेरिक तथा मेलोटोनीन एंटी ऑक्सीडेंट भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, जो कि निद्रा रोग निवारण में काफी सहायक होता है। इन्हीं महत्त्वपूर्ण पोष्टिक एवं औषधीय गुणों की वजह से एफएओ द्वारा अखरोट को महत्त्वपूर्ण बहुमूल्य पौधों की सूची में सम्मिलित किया है। फूड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन के अनुसार यदि अखरोट को खाद्य कड़ी में सम्मिलित किया जाए तो यह हृदय विकार को काफी हद तक कम कर देता है।

पौष्टिकता की दृष्टि से भी अखरोट अत्यंत महत्त्वपूर्ण फल है। इसमें प्रोटीन (67 ग्राम), वसा (65.21 ग्राम), कार्बोहाइड्रेट (13.71 ग्राम) प्रति 100 ग्राम गिरीभार तथा विटामिन ए 20 आईयू प्रति 100 ग्राम, विटामिन सी 1.3, थियामिन 0.34, विटामिन बी-6 0.537, कैल्शियम 0.98, लोह 2.91, सोडियम 20.0, मैग्नीशियम 158, मैगनीज 3.414, पोटेशियम 441, फोस्फोरस 346 तथा जिंक 3.09 ग्राम प्रति 100 ग्राम गिरीभार तक पाए जाते हैं। पारंपरिक रूप से अखरोट के पौधों के विभिन्न भागों को पारंपरिक रूप से कीटनाशक तथा औषधियों के रूप में प्रयोग किया जाता है, जैसे क्रीमी, अतिसार, उदर रोग, अस्थमा, त्वचा रोग तथा थायराइड विकार निवारण के लिए भी प्रयुक्त किया जाता है। इसके साथ-साथ फार्मास्यूटिकल तथा सौंदर्य प्रसाधन उद्योगों में भी अखरोट के विभिन्न भागों की बहुतायत मांग रहती है। आजीविका के लिए अखरोट की खेती बहुत बेहतर मानी जाती है।

अखरोट देश का अति महत्त्वपूर्ण शीतोष्ण फल है। हिमालयी राज्यों जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड तथा उत्तरी-पूर्वी राज्यों सिक्किम, अरुणाचल व दार्जिलिंग में भी अखरोट का पारंपरिक उत्पादन किया जाता रहा है। हिमाचल प्रदेश में अखरोट 4453 हेक्टेयर क्षेत्र में उगाया जाता है, जिससे 2142 मीट्रिक टन वार्षिक पैदावार होती है (आंकड़े वर्ष 2016-17)। हिमाचल प्रदेश में अखरोट की खेती को बढ़ावा देने हेतु सिरमौर जिला के नौहराधार में अखरोट की खेती का विकास केंद्र स्थापित किया गया है। उत्तर भारत में उगाए जाने वाले ज्यादातर अखरोट बीजू पौधों से तैयार किए गए हैं, जिसके कारण फलों के आकार, भार, रंग एवं बाह्य आवरण की कठोरता के साथ-साथ गिरी के रंग एवं स्वाद में भी अत्यधिक भिन्नता पाई जाती है। अखरोट के कलमी पौधे डा. यशवंत सिंह परमार बागबानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय सोलन के फल विज्ञान विभाग की नर्सरी में तैयार किए जाते हैं तथा जनवरी माह में वितरित किए जाते हैं। अखरोट अन्यथा सेब वर्चस्व वाले क्षेत्रों में कम प्राथमिकता वाली फसल बनी हुई है।

-धर्मपाल शर्मा एवं किशोर ठाकुर