करियर से जुड़ते पुस्तकालय

वर्षों बाद हिमाचल में पुस्तकालय नया जन्म ले रहा है और अगर शिमला का नया भवन किताबों के संग्रह के साथ-साथ युवाओं के समूह का उत्साह बढ़ाता है, तो यह शिक्षा के अभिप्राय को भविष्य से जोड़ेगा। शिक्षा सचिव की विशेष रुचि और छात्रों की भारी मांग पर राज्य पुस्तकालय अपने द्वार चौबीस घंटे खोलकर यह आश्वासन दे रहा है कि भविष्य के अध्ययन की आगामी परिपाटी क्या होगी। दरअसल पिछले कुछ सालों से हिमाचल के कुछ शहर  युवाओं के लिए अध्ययन केंद्र के रूप में समृद्ध हो रहे हैं और जहां पुस्तकालय करियर क्षमता का परिश्रम केंद्र बन गए हैं। पाठकों को ज्ञात होगा कि विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान धर्मशाला लाइब्रेरी का मसला किस तरह सड़क तक पहुंचा था और शिक्षा सचिव को स्वयं कुछ वादे करने पड़े थे। यह दीगर है कि प्रदेश भर के पुस्तकालयों की सुध लेने के लिए भारी बजट की आवश्यकता है, लेकिन नए स्कूल-कालेज की इमारतों की नुमाइश के बजाय पुस्तकालयों की अधोसंरचना को अध्ययन परिसरों में तबदील करने की अति आवश्यकता है। युवाओं की करियर परवरिश के नए आयाम में तमाम जिला पुस्तकालय अपना योगदान कर रहे हैं, लेकिन पुरानी इमारतें होने की वजह से अध्ययन के लिए स्थान कम पड़ रहा है। बाकायदा बच्चे सुबह से देर रात तक अपनी दैनिक समयसारिणी में यह सुनिश्चित करते हैं कि उन्हें अधिक से अधिक घंटे किसी न किसी पुस्तकालय में उपलब्ध हों। इन आदर्शों के संचालन में शिमला पुस्तकालय का नया भवन काफी संभावनाएं दर्शा रहा है, तो अब इसी प्रारूप में अन्य पुस्तकालयों की तरफ बढ़ना होगा। दूसरी ओर स्कूल व कालेज लाइब्रेरी प्रबंधन में नई ऊर्जा की जरूरत है, ताकि व्यक्तित्व निर्माण की आरंभिक कार्यशाला पुस्तकालय कक्ष से शुरू हो। हिमाचली युवाओं का करियर के प्रति नया आकर्षण अगर निजी अकादमियों की ओर अग्रसर हो रहा है, तो कहीं सेल्फ स्टडी की संभावना को यह वर्ग पुस्तकालय से जोड़ चुका है। इसी तरह पुलिस व सैन्य सेवाओं में जाने को इच्छुक युवा शहरों में उपलब्ध खेल मैदानों में सुबह और शाम स्वयं प्रशिक्षित हो रहे हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि प्रदेश के पुलिस, खेल व शिक्षा विभाग अब खुद को करियर अकादमी या प्रशिक्षण केंद्र के रूप में भी संबोधित करें। प्रदेश में पुलिस महकमे के सहयोग से कुछ स्थानों पर पुलिस व सैन्य भर्तियों के लिए बाकायदा शारीरिक अभ्यास कराने की व्यवस्था व मार्गदर्शन उपलब्ध कराया जा सकता है। खेल विभाग भी डे कोचिंग के जरिए अपनी अधोसंरचना व प्रशिक्षक उपलब्ध करा सकता है। इतना ही नहीं, विभिन्न विश्वविद्यालय अपने खेल मैदानों, पुस्तकालयों व फैकल्टी के मार्फत अलग-अलग भर्तियों के लिए, छात्र समुदाय को नियमित तौर पर अध्ययन व प्रशिक्षण सुविधाएं उपलब्ध कराएं तो हिमाचली प्रतिभा को मुकाम हासिल होगा। मात्रात्मक शिक्षा से गुणात्मक उपलब्धियों का फासला तय करना है तो विभागीय कसरतें तथा लक्ष्यों का निर्धारण नए सिरे से करना होगा। स्कूल की भूमिका केवल क्लास रूम तक और स्कूल शिक्षा बोर्ड की परीक्षा तक ही नहीं है, बल्कि उस औचित्य तक निर्धारित होगी जहां पढ़-लिख कर कोई खुद से अपनी क्षमता का हाल पूछता है। ऐसे में पुस्तकालय तक पहुंचे छात्र समुदाय को बेहतरीन माहौल देने की परिपाटी शिमला से निकल कर सिरमौर, किन्नौर तथा भरमौर तक पहुंचनी चाहिए, जबकि विभिन्न प्रवेश तथा राष्ट्रीय सेवाओं की प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं के परीक्षा केंद्र स्थापित करने होंगे। इस बीच नोएडा स्थित हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के इक्डोल स्टडी सेंटर का इस्तेमाल प्रदेश के छात्रों के भविष्य से जोड़कर शिक्षा विभाग ने सुखद प्रयास किया है। दिल्ली राजधानी क्षेत्र में करियर संवार रहे हिमाचली छात्रों को अगर नोएडा परिसर उपलब्ध होता है, तो हर साल कई युवाओं को वहां प्रशिक्षण प्राप्त करना आसान होगा। इसी तरह के छात्रावास प्रदेश के शिमला, सोलन, मंडी, धर्मशाला व हमीरपुर में भी निर्मित हों, तो भविष्य के पते पर इन शहरों में करियर समाधान केंद्र स्थापित हो सकते हैं और इसी तरह राज्य परीक्षा केंद्रों की स्थापना से छात्रों को हिमाचल में ही खुद को साबित करने का अवसर प्रदान होगा।