जांगी-थोपन-पोवारी एसजेवीएन के हवाले

आखिर सरकार ने लिया प्रोजेक्ट देने का फैसला, 30 फीसदी हिस्सेदारी के साथ भागीदार होगी सरकार

शिमला – सालों से विवादों में घिरा जांगी-थोपन-पोवारी प्रोजेक्ट अंततः सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड को दे दिया गया है। खुद सरकार इस परियोजना में 30 फीसदी की भागीदार होगी। जिसके अलावा 12 फीसदी मुफ्त बिजली उसे अलग से मिलेगी, जैसे पहले की शर्तें हैं। अहम बात यह है कि सतलुज जल विद्युत निगम को एक निश्चित अवधि में यह प्रोजेक्ट तैयार करना होगा, जिसकी शर्त कैबिनेट ने लगा दी है। सोमवार को मंत्रिमंडल ने सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड को जांगी-थोपन-पोवारी परियोजना देने का निर्णय लिया है। पूर्व सरकार भी ऐसा करना चाहती थी,लेकिन नई शर्तों के मुताबिक जोकि सतलुज निगम नहीं मान रहा था। निगम का कहना था कि वह केंद्र व राज्य सरकार का संयुक्त सार्वजनिक उपक्रम है और अपफ्रंट प्रीमियम देकर वह कोई प्रोजेक्ट नहीं ले सकता। ऐसे में सरकार को इसमे अपफ्रंट प्रीमियम छोड़ना होगा और भागीदारी की शर्तों के हिसाब से प्रोजेक्ट देना होगा। पहले वर्तमान ऊर्जा मंत्री अनिल शर्मा भी उनको प्रोजेक्ट नहीं देने के पक्ष में थे, मगर सोमवार को कैबिनेट की बैठक में चर्चा के बाद फैसला ले लिया गया। राज्य सरकार को इस परियोजना में 30 फीसदी की इक्विटी, लूहरी परियोजना की तर्ज पर मिलेगी, वहीं 12 फीसदी अतिरिक्त मुफ्त बिजली भी मिलेगी। ऐसे में सरकार का कुल हिस्सा 42 फीसदी तक बन जाएगा।   यहां जानने योग्य यह भी है कि सरकार को 30 फीसदी हिस्सेदारी के रूप में अलग से पैसा नहीं देना होगा क्योकि लूहरी परियोजना में उसका जो हिस्सा बनता है, वही जांगी-थोपन-पोवारी परियोजना में भी लगा दिया जाएगा। इस पर कैबिनेट ने साफ कह दिया है। जांगी-थोपन-पोवारी परियोजना की क्षमता पहले 960 मेगावाट की थी। ये दो परियोजनाएं थीं, जिनको बाद में एक कर दिया गया।  नए  सर्वेक्षण के तहत परियोजना की क्षमता 760 मेगावाट रह गई है।

अरसे से लटकी थी परियोजना

किन्नौर जिला में प्रस्तावित ये परियोजना लंबे समय से विवादों में रही है। पहले इसे ब्रेकल कंपनी को दिया गया था जो शर्तें पूरी नहीं कर सकी। इस कारण सरकार ने उसका 280 करोड़ रुपए की अपफ्रंट प्रीमियम राशि को जब्त कर दिया।

निगम के पास चार

सतलुज निगम के पास नाथपा झाकड़ी, रामपुर, लूहरी व धौलासिद्ध चार प्रोजेक्ट हैं। इनमें से नाथपा झाखड़ी में 1500 मेगावाट और रामपुर में 420 मेगावाट उत्पादित हो रहा है। लूहरी तीन चरणों में बनना है, लेकिन अभी तक इस पर काम नहीं हो सका है, वहीं धौलासिद्ध भी ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ है।