राष्ट्रपति का हिमाचल आना

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का हिमाचल में आना उन चिरागों को फिर से जलाने का प्रयास भी रहा, जो प्रोफेशन की नई परिभाषा में बदनाम हो रहे हैं। जाहिर तौर पर राष्ट्रपति का प्रदेश के दो मुख्य संस्थानों में आगमन स्वयं में राष्ट्रीय अवलोकन और मूल्यांकन भी माना जाएगा, क्योंकि संबोधन के संदर्भ प्रेरित करते हैं। इस बहाने देश को जानने का मौका मिला कि हिमाचल में शिक्षा खासतौर पर मेडिकल शिक्षा का स्तर और संभावना क्या है। यह मात्र डिग्रियां या गोल्ड मेडल बांटने का अनुक्रम माना जाए, तो जनता खुद पर यातायात पाबंदियों का हिसाब करती हुई अलग तरह की टिप्पणी कर सकती है, लेकिन हिमाचल को राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में खड़ा करने का इससे बड़ा अवसर शायद नहीं मिलता। प्रदेश अगर राष्ट्रपति की मेहमाननवाजी कर पाया, तो पूरी कसरत का औचित्य भी बढ़ जाता है। हिमाचल में स्वास्थ्य सेवाओं की तस्वीर में टीएमसी का पड़ाव अपने अस्तित्व के ककहरे पढ़ते हुए आज जहां खड़ा है, वहां आशाएं निरंतर प्रगति चाहती हैं। आईजीएमसी से टीएमसी और अब स्वास्थ्य सेवाओं का कारवां प्रदेश के चंबा, हमीरपुर, नेरचौक व नाहन मेडिकल कालेजों से होता हुआ बिलासपुर में एम्स के लिए प्रतीक्षारत है। यानी उत्तर भारत के अन्य राज्यों के मुकाबले हिमाचल की यह बड़ी छलांग साबित होगी, बशर्ते मंतव्य, मंशा, मकसद और मार्गदर्शन सही सलामत खुद को प्रमाणित करते हुए सफलता की इबारत लिख पाए। राष्ट्रपति ने जिस मेडिकल टूरिज्म की तरफ इशारा किया है, उसके लिए हिमाचल खुद को प्रतिष्ठित कर सकता है और इसकी शुरुआत टीएमसी में मात्र एक हेलिपैड निर्माण के साथ तुरंत की जा सकती है। बहरहाल ढांचागत उपलब्धियों या शैक्षणिक प्रमाणपत्रों पर इतरा कर मंजिल नहीं मिलती, बल्कि उस रैफरल सिस्टम को तोड़कर मिलेगी, जो आज भी टीएमसी प्रांगण में प्रमाणिक चिकित्सा सेवाओं के अभाव में मरीजों को गाहे-बगाहे बाहरी प्रदेशों की ओर रुखसत कर देता है या इसकी परिधि में पनपे कांगड़ा के निजी अस्पताल फलने-फूलने लगे हैं। टीएमसी तथा शिमला विश्वविद्यालय में राष्ट्रपति आगमन बहुत कुछ चिन्हित करता दिखाई दिया। कम से कम टांडा से अन्य मेडिकल कालेजों के लक्ष्य और काबीलियत का सफर शुरू होता है, इसलिए यहां के मानदंड प्रेरित कर सकते हैं। टीएमसी का इतिहास साक्षी है कि इसकी स्थापना में कई अस्पतालों ने अपनी ऊर्जा या अस्तित्व तक का सहयोग दिया, तो अब आगे की शृंखला में टांडा भी भूमिका निभा रहा है। यह दीगर है कि हिमाचल सरकार के छह मेडिकल कालेजों के अलावा एम्स तथा एक निजी चिकित्सा शिक्षण संस्थान की बदौलत जब यह प्रदेश कम से कम आठ सौ डाक्टर हर साल सौंपेगा, तो इस भीड़ की गुंजाइश में स्वास्थ्य सेवाओं के भविष्य की चमक क्या होगी। यह भविष्य की रूपरेखा में मेडिकल यूनिवर्सिटी को भी तय करना है कि किस तरह डाक्टर समुदाय मानवता के प्रहरी के रूप में पारंगत होते हैं। एक बड़े परिदृश्य में मेडिकल यूनिवर्सिटी के आंगन में शिमला, मंडी व धर्मशाला के जोनल अस्पताल भी उत्कृष्ट स्वास्थ्य सेवाओं के नजरिए से स्थानीय परिसर बना दिए जाएं, तो औचित्य के साथ-साथ क्षेत्रीय संतुलन की परिभाषा सुदृढ़ होगी। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राष्ट्र की गवाही में हमारे नायकों की पहचान की है, तो सर्वोच्च कुर्बानियों के इतिहास में भारत के पहले स्वतंत्रता सेनानी तथा आजादी की क्रांति का उद्घोष करने वाले राम सिंह पठानिया हमारे फख्र की ऊंचाई बता देते हैं। शहादत की पराकाष्ठा पर हिमाचल के बुलंद साहस का जिक्र पहले परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ के उदाहरण से करते हुए राष्ट्रपति भी प्रदेश के शौर्य के साक्षी बने हैं। राष्ट्रपति कांगड़ा कलम का उल्लेख करते इतिहास को छूते हैं, तो बौद्ध अध्यात्म में हिमाचल की अनुगूंज को अंगीकार करते हैं। जाहिर तौर पर हिमाचल की विशिष्टता इसके सौंदर्य, सौम्यता और चारित्रिक दर्शन में रही है। देश को हिमाचल अपने जज्बात से देखता है, लेकिन बदले में राष्ट्रीय गणना में छोटे राज्यों के प्रति संवेदना भी सिकुड़ जाती है। राष्ट्रपति के फलक से निकले उद्गार किसी पुरस्कार के मानिंद अगर हिमाचल की खूबियां गिन रहे हैं, तो यही हमारे स्वाभिमान को कर्मठ इतिहास का गवाह बनाता है। अब इसी क्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आगमन की प्रतीक्षा हो रही है। राष्ट्रपति ने शिमला विश्वविद्यालय की पलकों से हिमाचली ज्ञान का भंडार देखा है, तो केंद्रीय विश्वविद्यालय की आबरू बचाने के लिए प्रधानमंत्री का उल्लेख जिन शिलान्यास पत्थरों पर अंकित होगा, वे आने वाली पीढि़यों का दिग्दर्शन भी करेंगे।