अखंड भारत का ‘सरदार’

वह अखंड भारत के प्रणेता ‘सरदार’ थे। बेशक अखंड भारत की वह परिकल्पना सामने नहीं थी, जिसमें पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, बर्मा आदि मौजूदा देश भारत राष्ट्र के ही हिस्से थे। बेशक अखंड भारत का वह सपना भी सामने नहीं था, जो पोरस और चंद्रगुप्त मौर्य सरीखे राजाओं ने देखा और जीया था। हालांकि 1947 में भारत की स्वतंत्रता के साथ-साथ विभाजन भी हुआ और इस तरह पाकिस्तान मुल्क का जन्म हुआ। फिर भी वह अखंड भारत का सूत्रधार था। देश में रियासतें और रजवाड़े थे, जिनकी हुकूमत और राष्ट्रीयता भी अपने-अपने इलाकों तक ही सीमित थी। देश में सामंत, सूबेदार और जमातों में बंटा समाज था। वे भारत के राष्ट्रीयकरण और एकीकरण की सोच भी नहीं सकते थे। उस विराट शख्स और लौह पुरुष ने देश के गृहमंत्री के नाते उन 550 से अधिक रियासतों को भारत के साथ जोड़ा और भारत के रूप में ‘अखंड राष्ट्र’ का उदाहरण प्रस्तुत किया। नतीजतन आज जो एकीकृत भारत का मानचित्र हमारे सामने है, विभिन्न धर्मों, संप्रदायों, मतों, भाषाओं, जातियों और अंचलों के 135 करोड़ से ज्यादा नागरिक एक राष्ट्रीय नाम के तले एकजुट हैं, वह सपना साकार करने वाला ‘सरदार’ ही था। आज हम उस बहस में नहीं उलझना चाहते कि यदि ‘सरदार’ भारत के प्रथम प्रधानमंत्री होते, तो न केवल संपूर्ण कश्मीर हमारा हिस्सा होता, बल्कि देश का परिदृश्य भी भिन्न होता। जी हां, हम देश के प्रथम उपप्रधानमंत्री एवं गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल को आज याद कर रहे हैं। आज 31 अक्तूबर को उनकी जयंती है और यह तारीख इतिहास में एक नए गौरव के साथ दर्ज हो गई है। दरअसल हम इस विवाद से भी अलग रहना चाहते हैं कि कांग्रेस और प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपने सशक्त, कूटनीतिज्ञ और एकीकरण के शिल्पकार साथी की लगातार अनदेखी की। ‘सरदार’ की और क्या उपेक्षा की जा सकती थी, क्योंकि 15 दिसंबर, 1950 को देश की आजादी के मात्र 3 साल बाद ही उनका निधन हो गया था। राष्ट्रीय एकता और अखंडता के ऐसे सूत्रधार को मृत्यु के 41 लंबे सालों के बाद देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ के योग्य समझा गया। अनदेखी और उपेक्षा का इससे सटीक उदाहरण और क्या हो सकता है? बहरहाल आज ‘सरदार’ का सर्वोच्च सम्मान बहाल किया गया है, तो उसे कांग्रेस और भाजपा में नहीं बांटना चाहिए। बेशक पटेल 1931 में कांग्रेस अध्यक्ष बने और अंतिम सांस तक कांग्रेस पार्टी के सदस्य नेता रहे, लेकिन मानस और मूल्यों के आधार पर वह भारतीय नेता सबसे पहले थे, लिहाजा प्रथम राष्ट्रवादी नेता भी वही थे। वह बेशक कांग्रेस की बपौती नहीं थे। प्रधानमंत्री मोदी ने उनके अद्वितीय, अतुलनीय स्मारक के तौर पर ‘सरदार’ की प्रतिमा का अनावरण किया है। उसे ‘स्टेच्यू ऑफ यूनिटी’ नामकरण दिया गया है। 182 मीटर ऊंची यह प्रतिमा विश्व में सबसे ऊंची है और अमरीका की ‘स्टेच्यू ऑफ  लिबर्टी’ से भी लगभग दोगुनी ऊंची है। अभी तक यह दर्जा 153 मीटर ऊंची स्प्रिंग टेंपल की बुद्ध प्रतिमा को हासिल था। प्रधानमंत्री मोदी ने इस प्रतिमा को दिलों की एकता और हमारी मातृभूमि की भौगोलिक एकजुटता का प्रतीक करार दिया है। इस मूर्ति को तराशने और एक निश्चित आकार देने में 250 इंजीनियरों और करीब 3700 मजदूरों की मेहनत को भी आज सलाम करते हैं। पद्मश्री मूर्तिकार रामवनजी सुतार की कला को तो जमाना युगों तक याद रखेगा। उन्होंने ही एक प्रतिमा को जीवंत बनाया है। बहरहाल अनावरण के वक्त आसमान से फूलों की बरसात की गई, दूधिया रोशनी में प्रतिमा नहाती रही, लिहाजा 33 माह के रिकॉर्ड वक्त में ही प्रतिमा को बनाकर एक इतिहास रचा गया है। बेशक हवाओं के थपेड़े 180 किलोमीटर की गति के हों या भूकंप के झटके 6.5 रिएक्टर पैमाने के हों, यह ‘सरदार’ अडिग खड़ा रहेगा। यह ऐतिहासिक स्थल दुनिया देखेगी, पर्यटन के साथ-साथ ज्ञान का केंद्र भी होगा, ‘सरदार’ के मूल्यों और विचारधारा को भी साकार करेगा। पास में ही सरदार सरोवर बांध और घाटी के मनोरम दृश्य भी प्रतिमा के साथ-साथ देख सकेंगे। यह प्रतिमा ही नहीं, ‘सरदार’ का नया अवतरण भी है और इसका संकल्प 2013 में तब लिया गया था, जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। बेशक उस संकल्प के सूत्रधार मोदी ही हैं। कमोबेश इस यथार्थ को कोई भी नजरअंदाज नहीं कर सकता। अब इस विरासत का सियासी लाभ भाजपा को मिले या देश कांग्रेस के कुकर्मों को याद करे, लेकिन यह अखंड भारत की ही प्रतिमा है। यह उस ‘सरदार’ की प्रतिकृति है, जिसने गृहमंत्री रहते हुए सिविल सेवा की शुरुआत भी की। उस सेवा के जरिए भी भारत एक और अखंड रहा है। ‘सरदार’ कहा करते थे ‘एकता को बनाए रखना है, तो सबसे पहले उसे तोड़ने वालों का चेहरा सामने आना चाहिए।’ इसी भावना के साथ ‘सरदार’ को सादर श्रद्धांजलि…!