खालिस्तान की पदचाप

अमृतसर के अदलीवाल गांव में, निरंकारी सत्संग पर जो ग्रेनेड फेंका गया है, वह आतंकी हमले का ही एक रूप है। कई तो उसकी तुलना कश्मीर के आतंकी हमले से कर रहे हैं। 13 अप्रैल, 1978 को बैसाखी के दिन अमृतसर के ‘निरंकारी भवन’ पर ऐसा ही हमला किया गया था। नतीजतन अकालियों और निरंकारियों के बीच टकराव ऐसा बढ़ा था कि पंजाब में खालिस्तान की प्रस्तावना ही लिख दी गई थी। पंजाब में आतंकवाद की शुरुआत ही उस टकराव से हुई। अब जहां हमला किया गया है, वहां से मात्र 3 किलोमीटर की दूरी पर अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट है, करीब 17 किमी दूर ऐतिहासिक स्वर्ण मंदिर है और करीब 35 किमी पर वाघा बॉर्डर है। यानी सरहदी गांव और धार्मिक डेरे का आसान निशाना…! यही रणनीति पाकिस्तान की कुख्यात खुफिया एजेंसी आईएसआई की हो सकती है। विदेशों में बैठे खालिस्तान समर्थक कट्टरपंथियों और अतिवादी तत्त्वों की साजिश भी हो सकती है और किसी आतंकी संगठन के स्लीपर गिरोह की हरकत भी हो सकती है, लेकिन यह हमला आतंकवाद का संपूर्ण संकेत है। दो अनजान चेहरे, शॉल ओढ़े नौजवानों ने डेरे के बाहर महिलाओं को पिस्तौल की नोंक दिखाकर रोका और डेरे के अंदर जाकर निरंकारी सत्संग में मौजूद करीब 200 की संगत पर ग्रेनेड फेंका। हमलावर बाइक पर सवार होकर भाग निकले, लेकिन जिन 3 मासूम भक्तों की मौत हुई है, उनमें प्रवचन दे रहे प्रचारक सुखदेव कुमार भी शामिल थे। चश्मदीदों का कहना है कि उन्हें निशाना बनाकर ग्रेनेड फेंका गया था। हमले में करीब 20 लोग जख्मी भी हुए हैं। बहरहाल यह हमला भी मानवता और आध्यात्मिक चेतना पर था, सांप्रदायिक सद्भाव के खिलाफ भी था, लेकिन फिर भी इस निष्कर्ष पर तुरंत नहीं पहुंचा जा सकता कि पंजाब में खालिस्तान की पदचाप सुनाई देने लगी है। अलबत्ता मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और पुलिस महानिदेशक सुरेश अरोड़ा ने इसे ‘आतंकी हमला’ जरूर करार दिया है। इस पूरे परिप्रेक्ष्य में सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत की टिप्पणी भी बेहद महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने कहा था कि बेशक पंजाब शांतिपूर्ण रहा है, लेकिन आतंकवाद को फिर से खड़ा करने की कोशिशें की जा रही हैं। हमें सतर्क होना पड़ेगा, क्योंकि पंजाब में जो हालात चल रहे हैं, उन्हें देखकर आंखें बंद नहीं की जा सकतीं। इसके अलावा, खुफिया एजेंसी आईबी ने भी पंजाब  सरकार को ‘लीड’ भेजी थी कि आतंकी पंजाब की ओर बढ़ रहे हैं। अलकायदा कमांडर जाकिर मूसा और जैश-ए-मुहम्मद के 6-7 आतंकी भी पंजाब में सक्रिय हैं। आईएसआई ने नई रणनीति के साथ आतंकवाद का नया मोर्चा भी पंजाब में ही खोला है। ऐसी खुफिया लीड के बाद चौकसी बढ़ाई गई, जाकिर मूसा के पोस्टर पंजाब के प्रमुख शहरों, कस्बों में चिपकाए गए। यदि आगाह करने वाली सूचनाओं के बावजूद इतने संवेदनशील स्थान पर ‘आसान’ आतंकी हमला हो जाए, तो बेशक आंतरिक सुरक्षा की भयंकर चूक है और बुनियादी जवाबदेही पंजाब सरकार की बनती है। दरअसल पंजाब में खालिस्तानी उग्रवाद का दौर भूलना नहीं चाहिए, जब खून से सनी लाशें सामान्य थीं, पंजाब की गलियों में एके-47 और नंगी तलवारें लेकर भागते हुए खाड़कुओं को देखा था, हर वर्ग-हर उम्र के आदमी की हत्या की गई थी, क्या आज भी उस दौर को दोबारा जिंदा देखना चाहेंगे? यह भी याद रखना चाहिए कि अब केपीएस गिल ‘दिवंगत’ हो चुके हैं, लिहाजा बार-बार सोचना चाहिए कि खालिस्तान की वापसी निजी या राष्ट्रहित में है या नहीं? खालिस्तान पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह समेत कई नेताओं की कुर्बानी ले चुका है। बेशक खालिस्तान समर्थक ताकतें पाकिस्तान, कनाडा, ब्रिटेन और जर्मनी आदि देशों में सक्रिय हैं, लेकिन वे पंजाब को आसान निशाना बनाते हुए लौटना चाहती हैं, ताकि पंजाब के जरिए देश के राजधानी क्षेत्र में भी आतंकवाद फैलाया जा सके। पंजाब में हाईअलर्ट पहले से ही था और इस हमले के बाद उसे दिल्ली, नोएडा तक बढ़ा दिया गया है। सीमाएं सील कर दी गई हैं। राष्ट्रीय जांच दल अमृतसर पहुंच चुका है। हमले से जुड़े पहलुओं की जांच वही करेगा। पंजाब में स्वात कमांडो समेत सभी बलों को सचेत कर दिया गया है। बुनियादी चिंता यह है कि क्या आतंकवाद कश्मीर के बाद पंजाब को भी अपनी गिरफ्त में ले लेगा? हमें पठानकोट, गुरदासपुर, जालंधर, बठिंडा में किए गए आतंकी हमलों को नहीं भूलना चाहिए। सबसे बड़े दुश्मन की सीमाएं हमसे चिपकी हैं, यह भी याद रखना चाहिए। पंजाब के अमन-चैन, सौहार्द्र को यूं ही बर्बाद नहीं होने दिया जा सकता।

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