टैक्स समान, तो पेंशन क्यों नहीं

जीवन बिलासपुरी

बिलासपुर

सांसदों की उपलब्ध जानकारी व सर्वेक्षणों में यह पाया गया है कि अधिकतर सांसद अरबपति हैं। यदि वे चाहें तो देशहित में राजकोष से मिलने वाले फायदों का परित्याग भी कर सकते हैं, परंतु आखिर ऐसी आर्थिक सुरक्षा केवल अपने लिए ही क्यों? क्या देश के अन्य कर्मचारियों को भी बुढ़ापे के लिए ऐसी ही आर्थिक सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए। सरकार ने अंशदायी पेंशन योजना यानी न्यू पेंशन योजना को देश के सरकारी कर्मचारियों के लिए वर्ष 2004 में प्रायोजित किया था। आज जब 15 वर्ष के पश्चात इसके परिणाम आने शुरू हुए हैं, तो सेवानिवृत्त कर्मचारी अपने आपको ठगा सा महसूस कर रहे हैं। पेंशन के रूप में मिलने वाली राशि गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर करने वालों से भी कहीं कम है। आखिर क्यों सरकार जानते हुए भी अनभिज्ञ बनी हुई है? शायद इसका मुख्य कारण एनपीएस से सबंधित अधिकारियों द्वारा सरकार के समक्ष सही आंकड़े प्रस्तुत न करना हो सकता है। यदि देशहित में पेंशन प्रणाली को बदलना इतना जरूरी था, तो इसकी एवज में एक सशक्त प्रणाली मुहैया करवाई जानी चाहिए थी, ताकि पेंशनभोगी स्वयं को सुरक्षित महसूस करते। जब देश में एक टैक्स हो सकता है, तो एक पेंशन प्रणाली क्यों नहीं? यदि सरकार न्यू पेंशन स्कीम को लेकर इतनी ही आश्वस्त है, तो उसे तुरंत नई और पुरानी स्कीम के बीच में कर्मचारियों को विकल्प उपलब्ध करवाना चाहिए। इससे एक तो सरकार की विश्वसनीयता बढ़ेगी और दूसरा, कम उम्र में नौकरी हासिल करने वाले युवाओं को एनपीएस का विकल्प भी चुनने का मौका मिल पाएगा। नीति-नियंताओं को मौजूदा कर्मियों को कारगर व्यवस्था उपलब्ध करवानी चाहिए।