दिवाली से पहले कौए की पूजा

चुवाड़ी—इन दिनों त्योहारों का सीजन जारी है। भट्टियात के ककीरा क्षेत्र में रहने वाले गौरखाली लोगों का दिवाली मनाने का अंदाज कुछ अलग। कौवा और भैरो के वाहन कुत्ते की पूजा इसे दूसरों की दिवाली से अलग बनाती है। हिंदूत्व का प्रहरी गोरखा समाज बड़ी ही श्रद्धा से हिंदू पंरपराओं के तहत दिवाली और भैयादूज मनाता है। दिवाली से पहले कौवा पूजा फिर कुक्कुर पूजा यानी कुत्ते की पूजा फिर गोवर्धन पूजा तो इसके बाद दिवाली को लक्ष्मी पूजा होती है। दिवाली के दिन सुबह उठ कर सब से पहले अपने घर के देवी-देवताओं के पूजा के बाद गो मां की पूजा की जाती है। इसके बाद रात को सभी घर के सदस्य मिल कर लक्ष्मी की पूजा करते हैं। उसके बाद घर के चारों ओर दीया और मोमबती जला कर प्रकाश किया जाता है। उस के बाद छोटे और बड़े गोरखा समुदाय के बच्चे अपने-अपने टोली बना कर रात भर बच्चे भइलो मांगने जाते हैं।  उस के बदले घर के बड़े बूढ़े उन बच्चों को घर मे बनाए गए सैल रोटी फेनी और गुजिया फल और पैसे देते है और बच्चे भईलो मांग कर नाच गाना करते है। घर के सदस्य अपने आस पड़ोस को मिठाइयां बाटते है और रात भर पटाखे फोड़ते है और एक दूसरे को दीपावली की बधाई देते है। दीपावली के अंतिम दिन बहनें अपने भाइयों के माथे में तीन रंगों के चावल का तिलक लगाती हैं। इसमंे लाल नीला और पीला रंग शामिल होता है।  आज के दिन भाइयों के पंसद का व्यंजन परोसे जाते हैं। आज के दिन भाइयों के आने की खुशी में आज पूरी रात नाच गाना चलता है।